Delhi Imam Salary: दिल्ली में इमामों की सैलरी कई महीनों से नहीं आई है. वह दिल्ली सरकार और एलजी दोनों का ही दरवाज़ा खटखटा चुके हैं. लेकिन, उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ है.
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Delhi Imam Salary: इमामों की सैलरी पर संकट अभी तक बना हुआ है, वक्फ के अंदर आने वाली मस्जिदों के इमामों और मोअज्जिनों की सैलरी कई सालों से रुकी हुई है. 5-5 महीनों की ती किश्त में कुछ इमामों की सैलरी दी गई. हालांकि, अभी भी हालात ऐसे ही बने हुए हैं.
इस मसले को लेकर एंग्लो अरेबिक स्कूल अजमेरी गेट के इमाम मुफ्ती मोहम्मद कासिम कि सैलरी 2024 के मई महीने से रुकी हुई है. इसमें इमाम और मुअज्जिन दोनों ही शामिल हैं. जिनकी तादाद 250 से ज्यादा है. उन्होंने बताया कि काफी मेहनत के बाद वक्फ बोर्ड ने एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि पहले 207 इमामों और 73 मुअज्जिन को पैसा दिया गया था, लेकिन अब 185 इमामों और 59 मुअज्जिनों को पैसा दिया जाएगा. इस सर्कुलर में करीब 36 को अवैध बताया गया, और यह अभी भी 36 मस्जिदों में काम कर रहे हैं.
उन्होंने आगे बताया कि सैलरी देने की दिक्कत 2018 के बाद बनी. पहले इमाम को जो सैलरी दी जाती थी, वो वक्फ की होने वाली आमदनी से दी जाती थी, लेकिन 2018 के बाद वक्फ बोर्ड ने एक फैसला लिया और इमामों को ग्रांट पर डाल दिया और कहा कि ग्रांट पास होगा तो आपको बढ़ कर सैलकी मिलेगी. उस वक्त इस मामले में सही कार्रवाई नहीं हुई, जिस वजह से आज यह हालात पैदा हो गए हैं.
एक दूसरे इमाम मोहम्मद अरशद वारसी कहते हैं कि यह ऐसा तबका है जिसे हमेशा नज़रअंदाज़ किया जाता है. इस मसले को कोई नहीं उठाता है. उन्होंने आगे बताया कि करबी 3 सालों से सैलरी को लेकर दिक्कत हो रही है. हम लोगों की सैलरी 5-5 महीने की तीन किश्त में मली है. जिनमें से कुछ लोगों को केवल दो किस्त ही मिली हैं. अभी हम लोगों की सैलरी 13-14 महीने से रुकी हुई है, और कई लोगों की 18 से 19 महीने की रुकी हुई है.
आईएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक फतेहपुरी के अंदर आलिया मदरसा में तीन सालों से सैलरी नहीं आई है. इनमें से कई लोग ऐसे हैं, जिनका इंतेकाल हो चुकी है. अब तो बोर्ड के लोगों की भी सैलरी नहीं मिल पाती है, वह खुद परेशान रहते हैं.
इमामों ने कहा कि उन्होंने इस मसले को लेकर आतिशी से बात की. हालांकि, इसका कोई हल नहीं निकला. उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार के अंतर्गत बहुत सारी संस्थाएं आती हैं, उनका वेतन कभी नहीं रुकता है. आखिर, इमाम और मोअज्जिनों की सैलरी क्यों रोक दी जाती है. हम लोगों की सैलरी काफी मामूली है, जिसमें एक परिवार चलाना भी काफी मुश्किल है.
मोहम्मद अरशद वारसी कहते हैं कि पांच साल पहले सैलरी में इज़ाफा किया गया था. जहां पहले सैलरी 10 हज़ार थी, अब उसे बढ़ाकर 18 हज़ाक कर दी गई है. लेकिन, महंगाई के हिसाब से यह बहुत कम है. इमाम ने बताया कि उन्होंने इस सिलसिले में दिल्ली के एलजी से भी मुलाकात की थी. एलजी साहब ने हमारी बात को सुना और जिसका नतीजा यह हुआ कि 5-5 महीने की सैलरी जारी की गई.