Haji Malanggad Controversy: एकनाथ शिंदे के बयान के बाद हाजी मलंगगढ़ विवाद बढ़ रहा है. इस मसले में एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी का बयान भी सामने आया है.
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Haji Malanggad Controversy: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मलंगगढ़ या हाजी मलंग दरगाह का मुद्दा उठा दिया है. इस दरगाह को हिंदुओं का एक वर्ग मंदिर होने का दावा करता है. एकनाथ शिंदे ने इसे "मुक्त" करने की कसम खाई है. शिंदे की इस टिप्पणी ने दशकों पुराने मुद्दे पर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. सीएम के इस बयान की असदुद्दीन ओवैसी ने आलोचना की है. मलंगगढ़ महाराष्ट्र के ठाणे जिले के कल्याण में मौजूद है. दिलचस्प बात यह है कि महाराष्ट्र सरकार अपनी वेबसाइट पर इसे हाजी मलंगगढ़ के नाम से दिखाती है.
एकनाथ शिंदे ने बुधवार को ठाणे में एक रैली में कहा, "मैं मलंगगढ़ के बारे में आपकी भावनाओं को जानता हूं. आनंद दिघे ने मलंगगढ़ का मुक्ति आंदोलन शुरू किया, जिसके बाद हमने जय मलंग श्री मलंग कहना शुरू कर दिया." आनंद दिघे शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के राजनीतिक गुरु हैं. शिंदे आगे कहते हैं, "मैं आपको बताना चाहता हूं कि कुछ चीजें हैं जो सार्वजनिक रूप से नहीं कही जा सकती हैं. मुझे पता है कि मलंगगढ़ की मुक्ति के बारे में आपके दिल में कुछ निश्चित धारणाएं हैं. मुझे यह कहने दीजिए, एकनाथ शिंदे तब तक चुप नहीं बैठेगा तब तक वह आपकी इच्छाए पूरी नहीं कर देता."
इस विवाद के केंद्र में हाजी मलंग दरगाह है, जो 300 साल पुरानी दरगाह है, जो 12वीं सदी में मध्य पूर्व से भारत आए सूफी संत बाबा अब्दुर रहमान मलंग को समर्पित है. ऐतिहासिक रूप से, मलंगगढ़ को सातवीं शताब्दी में मौर्य राजवंश के राजा नलदेव के जरिए बनवाया गया था. बाद में यह 17वीं शताब्दी में अंग्रेजों के जरिये जीतने से पहले मराठों के हाथों में आ गया. यह किला पहाड़ी के तीन छोटे हिस्सों पर बना है और मुंबई के बाहरी इलाके कल्याण में मौजूद है.
हिंदू समुदाय का एक वर्ग इसे मछिंद्रनाथ समाधि के तौर पर मनता है, जो नाथ संप्रदाय परंपरा में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को समर्पित मंदिर है. यह दावा बताता है कि यह समाधि वास्तव में नवनाथ के अवतार श्री मच्छिन्द्रनाथ की है. शिव सेना, इस स्थल को हिंदू मंदिर के रूप में पुनः प्राप्त करने के अभियान में सबसे आगे रही है. 1996 में स्थानीय हिंदू, शिव सेना के आनंद दीघे के जरिए समर्थित और पार्टी प्रमुख बाला साहेब ठाकरे के के जरिए इसका नाम मलंग से मलंगगढ़ कर दिया गया था.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने, 1968 के एक मामले में, इस स्थल को एक दरगाह के रूप में संदर्भित किया था, और 1882 के बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गजेटियर जैसे ऐतिहासिक दस्तावेज़ मलंगगढ़ में हाजी अब्द-उल-रहमान की कब्र के अस्तित्व की पुष्टि करते हैं. इन डॉक्यूमेंट्स में मछिंद्रनाथ की समाधि का कोई जिक्र नहीं है.
इस मसले को लेकर एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी का बयान आया है. उन्होंने कहा, "महाराष्ट्र के सीएम और डिप्टी सीएम खुलेआम आपराधिक कामो का जश्न मना रहे हैं और लोगों को अपराध करने के लिए उकसा रहे हैं. यह आपराधिक बाबरी फैसले का सीधा परिणाम है. फैसले ने ऐसे कामो को बढ़ावा दिया होगा." उन्होंने आगे कहा,"जिन लोगों ने संवैधानिक शपथ ली है, उन्हें मुस्लिम पूजा स्थलों को निशाना बनाने में कोई शर्म नहीं आती है."