RAW: क्यों बनाई गई खुफिया एजेंसी रॉ? जानें कैसे चुने जाते हैं एजेंट

भारत की खुफिया एजेंसी रॉ (RAW) के बारे में हर छोटी-बड़ी बात जानने के लिए दुनियाभर के लोग बेताब रहते हैं. रॉ (RAW) देश की बाहरी सुरक्षा का खास ख्याल रखती है. रॉ का गठन रामेश्वर नाथ काव के मार्गदर्शन में किया गया था. हालांकि, कम ही लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि आखिर किस वजह से रॉ का गठन हुआ. ऐसे में चलिए आज हम रॉ से जुड़े ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं.

Written by - Bhawna Sahni | Last Updated : Jan 20, 2025, 02:35 PM IST
    • कैसे बन सकते हैं RAW एजेंट
    • 1968 में हुआ एजेंसी का गठन
RAW: क्यों बनाई गई खुफिया एजेंसी रॉ? जानें कैसे चुने जाते हैं एजेंट

नई दिल्ली: अपने देश की सुरक्षा के लिए दुनियाभर के देश अपनी आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ बाहरी सुरक्षा के भी कड़े इंतजाम करते हैं. वहीं, भारत भी इस मामले में किसी से पीछे नहीं है. भारत ने भी बाहरी सुरक्षा को नजर रखने के लिए अपनी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ (RAW) को तैयार किया हुआ है. हालांकि, 1968 तक भारत की आंतरिक और बाहरी खुफिया जानकारियां जुटाने की जिम्मेदारी सिर्फ इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के पास ही थी. 

लेना पड़ा RAW बनाने का फैसला

दरअसल, 1962 में हुई भारत-चीन लड़ाई और 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय IB जो भी जानकारियां जुटा पाया उनमें एक बड़ा अंतर देखने को मिला. इस दौरान IB चीन और पाकिस्तान की तैयारियों के बारे में पूरी जानकारी एकत्र करने में विफल साबित हुई थी. ऐसे में उस वक्त तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार को महसूस हुआ कि भारत के पास भी ऐसी खुफिया एजेंसी होनी चाहिए जो बाहरी जानकारियां जुटा पाने में पूरी तरह समर्पित हो.

रामेश्वर नाथ काव बने पहले प्रमुख

इसके बाद 21 सितंबर, 1968 को रॉ का गठन हुआ. रामेश्वर नाथ काव को इसका पहला प्रमुख चुना गया. उनके बाद संकरन नायर इसके दूसरे प्रमुख बने. अब सवाल यह उठा की रॉ में किन लोगों को शामिल किया. ऐसे में शुरुआती समय में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) से ही कई लोगों को रॉ में ट्रांसफर किया जाने लगा. फिर रामनाथ काव ने 1971 के बाद सीधे कॉलेजों और यूनिवर्सिटी से ही रॉ के एजेंट्स चुनने शुरू कर दिए, लेकिन ये लंबे वक्त नहीं चल पाया. क्योंकि इस वजह से रॉ में कई लोगों के दोस्तों और रिश्तेदारों को नौकरी मिल गई, जिसका काफी मजाक भी बनने लगे. इसके चलते 1973 में इस परंपरा को बंद किया गया.

कई बार बदली परीक्षा की प्रक्रिया 

1973 के बाद जो भी व्यक्ति रॉ में जाना चाहता था उसे कड़ी प्रतिस्पर्धा और इम्तेहानों का सामना करना पड़ता था. रॉ में भर्ती को लेकर नितिन गोखले ने अपनी किताब 'आरएन काव, जेंटलमेन स्पाईमास्टर' में बताया है कि सबसे पहले मनोवैज्ञानिक टेस्ट लिया गया. सभी उम्मीदवारों को सुबह के 3 बजे एक जगह पर बुलाया जाता था और वहां उन्हें ऑब्जेक्टिव टाइप टेस्ट देना होता था. जो भी इसमें पास होता था वो अगले राउंड के लिए पहुंचता था. हालांकि, आज इस प्रोसेस में थोड़े बदलाव हो चुके हैं.

ऐसे बन सकते हैं RAW एजेंट

रॉ विभाग में भर्ती के लिए कैंडिडेट्स को भारतीय सिविल सेवा विभाग (UPSC) या SSC की परीक्षा पास करना अनिवार्य होता है. जो भी कैंडिडेट्स इसे पास कर पाते हैं, वो दूसरे राउंड में इंटरव्यू के लिए चुके जाते हैं. इसमें पास होने के बाद आपको कोई विभाग अलॉट किया जाता है. जो भी अभ्यार्थी इन परीक्षाओं को पास कर पाते हैं उन्हें रॉ के लिए चुन लिया जाता है.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. Zee Bharat इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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