किन्नरों के रीति रिवाज के अनुसार, उनके शव को जलाने की बजाए दफनाया जाता है. हालांकि, किन्नर समुदाय के लोग शव यात्रा निकालने से पहले शव को जूते-चप्पलों से पीटते हैं.
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नई दिल्ली: हमारे समज में किन्नरों की दुआओं और आशिर्वाद को बहुत शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि उनकी दुआओं में बहुत शक्ति होती है. इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि किन्नरों से कभी बैर नहीं रखना चाहिए, क्योंकि उनके द्वारा दी गई बद्दुआ भी जरूर असर करती है. यही कारण है कि पुलिस वाले भी किन्नरों के खिलाफ जलदी कोई एक्शन नहीं लेते हैं. बात करें तीज-त्यौहारों कि तो शादी, संगीत, मुंडन या फिर बच्चे के पैदा होने पर किन्नरों को आशिर्वाद देने के लिए बुलाया जाता है. हालांकि, ज्यादातर समय वे स्वयं ऐसी खबर मिलने पर अपना आशिर्वाद देने व अपना नेग लेने पहुंच जाते हैं. किन्नरों को हमारे समाज में थर्ड जेंडर का दर्जा दिया गया है. किन्नरों से जुड़ी बहुत सी ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में आप शायद नहीं जानते होंगे. आज हम आपको उनके जीवन से जुड़े ऐसे ही कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताएंगे.
किन्नरों को पहले ही हो जाता है अपनी मौत का आभास
किन्नरों के रहन-सहन के तरीके से लेकर उनके अंतिम संस्कार तक की सारी चीजें आम लोगों से बेहद अलग होती हैं. ऐसा कहा जाता है कि इन्हें इनकी मौत का आभास पहले से ही हो जाता है, जिस कारण वे उस दैरान कहीं भी आना-जाना बंद कर देते हैं. इतना ही नहीं, वे मौत का आभास होते के बाद खाना भी त्याग देते हैं. हालांकि, वे उस दौरान केवल पानी पीते हैं और ईश्वर से अपने और दूसरे किन्नरों के लिए दुआ करते हैं कि वे अगले जन्म में किन्नर न बनें.
जानें आखिर रात में ही क्यों निकाती जाती है किन्नरों की शव यात्रा
बता दें कि किन्नरों के रीति रिवाज के अनुसार, उनके शव को जलाने की बजाए दफनाया जाता है. शव को सफेद कपड़े में लपेटा जाता है. इस दौरान इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शव किसी चीज से बंधा न हो. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि दिवंगत किन्नर की आत्मा आजाद हो सके. इसके अलावा यह भी माना जाता है कि अगर मृत किन्नर के शरीर को किसी आम जन ने देख लिया तो वो दिवंगत किन्नर अगले जन्म में भी किन्नर ही बनेगा. यही कारण है कि इनके अंतिम संस्कार के सभी रीति-रिवाज देर रात में पूरे किए जाते हैं.
क्यों जूते-चप्पलों से पीटा जाता है दिवंगत किन्नर का शव
इसके अलावा किन्नर समुदाय के लोग शव यात्रा निकालने से पहले शव को जूते-चप्पलों से पीटते हैं ताकि दिवंगत किन्नर को दोबारा इस योनि में जन्म न मिले. सभी किन्नर शव के पास खड़े होकर उसकी मुक्ति के लिए अपने आराध्य देव को धन्यवाद देते हैं. इसके बाद दान-पुण्य की विधि शुरू की जाती है.