UCC: मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद का कहना है कि वह उत्तराखंड में लागू हुए समान नागरिक संहिता के खिलाफ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे. उनका कहना है कि यह समान नागरिक संहिता नहीं है.
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UCC: उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है. मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद समान नागरिक संहिता की मुखालफत कर रहा है. संगठन ने सोमवार को कहा कि वह इस फैसले को अदालतों में चुनौती देगा, साथ ही कहा कि उसके वकीलों ने इसके संवैधानिक और कानूनी पहलुओं की जांच की है. भाजपा के इक्तदार वाला राज्य उत्तराखंड सोमवार को समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया. जो सभी मजहब के हर नागरिक के लिए समान कानूनों को बढ़ावा देता है और शादी, तलाक और जायदाद पर व्यक्तिगत कानूनों को मानकीकृत करता है.
CM धामी का बयान
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून में अपने आधिकारिक आवास पर एक प्रोग्राम में समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन का ऐलान करते हुए कहा कि इसके साथ ही सभी मजहब के लोगों के संवैधानिक और नागरिक हक एक समान हो गए हैं.
जमीयत का बयान
एक बयान में, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा कि इसके क्रियान्वयन से नागरिकों की मजहबी आजादी पर हमला हुआ है क्योंकि "कानून भी पूरी तरह से भेदभाव और पूर्वाग्रह पर आधारित है". बयान में आगे कहा गया है कि जमीयत अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के मार्गदर्शन में संगठन उत्तराखंड हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों में इस फैसले को चुनौती देगा. बयान में कहा गया है कि जमीयत के वकीलों ने इस कानून के संवैधानिक और कानूनी पहलुओं की गहन जांच की है. बयान में कहा गया है कि संगठन का मानना है कि चूंकि यह कानून भेदभाव और पूर्वाग्रह पर आधारित है, इसलिए इसे समान नागरिक संहिता नहीं कहा जा सकता. एक और अहम सवाल यह उठता है कि क्या किसी राज्य सरकार के पास ऐसा कानून बनाने का हक है?
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शरीयत के खिलाफ कानून
जमीयत के एक धड़े के प्रमुख अरशद मदनी ने उत्तराखंड सरकार के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई. अरशद मदनी ने कहा, "हम शरीयत के खिलाफ किसी भी कानून को नहीं मान सकते, क्योंकि एक मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है, लेकिन वह अपने शरीयत और मजहब से कभी समझौता नहीं कर सकता." उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में लागू UCC ने संविधान के अनुच्छेद 366, खंड 25 के तहत अनुसूचित जनजातियों को छूट दी है और यह दलील दी गई है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके हक महफूज हैं. अरशद मदनी ने सवाल उठाया कि अगर संविधान की एक धारा के तहत अनुसूचित जनजातियों को UCC के दायरे से बाहर रखा जा सकता है, तो संविधान की धारा 25 और 26 के तहत मुसलमानों को मजहब आजादी क्यों नहीं दी जा सकती, जिसमें मजहब आजादी की गारंटी दी गई है.
लोगों के बीच भेदभाव क्यों?
अरशद मदनी ने पूछा, "अगर यह 'समान' नागरिक संहिता है, तो नागरिकों के बीच यह भेद क्यों है?" उन्होंने कहा, "हमारी कानूनी टीम ने कानून के कानूनी पहलुओं की समीक्षा की है और जमीयत उलमा-ए-हिंद इस फैसले को एक साथ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने जा रही है."