Pakitan News: पाकिस्तान लंबे समय से अफगान तालिबान पर टीटीपी को पनाह देने और उनका समर्थन करने का आरोप लगाता रहा है. हालांकि तालिबान इन आरोपों से इनकार करता है. विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान को तालिबान पर दबाव बनाने के लिए क्षेत्रीय सहयोगियों की मदद लेनी चाहिए.
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India- Afghansitan Relation: दुबई में तालिबान शासित अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी और भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री के बीच हुई मुलाकात ने पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व को झकझोर दिया है. इस बैठक ने न केवल इस्लामाबाद को चिंतित कर दिया है, बल्कि विशेषज्ञों को काबुल के प्रति पाकिस्तान की नीति पर पुनर्विचार की सलाह देने पर मजबूर कर दिया है. वहां ऊपर से नीचे तक हड़कंप मचा है.
इस्लामाबाद में चल रही बंद कमरे की बैठकों में अफगानिस्तान के प्रति नीति पर गहन मंथन हो रहा है. पाकिस्तानी रणनीतिकारों का मानना है कि भारत और तालिबान के बीच बढ़ती नजदीकियां पाकिस्तान के लिए गंभीर खतरा बन सकती हैं. रणनीतिक विश्लेषक आमिर राणा ने चेतावनी देते हुए कहा, "यह पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी है. हमें याद रखना चाहिए कि भारत ने अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण परियोजनाओं पर 3 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है और उत्तरी गठबंधन के साथ मजबूत संबंध बनाए रखे हैं."
दुबई में हुई इस बैठक से पहले भारत ने अफगानिस्तान में पाकिस्तानी एयर स्ट्राइक की कड़ी निंदा की थी, जिसमें 46 लोगों की मौत हुई थी. इसके बाद अफगानिस्तान ने भारत को "महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और आर्थिक साझेदार" बताते हुए संकेत दिया था कि काबुल और नई दिल्ली के बीच रिश्ते और गहरे हो सकते हैं. इस बयान ने पाकिस्तान की चिंताओं को और बढ़ा दिया. इस्लामाबाद में बंद कमरे में बैठकें हो रही हैं, जिसमें शीर्ष अधिकारी अपने अस्थिर पड़ोसी के प्रति नीति को लेकर गहन विचार-विमर्श कर रहे हैं.
इसी बीच पाकिस्तानी एक्सपर्ट्स का कहना है कि पाकिस्तान के लिए यह एक चेतावनी होनी चाहिए. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तालिबान के कब्जे से पहले भारत अफगानिस्तान में एक प्रमुख प्लेयर था. नई दिल्ली ने पुनर्निर्माण परियोजनाओं के लिए अफगानिस्तान में लगभग 3 बिलियन डॉलर का निवेश किया था और उत्तरी गठबंधन के सदस्यों के भी नई दिल्ली के साथ अच्छे संबंध हैं.
एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि भारत के लोग तालिबान के साथ सावधानी से काम कर रहे हैं और चीजें वास्तव में आगे बढ़ रही हैं. यह ऐसे समय में हो रहा है जब पाकिस्तान अफगानिस्तान के खिलाफ आक्रामक है और हमारे द्विपक्षीय संबंधों में जबरदस्त गिरावट आई है. पाकिस्तान अपने पश्चिम में एक 'दुश्मन' पड़ोसी बर्दाश्त नहीं कर सकता. एक नजरिया यह है कि काबुल में लोगों के साथ संवाद करने के बजाय, इस्लामाबाद कंधार में तालिबान नेतृत्व के साथ टीटीपी मुद्दे को उठा सकता है क्योंकि असली शक्ति वहीं से आती है.
पाकिस्तान लंबे समय से अफगान तालिबान पर टीटीपी को पनाह देने और उनका समर्थन करने का आरोप लगाता रहा है. हालांकि तालिबान इन आरोपों से इनकार करता है. विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान को तालिबान पर दबाव बनाने के लिए क्षेत्रीय सहयोगियों की मदद लेनी चाहिए. अगर बातचीत के रास्ते बंद हुए, तो यह पहले से ही खराब हो रही सुरक्षा स्थिति को और खराब कर सकता है. एजेंसी इनपुट