Euthanasia In India : यूथेनेसिया के बारे में शायद आपने ज्यादा न सुना हो लेकिन हाल में यह विषय फिर से चर्चा में आया है. डॉक्टरी मदद से मौत के इसी तरीके से एक पूर्व प्रधानमंत्री की जीवनलीला समाप्त हुई. भारत में भी इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है. विरोध भी खूब होता है. समझिए इसकी इजाजत क्यों दी जाती है?
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Euthanasia News: वे दोनों 93 साल के थे. उनकी शादी को 70 साल हो चुके थे. जब डॉक्टर उन्हें मौत देने की प्रक्रिया शुरू कर रहे थे तो बिस्तर पर लेटे पति-पत्नी एक दूसरे का हाथ थामे हुए थे... दुनिया के लाखों-करोड़ों लोगों को यह खबर पढ़कर काफी तकलीफ हुई. इसी के साथ इच्छामृत्यु फिर से चर्चा में आ गई. वे कोई आम लोग नहीं थे. एक देश के पूर्व प्रधानमंत्री और उनकी पत्नी को यूथेनेसिया यानी इच्छामृत्यु दी गई. हालांकि यह किसी एक देश की बात नहीं है. कम लोगों को पता होगा कि दुनिया के करीब एक दर्जन देशों ने पिछले 25 साल के दौरान मौत में सहायता के इस प्रावधान को कानूनी जामा पहना रखा है. ऐसे में यह सवाल लोगों के मन में उठ रहे हैं कि आखिर दुनिया के देश लोगों के मरने में मदद के लिए डॉक्टरों को परमिशन क्यों दे रहे हैं?
5 फरवरी को पूर्व डच प्रधानमंत्री ड्राइस वैन एग्ट और उनकी पत्नी यूजेनी ने इच्छामृत्यु के जरिए अपना जीवन समाप्त कर लिया. वैसे, यूथेनेसिया का मतलब 'दर्द रहित मृत्यु' होता है. क्या सच में यह फैसला इतना आसान होता है?
ये कैसा कानून है?
साल 2002 में इच्छामृत्यु की अनुमति देने वाला नीदरलैंड पहला देश बना था. डच सरकार का कहना है कि एक डॉक्टर यह काम करता है. रोगी के स्पष्ट अनुरोध पर वह एक उपयुक्त दवा की घातक खुराक देता है. वहां का कानून 'किसी की सहायता से आत्महत्या' की भी इजाजत देता है जिसमें एक डॉक्टर के जरिए घातक दवा पहुंचाई जाती है लेकिन रोगी खुद इसे लेता है.
इच्छामृत्यु क्यों दी जाती है?
यह सवाल सबसे महत्वपूर्ण है. डच कानून की बात करें तो यह केवल उन रोगियों के लिए इच्छामृत्यु की परमिशन देता है, जो लगातार, असहनीय और लाइलाज पीड़ा से गुजर रहे हों. वैन एग्ट की स्थिति भी इसके दायरे में आती थी. वह 2019 में हुए ब्रेन हैमरेज से उबर नहीं पाए थे. यूजेनी की तबीयत भी काफी बिगड़ गई थी.
वैसे, कई डच कपल 'जोड़े में इच्छामृत्यु' चाहते हैं लेकिन दोनों के लिए एक ही समय पर लाइलाज बीमारी होना और असहनीय पीड़ा का आकलन करना दुर्लभ होता है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में नीदरलैंड में 29 जोड़ों सहित करीब 9,000 लोगों को इच्छामृत्यु दी गई थी.
कहां- कहां है ऐसा रूल
- इच्छामृत्यु की इजाजत देने वाले देशों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ी है. कोलंबिया के बाद इसे गैर-आपराधिक बनाने वाला इक्वाडोर 8 फरवरी को दूसरा लैटिन अमेरिकी देश बन गया.
- बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग के बाद 2021 में स्पेन चौथा यूरोपीय देश बना था. स्पेन ने 'गंभीर और लाइलाज' बीमारियों वाले वयस्कों के लिए इच्छामृत्यु की अनुमति दी, जिन्हें असहनीय पीड़ा का सामना करना पड़ता है.
- पिछले साल मई में, पुर्तगाल ने लाइलाज बीमारी या गंभीर चोट की स्थिति में अत्यधिक पीड़ा झेल रहे लोगों के लिए चिकित्सकीय मदद से मृत्यु की अनुमति दी.
- संभवत: किसी की मदद से आत्महत्या की शुरुआत स्विट्जरलैंड से हुई है. वहां वयस्कों को 1940 के दशक से ही दूसरों को अपना जीवन समाप्त करने में मदद की अनुमति दी गई है. हालांकि इसमें शर्त यह है कि उस शख्स का कोई स्वार्थ न हो.
