नई दिल्ली: 28 जुलाई से बर्मिंघम के मैदान पर खेले जाने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 के लिये तैयारियां जोरों शुरू से हो चुकी हैं. 1930 में पहली बार खेले गये इन बहुस्पर्धी खेलों का आयोजन हर 4 साल के अंतराल पर किया जाता है, जिसमें ब्रिटिश सरकार के समय में कॉलोनाइज्ड रहे देश हिस्सा लेते हैं. खेल जगत में यह इवेंट ओलंपिक के बाद दूसरा सबसे बड़ा वैश्विक टूर्नामेंट होता है जिसमें फिलहाल 54 देशों की 73 टीमें हिस्सा लेती हैं. साल 2010 में भारत ने भी इन खेलों की मेजबानी की थी और सबसे ज्यादा पदक जीतने वाले देशों की तालिका में तीसरे पायदान पर रहा था.
टोक्यो में खेले गये पिछले ओलंपिक खेलों में मिली सफलता के बाद भारतीय टीम कॉमनवेल्थ गेम्स में अपने पिछले रिकॉर्ड को बेहतर करने के इरादे से उतरेगी. जहां पर एक ओर इन खेलों को भारत सरकार की ओर से इतना महत्व दिया जा रहा है तो वहीं पर कांग्रेस के कार्यकाल में खेल मंत्री रह चुके मणिशंकर अय्यर कभी भी इन खेलों से प्रभावित नजर नहीं आये.
गुलामों की दास्तां है कॉमनवेल्थ गेम्स
इतना ही नहीं जब साल 2010 में भारत इन खेलों की मेजबानी की तैयारी कर रहा था तब अय्यर ने कॉमनवेल्थ गेम्स पर खर्च किये जाने वाले 35 हजार करोड़ रुपये को पैसों की बर्बादी बताते हुए विवादित बयान भी दिया था. अय्यर ने कॉमनवेल्थ गेम्स को गुलामों की दास्तां बताने वाला इवेंट करार देते हुए कहा था कि सिर्फ शैतानी ख्याल वाले लोग ही कॉमनवेल्थ गेम्स को बढ़ावा देने की बात करेंगे और ऐसे में अगर भारत इसका आयोजन करने में सफल हो जाता है तो वो बिल्कुल भी खुश नहीं होंगे.
उल्लेखनीय है कि कॉमनवेल्थ गेम्स को पहली बार ब्रिटिश अंपायर गेम्स के नाम से आयोजित किया गया था, जिसमें ब्रिटेश शासित देश हिस्सा लेते हैं. इसके बाद 1930 से 1950 तक इन्हें ब्रिटिश अंपायर गेम्स के नाम से ही जाना गया. 1950 के बाद जब ज्यादातर देशों ने ब्रिटिश शासन से आजादी हासिल कर ली तो इन खेलों को 1954 से 1966 के बीच ब्रिटिश अंपायर और कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम से जाना गया. 1970 में एक बार फिर से इन खेलों का नाम बदलकर इसे ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स किया गया लेकिन 1974 के बाद से इसे सिर्फ कॉमनवेल्थ गेम्स कर दिया गया.
अच्छा हो अगर असफल हो जाये कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन
इन खेलों का आयोजन ब्रिटिश अंपायर का जश्न मनाने के लिये किया जाता था जिसके तहत जो भी देश अंग्रेजों के आधीन थे उनके अंदर प्रतिस्पर्धा कर चैम्पियन चुना जाता था. हालांकि जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा इन खेलों में भी काफी बदलाव आते चले गये. हालांकि कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के अनुसार ये खेल ब्रिटिश सरकार के उस काले अध्याय का प्रतीक हैं. ऐसे में इन खेलों का आयोजन ही नहीं होना चाहिये.
2010 में जब संसद के बाहर मणिशंकर अय्यर से इसको लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा,'मैं बारिश के होने से खुश हूं क्योंकि ये कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन में मुश्किलें पैदा करेंगी. सच ये है कि मैं इन खेलों के आयोजन से काफी नाखुश हूं. लेकिन अगर यह सफल होता है तो हमें एशियाई खेलों की भी मेजबानी मिलेगी और आगे चलकर ओलंपिक की मेजबानी का भी मौका मिल सकता है.'
करोड़ों रुपये की बर्बादी है कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन
मणिशंकर अय्यर ने कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन पर खर्च होने वाले 35 हजार करोड़ रुपये की राशि पर भी सवाल खड़े करते हुए कहा था कि जिस देश में गरीब बच्चे भूखे सो रहे हैं और बुनियादी सुविधाओं के लिये जूझ रहे हों वहां पर इतनी बड़ी राशि को उन पर खर्च करने के बजाय इस बेकार के सर्कस के आयोजन पर खर्च किया जा रहा है.
अय्यर ने कहा कि जो लोग इन खेलों को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं वो किसी शैतान से कम नहीं है. आप भगवान नहीं बन सकते हैं. कई हजार करोड़ रुपये इस तरह के सर्कस पर खर्च किये जा रहे हैं लेकिन जो हाशिये पर खड़ा आम आदमी है और छोटे बच्चे हैं, जिन्हें बुनियादी सुविधाओं के लिये रोज लड़ना पड़ता है उन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
मेजबानी के लिये भारत ने दी रिश्वत
अय्यर ने तो भारत पर कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी हासिल करने के लिये रिश्वत देने का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा,'ओलंपिक संघ से इन खेलों की मेजबानी के लिये हर कॉमनवेल्थ देश को एक लाख डॉलर दिया जाता है. यह राशि ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा और ब्रिटेन को दी गई थी, जिन्हें इसकी कोई जरूरत नहीं थी. मैं तो इसे रिश्वत के रूप में देखता हूं.'
गौरतलब है कि मणिशंकर अय्यर के इस बयान के बाद कांग्रेस और उसकी पार्टी के नेताओं ने उनके बयान से किनारा कर लिया और उनके बयान को राष्ट्रविरोधी बताया था.
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