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Kaal Sarp Dosh Nivaran ke Upay: ज्योतिष शास्त्र में राहु- केतु को सर्प की संज्ञा दी गई है. राहु सर्प का फन और केतु उसकी पूंछ है. कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य स्थित हों, तो काल सर्प योग बनता है. जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आ जाते है, तो लाइफ में एक तरह का लॉक लग जाता है. सभी ग्रह इस लॉक में फंस कर रह जाते हैं. ऐसे में स्ट्रगल अधिक करना पड़ता है. काल सर्प योग नाम से तो अत्यधिक खतरनाक लगता है, लेकिन उससे बहुत ज्यादा भयभीत होने की जरूरत नहीं है. कुछ काल सर्प योग ही घातक साबित होते हैं, ऐसी स्थिति में काल सर्प योग के कुप्रभावों से जातक को सावधान रहते हुए उनका उपाय अवश्य करना चाहिए.
1- अनंत कालसर्प योग – लग्न से सप्तम भाव तक राहु एवं केतु अथवा केतु एवं राहु के मध्य सूर्य, मंगल, शनि, शुक्र, बुध, गुरू, और चंद्रमा स्थित हों तो अनंत नामक काल सर्प योग निर्मित होता है. इस योग से ग्रस्त जातक का व्यक्तित्व एवं वैवाहिक जीवन कमजोर होता है. प्रथम व सप्तम भाव के मध्य कालसर्प योग में जन्मा व्यक्ति स्वतंत्र विचारों वाला, निडर होता है व आत्म सम्मान को सदा ऊपर रखता है लेकिन जीवन में संघर्ष करना पड़ता है.
2- कुलिक काल सर्प योग – द्वितीय से अष्टम भाव तक राहु केतु या केतु राहु के मध्य सभी ग्रह स्थित हों, तो कुलिक काल सर्प योग बनता है. इस योग से ग्रस्त जातक को धन और स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
3- वासुकी काल सर्प योग – तृतीया से नवम भाव तक राहु केतु या केतु राहु के मध्य सभी ग्रह स्थित हों, तो वासुकी काल सर्प योग होता है. इस योग से जातक को भाई एवं पिता की ओर परेशानी मिलती है और पराक्रम में कमी आती है.
4- शंखपाल काल सर्प योग – चतुर्थ से दशम भाव के मध्य राहु केतु या केतु राहु के मध्य अन्य सातों ग्रह स्थित हों, तो शंखपाल नामक काल सर्प योग बनता है. इसके कारण मातृ सुख में कमी, व्यापार में अवरोध, पद एवं प्रतिष्ठा में कमी आ सकती है.
5- पद्म काल सर्प योग – पंचम तथा एकादश भाव के मध्य राहु- केतु या केतु- राहु के बीच सभी ग्रह स्थित होने पद्म नामक काल सर्प योग बनता है. इससे ग्रस्त जातक को विद्याध्ययन, संतान सुख और स्नेह संबंधों में कमी आ सकती है.
6- महापद्म काल सर्प योग – छठवें से बारहवें भाव के मध्य राहु केतु या केतु राहु के बीच सभी ग्रहों की स्थिति से महापद्म नामक काल सर्प योग बनता है. इस योग के कारण जातक को रोग, कर्ज और शत्रुओं का अधिक सामना करना पड़ सकता है.
7- तक्षका काल सर्प योग – सप्तम से प्रथम के मध्य राहु केतु या केतु राहु के बीच सभी ग्रह स्थित हों, तो तक्षक नामक काल सर्प योग बनता है. इस योग के कारण जातक का वैवाहिक जीवन दुखमय हो सकता है. उसे साझेदारी में हानि भी हो सकती है.
8- कर्कोटक काल सर्प योग – अष्टम भाव सें द्वितीय भाव के मध्य राहु केतु या केतु राहु के बीच सभी ग्रहों की स्थिति से कर्कोटक नामक कालसर्प योग निर्मित होता है. इससे ग्रस्त जातक की आयु क्षीण हो सकती है. इसके अलावा बीमारी, धन हानि या वाणी दोष संबंधी समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है.
