Happy Birth Day Gulzar: गुलजार की शायरी का जवाब नहीं. देश के बंटवारे के बाद वह एक रिफ्यूजी के तौर पर भारत पहुंचे और फिर मुंबई आकर कड़ी मेहनत से फिल्मों में अपनी जगह बनाई. लेकिन एक्टिंग में भी उन्होंने हाथ आजमाया, यह कम लोग जानते हैं.
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Gulzar Birthday Special: शानदार शायर, बेहतरीन स्क्रिप्ट तथा डायलॉग राइटर और कामयाब डायरेक्टर गुलजार एक दौर में फिल्मी पर्दे पर एक्टिंग में भी हाथ आजमाना चाहते थे. इस बारे में कभी ज्यादा बातें बाहर नहीं आईं और न ही गुलजार ने कभी इस पर कुछ कहने में दिलचस्पी दिखाई. मगर एक समय ऐसा था, जब उन्होंने पर्दे पर हीरो के रूप में भी किस्मत आजमाने का तय कर लिया था. निर्देशक बासु भट्टाचार्य ने शर्मीला टैगोर के साथ उन्हें एक फिल्म में बतौर हीरो फाइनल कर लिया था. यह बात 1970 और 1980 के दशक के फिल्म पत्रकार पन्ना लाल व्यास ने लिखी है. व्यास उस दौर की सबसे चर्चित फिल्म पत्रिका मायापुरी में कॉलम लिखते थे और साथ ही फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक भी काम किया करते थे. वह कुछ बड़े निर्देशकों से जुड़े हुए थे. उन्होंने 1970 के अपने एक कॉलम में गुलजार के हीरो बनने की खबर लिखी थी.
गुलजार बन गए हीरो
पन्ना लाल व्यास ने अपने कॉलम में लिखाः ‘गुलजार भी अब हीरो बन ही गए हैं. पहले तो वह बहुत झिझक रहे थे. लेकिन जब सबने जोर दिया तो मान गए. अब वह बासु भट्टाचार्य की फिल्म में शर्मिला टैगौर के साथ हीरो आ रहे हैं और यह मामूली सी बात है कि जब तक यह पिक्चर शुरू हो, उनके पास हीरो के रूप में पांच-छह और फिल्में भी आ जाएं. अब जबकि हीरो साइन हो ही गए हैं, इसलिए वह अपने सुंदर दिखने पर बहुत ध्यान दे रहे हैं. हर रोज मेकअप मैन आता है. नए हेयर स्टाइल बनते हैं. फिर फोटो खिंचवाई जाती है. अभी तक वह यह तय नही कर पाए हैं कि कौन-सा हेयर स्टाइल रखेंगे. गुलजार की एक दलील अच्छी है कि अगर गुरुदत्त निर्देशक-निर्माता बनने के बाद हीरो बन सकते थे, तो वह क्यों नहीं? बहुत ही कम लोग जानते है कि गुलजार पहले भी एक्टिंग कर चुके हैं. एक पिक्चर शहीद ऊधम सिंह के जीवन पर शुरू हुई थी, जिसके निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी थे और गुलजार लेखक. उस फिल्म की शूटिंग लंदन में भी की गई थी. बाद में पिक्चर बंद पड़ गई. ऋषिदा ने पिक्चर छोड़ दी. उसका एक ट्रायल मैंने देखा था जिसमें गुलजार ने एक क्रांतिकारी का रोल किया था. एक्टिंग के बारे में तो मैं कुछ नही लिखूंगा. हां, वह पर्दे पर जंचते जरूर थे.’
दस साल बाद पूरी हुई फिल्म
ऋषिकेश मुखर्जी शहीद ऊधम सिंह की बायोपिक को 1960 के दशक के आखिरी दिनों में द मैन फ्रॉम इंडिया नाम से बना रहे थे. परीक्षित साहनी शहीद ऊधम सिंह बने थे. तीन हफ्तों तक लंदन में शूटिंग हुई. फिल्म के तीन प्रोड्यूसर ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय थे. फिल्म ओवर बजट हो गई और इसमें अहम भूमिका निभा रहे बलराज साहनी भी गुजर गए. दोनों वजहों से फिल्म बंद कर दी गई. फिल्म की कहानी-स्क्रिप्ट और डायलॉग गुलजार ने लिखे थे. करीब दस साल बाद तीन में से एक निर्माता ने फिल्म को पूरा करने की हिम्मत जुटाई. प्रोड्यूसर ही डायरेक्टर बना. बलराज साहनी की जगह आए ओम शिवपुरी. उन दिनों विनोद खन्ना बड़े स्टार थे, तो फिल्म बेचने के लिहाज से उनके लिए एक किरदार गढ़ा गया और बीच-बीच में उन पर शूट किए गए हिस्से जोड़े गए. दीप्ति नवल को भी फिल्म में लिया गया. पुराने दृश्यों को रखा गया और बाकी नए सीन शूट किए गए. मगर शूटिंग खत्म होने से पहले ही विनोद खन्ना आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश के पास अमेरिका चले गए. फिल्म फिर पांच साल के लिए रुक गई. 1987 में जब विनोद खन्ना रजनीज से मोहभंग के बाद लौटे तो बाकी सीन शूट किए. तब फिल्म पूरी हुई. मगर इसके बावजूद डबिंग आर्टिस्ट ने विनोद खन्ना की आवाज डब की. आखिरकार फिल्म 1987 में रिलीज हो पाई. इसे आप यूट्यूब पर जलियांवाला बाग नाम से देख सकते हैं.
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