भारत में लाइफ सपोर्ट हटा सकते हैं लेकिन...
हां, एक्टिव यूथेनेसिया यानी डॉक्टर की सहायता से मृत्यु भारत में गैरकानूनी है, लेकिन मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने पैसिव इच्छामृत्यु की अनुमति जरूर दे दी. इसका अर्थ है उस केस में लाइफ-सपोर्ट हटाना, जिसमें यह केवल मृत्यु की प्रक्रिया में देरी का कारण बनता है और दर्द, दुख का समय बढ़ाता है.
अब लाइलाज बीमारी वाले लोगों को यह तय करने की आजादी है कि उनका इलाज कब बंद किया जाना चाहिए. वे 'जीवित स्थिति में इच्छा जताने' या एक 'अग्रिम चिकित्सा निर्देश' लिखकर ऐसा कर सकते हैं. पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसले में कहा था कि व्यक्ति की गरिमा, जीवन के अधिकार का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है इसलिए मृत्यु में गरिमा की मांग करना भी एक अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की पीड़ा को चिकित्सकीय तरीके से लंबा खींचना उसकी गरिमा खत्म करने के बराबर है.
अरुणा का वो चर्चित केस
भारत में इच्छामृत्यु को वैध बनाने का कैंपेन मुंबई की नर्स अरुणा शानबाग के मामले से जोर पकड़ा. 1973 में हमले के बाद अरुणा ने जीवन के 42 साल बेसुध अवस्था में बिताए. vegetative state ऐसी अवस्था होती है जब व्यक्ति जाग रहा होता है लेकिन कोई लक्षण प्रकट नहीं करता है. साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार ठीक न होने वाली बीमारी के मामलों में पैसिव इच्छामृत्यु की अनुमति दी थी, बशर्ते हर मामले को संबंधित हाई कोर्ट मंजूर करे. बाद में 2018 के फैसले ने जीवित इच्छा को मान्यता दी, जिससे रोगियों को अपनी बात कहने का मौका मिला.
हालांकि अब भी भारत में एक जीवित इच्छा (अग्रिम स्वास्थ्य देखभाल निर्देश) को लागू करना मुश्किल है क्योंकि इसे एक न्यायिक अधिकारी (स्थानीय न्यायिक मजिस्ट्रेट) के सामने शपथ और सत्यापित करना पड़ता है जो ऐसा करने से इनकार कर सकता है.
खतरनाक चलन
- अमेरिका के 50 में से 11 राज्य 'वयस्कों के लिए चिकित्सकीय सहायता से मरने' की अनुमति देते हैं. इच्छामृत्यु के कई केस काफी चर्चित रहे.
- डेरेक हम्फ्री ने 1975 में गंभीर रूप से बीमार पत्नी जीन को सेकोबार्बिटल और कोडीन मिली एक कप कॉफी के साथ जीवन समाप्त करने में मदद की थी. उसने बाद में 'फाइनल एग्जिट' नाम से सुसाइड मैनुअल भी लिखा.
- हम्फ्री से भी ज्यादा कुख्यात 'डॉ. डेथ' जैक केवोरकियन माने जाते हैं. उन्होंने 130 सुसाइड में मदद करने का दावा किया था. उसने इच्छामृत्यु के लिए एक मशीन का आविष्कार किया. 1990 में 54 साल की अल्जाइमर पेशेंट जेनेट एडकिंस उनके मशीन की पहली क्लाइंट थीं. इसके बारे में NYT ने लिखा था कि एडकिंस ने खुद वो बटन दबाया, जिससे केमिकल शरीर में जाने लगा. कुछ देर में उनका शरीर शांत हो गया. थोड़ी देर में मशीन से पोटैशियम क्लोराइड जाने लगा जिससे कार्डिएक अरेस्ट से मौत हो गई.
क्या धर्म इजाजत देता है?
कई तरह के नैतिक और धार्मिक सवालों के कारण इच्छामृत्यु को व्यापक स्तर पर मान्यता नहीं मिली है. ईसाई देश इच्छामृत्यु के खिलाफ हैं. मई 1980 में वेटिकन ने इच्छामृत्यु पर साफ कहा था कि कोई भी किसी भी तरह से एक निर्दोष इंसान की हत्या की अनुमति नहीं दे सकता है.
दूसरी तरफ, इच्छामृत्यु के खिलाफ डॉक्टर अपनी शपथ का हवाला देते हैं. इसके तहत वह न तो घातक दवा की सिफारिश कर सकते हैं और न ही लगा सकते हैं. डॉक्टरों के पीछे हटने के कारण ही शायद अमेरिका में नाइट्रोजन से मौत जैसे खतरनाक तरीके अपनाए जा रहे हैं. (स्रोत: बीबीसी, द गार्जियन, एनवाईटी, द अटलांटिक, NOS)
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