नई दिल्ली: Vasundhara Raje: राजस्थान में नए मुख्यमंत्री का ऐलान हो गया है. पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को भाजपा मुख्यमंत्री नहीं बनाया. राजे दो बार राजस्थान की सीएम रह चुकी हैं. लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब वसुंधरा राजे राजस्थान आना भी नहीं चाहती थीं. साल 2002 में जब उनसे ये पूछा जाता कि वे राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हो रही हैं क्या? इस पर वसुंधरा कहतीं- 'नो! दिस इज नोट माय कप ऑफ टी.' इसका मतलब है कि वसुंधरा राजस्थान में आने की इच्छुक नहीं थीं, लेकिन जब आईं तो यहीं रच-बस गईं.
वसुंधरा राजे को राजस्थान में लाने वाले पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत थे. साल 1984 में वसुंधरा ने मध्य प्रदेश के भिंड से लोकसभा चुनाव लड़ा. लेकिन वो हार गईं. वसुंधरा की मां विजया राजे सिंधिया ने उनके भविष्य के बारे में भैरोंसिंह से बात की. भैरोंसिंह ने विजया को सलाह दी कि वो वसुंधरा को अपने ससुराल धोलपुर भेज दें. यहां से उन्हें 1985 में चुनाव लड़वाया गया और वे जीत गईं.
भैरोसिंह ने किया था ऐलान
वसुंधरा ने इस किस्से को याद करते हुए कहा था कि मैं धोलपुर से तो चुनाव जीत गई. फिर बाबोसा (भैरोसिंह) ने मुझसे पूछे बिना मंच से घोषणा कर दी कि वसुंधरा राजे झालावाड़ से लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रही हैं. यह खबर सुनकर मैंने घबराकर राजमाता को फोन किया और कहा कि ये क्या हो गया. मैं धौलपुर में खुश थी, मुझे झालावाड़ जाना ही नहीं है. मैं तो जानती भी नहीं हूं कि यह जगह कहां है. इसके बाद मैं रोने लगी. राजमाता ने कहा कि बहसबाजी मत करो, आप बाबोसा से बात कर लो.
बाबोसा को फोन कर रोईं
इसके बाद वसुंधरा राजे ने रोते हुए बाबोसा (भैरोंसिंह शेखावत) को फोन लगाया. राजे ने कहा कि ये आपने क्या कर दिया. मैं तो झालावाड़ के बारे में कुछ भी नहीं जानती हूं, आप मुझे कहां भेज रहे हो. भैरोंसिंह ने वसुंधरा की बात सुनकर कहा कि राजनीति ऐसी जगह होती है जहां रिस्क लेने की जरूरत होती है. रिस्क अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी. इस समय आपके लिए यह अच्छा हो सकता है. सांसद बनना कोई छोटी बात नहीं है. इसके बाद वसुंधरा झालवाड़ गईं और भारी मार्जिन से चुनाव जीता.
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