Urdu Poetry in Hindi: मुझ को बर्बाद ख़ुद ही होना था, तुम पे इल्ज़ाम...

Siraj Mahi
Jan 28, 2025

मुझ को बर्बाद ख़ुद ही होना था, तुम पे इल्ज़ाम बे-सबब आए

भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है, दर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है

रात पड़ते ही हर इक रोज़ उभर आती है, किस के रोने की सदा ज़ात के सन्नाटे में

ऐसा न हो कि ताज़ा हवा अजनबी लगे, कमरे का एक-आध दरीचा खुला भी रख

हक़ीक़ी चेहरा कहीं पर हमें नहीं मिलता, सभी ने चेहरे पे डाले हैं मस्लहत के नक़ाब

बिछड़ के तुझ से अजब हाल हो गया मेरा, तमाम शहर पराया दिखाई देता है

मैं उस को भूल जाऊँ रात ये माँगी दुआ मैं ने, करूँ क्या मैं अगर मेरी दुआ वापस पलट आए

कुर्सी मेज़ किताबें? बिस्तर अनजाने से तकते हैं, देर से अपने घर जाएँ तो सब कुछ यूँही लगता है

वस्ल का गुल न सही हिज्र का काँटा ही सही, कुछ न कुछ तो मिरी वहशत का सिला दे मुझ को

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