Urdu Poetry in Hindi: पहले रग रग से मिरी ख़ून निचोड़ा उस ने, अब ये कहता है कि...

Siraj Mahi
Feb 01, 2025

लिया जो उस की निगाहों ने जाएज़ा मेरा, तो टूट टूट गया ख़ुद से राब्ता मेरा

वा'दा मुआवज़े का न करता अगर ख़ुदा, ख़ैरात भी सख़ी से न मिलती फ़क़ीर को

तू चले साथ तो आहट भी न आए अपनी, दरमियाँ हम भी न हों यूँ तुझे तन्हा चाहें

वतन की रेत ज़रा एड़ियाँ रगड़ने दे, मुझे यक़ीं है कि पानी यहीं से निकलेगा

मुझे ख़ुद अपनी तलब का नहीं है अंदाज़ा, ये काएनात भी थोड़ी है मेरे कासे में

डुबोने वालों को शर्मिंदा कर चुका हूँगा, मैं डूब कर ही सही पार उतर चुका हूँगा

मैं अपने घर में हूँ घर से गए हुओं की तरह, मिरे ही सामने होता है तज़्किरा मेरा

पहले रग रग से मिरी ख़ून निचोड़ा उस ने, अब ये कहता है कि रंगत ही मिरी पीली है

ज़िंदगी तुझ से हर इक साँस पे समझौता करूँ, शौक़ जीने का है मुझ को मगर इतना भी नहीं

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