Shabeena Adeeb Poetry: शबीना अदीब उर्दू की मशहूर शायरा हैं. उन्होंने इश्क के अलावा जदीद मुद्दों पर शायरी लिखी है. यहां पेश कर रहे हैं शबीना अदीब के लिखी हुई कुछ बेहतरीन और चुनिन्दा गजलें.
Trending Photos
Shabeena Adeeb Poetry: शबीना अदीब उर्दू की जानी मानी शायरा हैं. उनका ताल्लुक उत्तर प्रदेश के कानपुर से है. उनकी पैदाइश 27 दिसंबर 1974 को हुई थी. उन्होंने उर्दू में मौल्लिम-ए-उर्दू की तालीम हासिल की है. उन्होंने 11 जुलाई साल 1997 में जौहर कानपुरी से शादी की थी. जौहर कानपुरी भी एक मशहूर शायर हैं.
शबीना अदीब की शायरी
शबीना अदीब ने 15 साल की उम्र से ही शेर-ओ-शायरी में अपना हुनर और सलाहियत का मुजाहिरा करना शुरू कर दिया था. शबीना अदीब के मां-बाप उनकी शायरी के खिलाफ थे. लेकिन उनके दादा और नाना ने उनको उर्दू अदब और शायरी के शोबे में आगे बढ़ने के लिए हमेशा रागिब किया और होसला अफजाई की. साल 2007 में शबीना की पहली किताब 'तुम मेरे पास हो' छपी. शबीना अदीब शायर हक बनारसी को अपना आदर्श मानती हैं, जबकि मिर्जा गालिब, हक बनारसी, मीर तकी मीर, जोश मलिहाबादी और राहद इंदौरी जैसे शायरों और उनके कलाम को वह बेहद पसंद करती हैं. शबीना अदीब आज के नौजवान पीढ़ी के बीच काफी मुमताज़ शायर हैं. शबीना अदीब अक्सर मुशायरों में शिरकत करती हैं, जहाँ नौजवान नस्ल उन्हें बड़ी शिद्दत के साथ सुनती है.
सबीना अदीब की गजल
शबीना अदीब की गजल 'ख़मोश लब हैं झुकी हैं पलकें' बहुत मशहूर हुई है. वह जहां भी मुशायरा में जाती हैं, वहां उनसे इस गजल को पढ़ने की गुजारिश की जाती है. इस गजल का हिस्सा 'तुम्हारा लहजा बता रहा है 'तुम्हारी दौलत नई-नई है' बहुत मशहूर है. एक तरह से कहा जाए तो शबीना अदीब का ये शेर उनका आइकोनिक शेर बन गया है. ये शेर उन लोगों की तर्जुमानी करता है, जो ज़रा सी दौलत आते ही इतराकर चलते हैं. पैसे आते ही उनकी चाल-ढाल और उनका लहजा बदल जाता है.
ख़मोश लब हैं झुकी हैं पलकें दिलों में उल्फ़त नई नई है
अभी तकल्लुफ़ है गुफ़्तुगू में अभी मोहब्बत नई नई हैअभी न आएगी नींद तुम को अभी न हम को सुकूँ मिलेगा
अभी तो धड़केगा दिल ज़ियादा अभी ये चाहत नई नई हैबहार का आज पहला दिन है चलो चमन में टहल के आएँ
फ़ज़ा में ख़ुशबू नई नई है गुलों में रंगत नई नई हैजो ख़ानदानी रईस हैं वो मिज़ाज रखते हैं नर्म अपना
तुम्हारा लहजा बता रहा है तुम्हारी दौलत नई नई हैज़रा सा क़ुदरत ने क्या नवाज़ा कि आ के बैठे हो पहली सफ़ में
अभी से उड़ने लगे हवा में अभी तो शोहरत नई नई हैबमों की बरसात हो रही है पुराने जाँबाज़ सो रहे हैं
ग़ुलाम दुनिया को कर रहा है वो जिस की ताक़त नई नई है
शबीना अदीब की एक दूसरी गजल है, जो बहुत मशहूर है. यह गजल उन लोगों के लिए है, जो लोग विदेश में पैसे कमाने चले जाते हैं. लेकिन यहां उनकी बीवी उनके आने की हर दिन राह तकती है. इस गजल के एक-एक लफ्ज में दर्द है.
तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो,
दिल दुखे जिससे अब ऐसी न कोई बात कहो,रोज़ी रोटी के लिए अपना वतन मत छोड़ो,
जिसको सींचा है लहू से वो चमन मत छोड़ो,जाके परदेस में चाहत को तरस जाओगे,
ऐसी बेलौस मोहब्बत को तरस जाओगे,फूल परदेस में चाहत का नहीं खिलता है,
ईद के दिन भी गले कोई नहीं मिलता है,तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो,
मैं कभी तुमसे करूंगी न कोई फरमाइश,
ऐश ओ आराम की जागेगी न दिल में ख्वाहिश,फातिमा बीबी की बेटी हूँ भरोसा रखो,
मैं तुम्हारे लिए जीती हूँ भरोसा रखो,लाख दुःख दर्द हों हंस-हंस के गुज़ार कर लूंगी,
पेट पर बाँध के पत्थर भी बसर कर लूंगी,तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो.
तुम अगर जाओगे परदेस सजा कर सपना,
और जब आओगे चमका के मुकद्दर अपना,मेरे चेहरे की चमक ख़ाक में मिल जायेगी,
मेरी जुल्फों से ये खुशबू भी नहीं आएगी,हीरे और मोती पहन कर भी न सज पाऊँगी,
सुर्ख जूड़े में भी बेवा सी नज़र आऊंगी,तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो.
दर्दे फुरकत गम-ए-तन्हाई न सह पाउंगी,
मैं अकेली किसी सूरत भी न रह पाऊंगी,मेरे दामन के लिए बाग़ में कांटे न चुनो,
तुमने जाने की अगर ठान ली दिल में तो सुनो,अपने हाथों से मुझे ज़हर पिला कर जाना,
मेरी मिट्टी को भी मिट्टी में मिलकर जाना,तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो.