Urdu Poetry in Hindi: गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ, सुना है तेरे करम...

Siraj Mahi
Feb 04, 2025

दर्द हो तो दवा भी मुमकिन है, वहम की क्या दवा करे कोई

क्यूँ किसी से वफ़ा करे कोई, दिल न माने तो क्या करे कोई

पहाड़ काटने वाले ज़मीं से हार गए, इसी ज़मीन में दरिया समाए हैं क्या क्या

पुकारता रहा किस किस को डूबने वाला, ख़ुदा थे इतने मगर कोई आड़े आ न गया

गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ, सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं

सब्र करना सख़्त मुश्किल है तड़पना सहल है, अपने बस का काम कर लेता हूँ आसाँ देख कर

मुझे ऐ नाख़ुदा आख़िर किसी को मुँह दिखाना है, बहाना कर के तन्हा पार उतर जाना नहीं आता

किसी के हो रहो अच्छी नहीं ये आज़ादी, किसी की ज़ुल्फ़ से लाज़िम है सिलसिला दिल का

मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा, मुझे सर मार कर तेशे से मर जाना नहीं आता

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