9- शंखचूड़ काल सर्प योग – नवम एवं तृतीया भावों के बीच राहु केतु अथवा केतु राहु के बीच अन्य सातों ग्रह स्थित हो, तो शंखचूड़ नामक काल सर्प योग बनता है. इस कुयोग के कारण भाग्योदय में अवरोध, नौकरी में दिक्कतें, मुकदमेबाजी से परेशान होना पड़ सकता है.
10- घातक काल सर्प योग – दशम तथा चतुर्थ भावों के मध्य यदि राहु केतु या केतु राहु के बीच सभी ग्रह स्थित हों, तो घातक काल सर्प योग बनता है. यह योग व्यापार में घाटा, प्रतिष्ठा में कमी, अधिकारियों से अनबन और सुख शांति में बाधा पहुंचाता है.
11- विषधर काल सर्प योग – ग्यारहवें से पांचवें भाव के बीच राहु केतु या केतु राहु के मध्य सभी ग्रह बैठे हों, तो विषधर काल सर्प योग बनता है. इससे ज्ञानार्जन में रुकावट, परीक्षा में असफलता, संतान सुख में कमी और अनपेक्षित हानि आदि का सामना करना पड़ता है.
12- शेषनाग काल सर्प योग – द्वादश से छठवें भाव में कालसर्प में जन्मे व्यक्ति की आंखें अक्सर कमजोर होती है, पढ़ाई आदि में अत्यधिक प्रयासों के बाद ही सफलता प्राप्त होती है. इसके कारण जातक अपने घर या देश से दूर रह संघर्ष करता है.
- महामृत्युंजय महामंत्र का 1 लाख 32 हजार बार रुद्राक्ष की माला से जाप करें या कराएं.
- दुर्गा सप्तशती का नित्य पाठ करने से भगवान आशुतोष प्रसन्न होते हैं.
- शिवलिंग पर दूध, गंगाजल तथा शहद मिलाकर अभिषेक करें, उसके उपरांत बिल्वपत्र तथा पुष्प चढ़ाने से काल सर्प योग शांत होता है.
- सावन या शिवरात्रि में रुद्राभिषेक कराने से विशेष लाभ होता है.
- यदि लग्न में बृहस्पति व शुक्र बैठे हों या राहु पर दृष्टि पड़े, तो कालसर्प योग कष्ट पैदा नहीं करता.
- घर की चौखट, मुख्य द्वार पर चांदी का स्वास्तिक चिह्न बनवाकर लगाएं.
- घर में मोर पंख रखें व प्रातः उठकर व सोने से पूर्व, भगवान शिव व कृष्ण भगवान का ध्यान कर देखा करें.
- शिव उपासना एवं निरन्तर रुद्रसूक्त से अभिमंत्रित जल से स्नान करने पर यह योग शिथिल हो जाता है.
- शिवलिंग पर तांबे का सर्प चढ़ाएं.
- चांदी के सर्प के जोड़े को बहते पानी में छोड़ दें. इससे काल सर्प योग में चमत्कारिक लाभ होता है.
- प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्र में उड़द या मूंग की एक मुट्ठी दाल राहु का मंत्र जप कर किसी भिखारी को दे दें, यदि दान लेने वाला कोई न मिले, तो उसे बहते पानी में छोड़ देना चाहिए. इस प्रकार 72 बुधवार तक करते रहने से अवश्य लाभ होता है.
- एक चांदी की अंगूठी जिसकी आकृति सर्पाकार हो, उसकी एक आंख में गोमेद और दूसरी आंख में लहसुनिया लगवा लें. इस कालसर्प योग की अंगूठी को बुधवार के दिन सूर्योदय के समय मध्यमा में धारण करनी चाहिए. अंगूठी धारण करने के बाद सवा किलो हवन सामग्री किसी भी मंदिर में दान दें.
- जातक के शत्रु अधिक हों या कार्य में निरंतर बाधा आती हो, तो सर्प धारण किए हुए शंकर जी की उपासना करनी चाहिए. उपासना करते समय शिव और सर्प दोनों का ध्यान करना चाहिए. रुद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए.
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