Urdu Poetry in Hindi: वो आइना हूँ जो कभी कमरे में सजा था, अब गिर के जो टूटा हूँ तो...

Siraj Mahi
Jan 29, 2025

रास्ता रोके हुए कब से खड़ी है दुनिया, न इधर होती है ज़ालिम न उधर होती है

वो आइना हूँ जो कभी कमरे में सजा था, अब गिर के जो टूटा हूँ तो रस्ते में पड़ा हूँ

आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी, शम्अ जलने भी न पाई रौशनी होने लगी

एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई, पहले मैं दीवाना था और अब हैं दीवाने कई

अंधेरा माँगने आया था रौशनी की भीक, हम अपना घर न जलाते तो और क्या करते

जी में आता है कि दें पर्दे से पर्दे का जवाब, हम से वो पर्दा करें दुनिया से हम पर्दा करें

ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी, मिरी ख़ैरियत भी पूछी किसी और की ज़बानी

दिल की उजड़ी हुई हालत पे न जाए कोई, शहर आबाद हुए हैं इसी वीराने से

उम्र भर की बात बिगड़ी इक ज़रा सी बात में, एक लम्हा ज़िंदगी भर की कमाई खा गया

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