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फ्रांस में 13 नवंबर (शुक्रवार) की रात हुए आतंकवादी हमलों के बाद दुनिया भर में इससे निपटने के लिए संकल्प व्यक्त किए जा रहे हैं। दुनिया के शक्तिशाली राष्ट्र आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के खात्मे के लिए एकजुट वैश्विक प्रयास पर जोर दे रहे हैं। देशों का मानना है कि आईएसआईएस से अकेले नहीं निपटा जा सकता उसे हराने और दुनिया से खत्म करने के लिए एकजुट होकर सामूहिक प्रयास करने की जरूरत है। फ्रांस हमले के बाद दुनिया के ताकतवर देश आतंकवाद के खिलाफ एक सुर में बोल रहे हैं। यह सही है कि आईएसआईएस से अकेले निपटना आसान नहीं है। इस दुर्दांत आंतकी संगठन पर नकेल कसने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे।
अमेरिका के नेतृत्व में उसके सहयोगी देश पिछले एक साल से सीरिया में आईएसआईएस पर हवाई हमले कर रहे हैं लेकिन आतंकी संगठन का दायरा सिमटने के बजाय फैलता जा रहा है। पहले वह सीरिया और इराक में ही लोगों का कत्ल करता था लेकिन उसने अब अपनी चौहद्दी लांघ दी है। बेरूत और फ्रांस इसके उदाहरण हैं। वह दिनोंदिन ग्लोबल होता जा रहा है। रूस, फ्रांस और अब ब्रिटेन के हवाई हमलों ने उसे कमजोर करने का काम किया है लेकिन बात केवल इतने से ही नहीं बनेगी। देशों को आपसी हितों और मतभेदों को भुलाकर एक साथ आना होगा और इस बुराई के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़नी होगी।
आईएसआईएस 21वीं सदी का भस्मासुर है। इस चरमपंथी संगठन के मंसूबे कितने खतरनाक हैं। इसका पता इस बात से चलता है कि इसने यमन, सऊदी अरब, इराक, इजिप्ट, लीबिया, अल्जीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान को अपना राज्य घोषित किया है। इसकी योजना कैलिफेट बनाने की है। सीरिया और इराक से आगे निकलकर अब यह यूरोप में दस्तक देने में लगा है। नवंबर महीने में फ्रांस में रक्तपात फैलाने से पहले इसके एक सहयोगी संगठन ने सिनाई में आत्मघाती हमला किया जिसमें चार पुलिसकर्मी मारे गए। 31 अक्टूबर को सिनाई में ही रूसी विमान को मार गिराया गया जिसमें 224 लोगों की जान गई। 12 नवंबर को बेरूत में दोहरे बम विस्फोट में 43 लोग मारे गए। पश्चिम एशिया के बाद आईएसआईएस ने अब यूरोप में खूनी खेल खेलना शुरू कर दिया है। कहीं आईएसआईएस तो कहीं उससे प्रेरित और सहानुभूति रखने वाले संगठन निर्दोष लोगों की बेदर्दी से हत्या कर रहे हैं। ये चरमपंथी संगठन बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों को जान से मारने में जरा भी नहीं हिचकते। इनमें मानवता नाम की कोई चीज नहीं है। इनका कोई धर्म और मजहब नहीं है। समय आ गया है कि आईएसआईएस के कुत्सित विचारों को दुनिया भर में फैलने से रोका जाए। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय योजना और रणनीति की जरूरत है।
भारत बहुत पहले से ही आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाता रहा है। भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी ने जी-20 सम्मेलन के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि संयुक्त राष्ट्र को आतंकवाद को परिभाषित करने की जरूरत है। पीएम मोदी ने दुनिया को एक आवाज में आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाने और उन देशों को अलग-थलग करने के लिए कहा जो आतंकवादियों को पनाह देते हैं। समय आ गया है कि संयुक्त राष्ट्र इस दिशा में कड़ा कदम उठाए। संयुक्त राष्ट्र की अगर बात करें तो आतंकवाद पर 14 अंतरराष्ट्रीय संधियां पहले से मौजूद हैं। यही नहीं आतंकवाद पर कम्प्रिहेंसिव कन्वेंशन अगेंस्ट इंटरनेशनल टेररिज्म (सीसीआईटी) साल 1996 से ही यूएन में अटका पड़ा है। खास बात यह है कि इसका पहला मसौदा भारत ने ही तैयार किया लेकिन 1996 से अब तक इस पर केवल चर्चा जारी है कोई ठोस पहल अब तक नहीं हो पाई है। सीसीआईटी को लेकर अमेरिका, पश्चिमी देश, लैटिन अमेरिकी देश, इजरायल, इस्लामिक सहयोग संगठन एकमत नहीं हैं। सीसीआईटी पर सबकी अपनी चिंताएं हैं।
आईएस को खड़ा करने के पीछे कौन जिम्मेदार है, यह सभी को पता है। क्षेत्रीय प्रभुत्व जमाने और अपने हितों को फायदा पहुंचाने के लिए कुछ देशों ने इस भस्मासुर को पैदा किया। मीडिया रिपोर्टों की मानें तो आईएसआईएस अस्तित्व के पीछे कोई और नहीं बल्कि अमेरिका है। अमेरिका मानता है कि इजरायल तक तेल की पाइपलाइन बिछाने के लिए सीरिया में असद सरकार को सत्ता से हटना जरूरी है। उसने जो बोया है आज दुनिया उसे काट रही है। आईएस को खड़ा करने में टर्की, सऊदी अरब और कतर की भी भूमिका है। ऐसे में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जब यह दावा करते हैं कि आईएस को कुछ देश से पैसा पहुंच रहा है और इसमें जी-20 से जुड़े देश भी शामिल हैं तो इस पर हैरानी नहीं होनी चाहिए बल्कि चिंता होनी चाहिए। पुतिन ने कहा है कि आईएस तेल का गैरकानूनी कारोबार करता है। इसे भी खत्म करने की जरूरत है। अगर यही सब चलता रहा तो दुनिया आईएसआईएस से जंग कैसे लड़ पाएगी।
दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवाद संगठन बन चुके आईएसआईएस के समूल नाश के लिए ताकतवर देशों को अपने हितों से ऊपर उठना होगा। आईएस के समूल नाश के लिए उन्हें अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर एक साथ प्रभावी और निर्णायक पहल करनी होगी। इसके लिए उन्हें दोहरा रवैया छोड़ना होगा। दोहरा रवैया अपनाकर आतंकवाद के खिलाफ जंग नहीं जीती जा सकती। भारत यह बात शुरू से कहता आया है और आज भी कह रहा है। आतंकवाद, आतंकवाद है वह अच्छा और बुरा नहीं हो सकता। यह बात सभी को समझनी होगी तभी जाकर आईएसआईएस नाम की बला का कुछ हो सकता है, नहीं तो आज पेरिस कल दुनिया का कोई और शहर होगा जहां मानवता कराह रही होगी और बड़े देश बड़ी-बड़ी बातें कर रहे होंगे।