Merry Christmas 2022: देशभर में इन दिनों क्रिसमस डे की धूम है. चर्च और मॉल भी सजा दिए गए हैं. ऐसे में शिमला का क्राइस्ट चर्च रंग-बिरंगी लाइटिंग लाइटों से सजा दिया गया है.
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Merry Christmas 2022: 'सैंटा आया सैंटा आया' 25 दिसंबर आने वाला है और हर किसी को बस सैंटा का इंतजार है. देशभर में इन दिनों क्रिसमिस डे की धूम है. शहरों के ज्यादातर मॉल भी नई नवेली दुल्हन की तरह सजा दिए गए हैं. वैसे तो क्रिसमिस डे (Christmas Day 2022) क्रिश्चनों का त्योहार है, लेकिन आजकल स्कूल, कॉलेज और कुछ संस्थानों में भी इस दिन को धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाता है. हर जगह कोई एक शख्स सैंटा बनता है और वह सभी को गिफ्ट देता है.
वहीं, अगर ईसाई धर्म के लोगों की बात की जाए तो वे इस दिन को खास अंदाज में मनाते हैं. यह लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ चर्च में जाकर प्रार्थना करते हैं और केक काटकर यीशु का जन्मदिन सेलिब्रेट करते हैं. एक ओर जहां देशभर के मॉल और चर्च सजा दिए गए हैं. वहीं, शिमला का क्राइस्ट चर्च भी लाइटों से चमचमा रहा है.
क्राइस्ट चर्च में कुछ इस तरह मनाया जाएगा क्रिसमस
शिमला के रिज मैदान पर स्थित क्राइस्ट चर्च रंग-बिरंगी लाइटिंग लाइटों से सजा हुआ किसी नई नवेली दुल्हन से कम नहीं लगा रहा है. शिमला के इस चर्च में 'क्रिसमस डे' पर सुबह 9.30 बजे पहले अंग्रेजी में प्रार्थना की जाएगी. इसके बाद सुबह 11 बजे हिंदी में प्रार्थना होगी. इसके साथ ही यहां कैंडल जलाकर लोग क्रिसमस के गाने भी गाएंगे.
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कोरोना नियमों का रखा जाएगा ध्यान
बता दें, कोरोना काल के बाद इस साल पहली बार क्राइस्ट चर्च में क्रिसमस डे धूमधाम से मनाया जाएगा, जिसमें स्थानयी लोगों के साथ-साथ दूसरे राज्यों से सैलानियों की पहुंचने की भी उम्मीद है. कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए यहां हर तरह की सावधानियां बरतने की भी बात कही जा रही है.
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यह है शिमला के क्राइस्ट चर्च का इतिहास
बता दें, शिमला का क्राइस्ट चर्च उत्तरी भारत का दूसरा सबसे पुराना चर्च है. इसे शिमला का ताज कहा जाता है. इसे चर्च को एंग्लीकेन ब्रिटिशन कम्युनिटी के लिए बनाया गया था. 1844 में कर्नल जेटी बोयलियो ने इसका डिजाइन तैयार किया था और 1846 में इसकी नीव रखी गई थी. करीब 10 बाद 1856 तक यह बनकर तैयार हो गया था.
क्राइस्ट चर्च में लगी पांच खिड़कियों की यह है मान्यता
शिमला के क्राइस्ट चर्च में लगी पांच बड़ी खिड़कियों को लेकर मान्यता है कि यह ईसाई धर्म के विश्वास, धैर्य, उम्मीद, विनम्रता और परोपकार का प्रतीक माना जाता है.
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