जमात-ए-इस्लामी हिंद ने दिल्ली में एक संवादाता सम्मेलन में कहा है कि नफरती भाषण को लेकर सरकारों द्वारा आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई ने करने के कारण ऐसे लोगों के हौसले बढ़ रहे हैं. संगठन ने सरकार और चुनाव आयोग से ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है.
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नई दिल्लीः मुस्लिम धार्मिक और सामाजिक संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद ने नफरती भाषण पर सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियों का हवाला देकर शनिवार को इल्जाम लगाया है कि ऐसा लगता है इस मुद्दे पर सरकारों की खामोशी ऐसे करने वालों में शामिल लोगों का हौसला बढ़ा रही है. जमात-ए-इस्लामी हिंद के नायब सद्र मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने सरकार से नफरती भाषण देने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई की अपील की है. उन्होंने यह भी कहा कि बहुत से लोग नफरती एजेंडे का इस्तेमाल राजनीतिक भविष्य या सियासत में तेज़ी से आगे बढ़ने की कोशिश के तहत कर रहे हैं.
सरकारों का रवैया बहुत निराशाजनक
मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने भारत के निर्वाचन आयोग से मामले का संज्ञान लेने की अपील की है. उन्होंने किसी भी सरकार का नाम लिए बिना कहा, “ सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि सरकारों को नफरत भरे भाषणों के खिलाफ कानूनों के मुताबिक कार्रवाई करनी चाहिए. शीर्ष अदालत सिर्फ इस पर जोर दे सकती है या इशारा कर सकती है, लेकिन हमें लगता है कि नफरत फैलाने वाले भाषणों के प्रति सरकारों का रवैया बहुत निराशाजनक है.”
पब्लिकली नफरत का कारोबार फैला रहे हैं जनप्रतिनिधि
मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने बिना किसी का नाम लिए कहा, ’’ दिल्ली में लोगों ने जिन्हें जनप्रतिनिधि के तौर पर चुना है, वे खुले तौर पर पब्लिकली नफरत का कारोबार फैला रहे हैं और धार्मिक आधार पर समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं.“ भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पश्चिमी दिल्ली के सांसद परवेश वर्मा ने हाल में उस वक्त विवाद खड़ा कर दिया था, जब उन्होंने उत्तर पूर्वी दिल्ली में एक हिंदू नौजवान की हत्या के विरोध में आयोजित एक प्रोग्राम में कथित तौर पर एक वर्ग के बहिष्कार की अपील की थी. भाजपा के विधायकों व सांसदों समेत कई नेताओं और कई धर्मगुरुओं पर भड़काऊ भाषण देने का इल्जाम लगा है.
अनुच्छेद 341 पर उठाए सवाल
अनुच्छेद 341 का हवाला देते हुए, इंजीनियर ने कहा कि अगर कोई दलित, हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के अलावा किसी दूसरे मजहब को अपनाता है तो इस अनुच्छेद का एक प्रावधान उसका अनुसूचित जाति का दर्जा वापस ले लेता है. उन्होंने इल्जाम लगाया कि यह प्रावधान भेदभावपूर्ण है, और कहा कि इसे लोकतंत्र की भावना के तहत हटा दिया जाना चाहिए. इंजीनियर ने दावा किया है कि अनुसूचित जाति का दर्जा शख्स को इसलिए दिया जाता है, क्योंकि दलितों का ऐतिहासिक रूप से शोषण किया गया है.” उन्होंने पूछा, “ अगर कोई शख्स संवैधानिक नियमों और अपनी व्यक्तिगत इच्छा के अनुसार एक अलग आस्था को चुनता है, तो उसका यह दर्जा वापस लेना, क्या यह सही है?“
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