बैकफुट पर असम सरकार; बांग्लादेश से आए रिफ्यूजी को मिलेगी नागरिकता, चाहे जो भी हो उनका धर्म
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam2476281

बैकफुट पर असम सरकार; बांग्लादेश से आए रिफ्यूजी को मिलेगी नागरिकता, चाहे जो भी हो उनका धर्म

Citizenship Act S.6A: नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए को 1985 में बांग्लादेश से असम में अवैध आव्रजन को संबोधित करने के लिए असम समझौते के हिस्से के रूप में पेश किया गया था. जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी. इस बीच कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है.

बैकफुट पर असम सरकार; बांग्लादेश से आए रिफ्यूजी को मिलेगी नागरिकता, चाहे जो भी हो उनका धर्म

Citizenship Act S.6A: सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने  आज यानी 17 अक्टूबर को असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में संशोधन के माध्यम से नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा. 4-1 से सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की वैधता की पुष्टि की. जिसमें अवैध प्रवासियों को नागरिकता दिया जाएगा. इस कानून के तहत 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच बांग्लादेश से असम में दाखिल होने वाले सभी लोगों को नागरिकता दी जाएगी.

कोर्ट ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का एक राजनीतिक समाधान था. जस्टिस सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश और मनोज मिश्रा ने अपने बहुमत के फैसले में कहा कि संसद के पास प्रावधान को लागू करने की विधायी क्षमता है. जस्टिस पारदीवाला ने धारा 6ए को असंवैधानिक ठहराने के लिए असहमतिपूर्ण फैसला दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए पर अपने फैसले में कहा, "किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की मौजूदगी का मतलब आर्टिकल 29(1) का उल्लंघन नहीं है." 

नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए क्या है? 
नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए को 1985 में बांग्लादेश से असम में अवैध आव्रजन को संबोधित करने के लिए असम समझौते के हिस्से के रूप में पेश किया गया था. यह 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है और 1 जनवरी, 1966 और 24 मार्च, 1971 के बीच आने वाले लोगों को 10 साल की प्रतीक्षा अवधि के बाद नागरिक के रूप में पंजीकरण करने की अनुमति देता है, जिसके दौरान वे मतदान नहीं कर सकते.

 24 मार्च, 1971 के बाद आने वालों का पता लगाया जाएगा और उन्हें निर्वासित किया जाएगा. धारा 6ए विवादास्पद रही है, जनसांख्यिकीय चिंताओं के कारण इसकी संवैधानिकता को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है.

Trending news