बिहार के सरकारी स्कूलों के साथ ये बदकिस्मती रही है कि, शिक्षकों को कभी चुनाव ड्यूटी,कभी जनगणना तो कभी प्राकृतिक आपदा में लगा दिया जाता है. जाहिर है इन कामों के लिए अलग से तो शिक्षक बहाल नहीं किए जाएंगे लेकिन भुगतना तो आखिर बच्चों को पड़ता है.
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पटना : बिहार में शिक्षा का बजट 39 हजार करोड़ से अधिक है. भारत में बिहार उन चुनिंदा राज्यों में शामिल है जहां पूरे बजट का 20 फीसदी हिस्सा शिक्षा पर खर्च होता है, लेकिन उसके बाद भी मध्य विद्यालय नुरूद्दीनगंज में बच्चे अव्यवस्थाओं के बीच पढ़ने को मजबूर है. मालसलामी में काफी संकरी गलियों में ये स्कूल मौजूद है. इस स्कूल में 700 की संख्या छात्र और छात्राएं पढ़ाई करते हैं. इमारत कम होने की वजह से यहां दो शिफ्ट में क्लास होती है. पहली शिफ्ट सुबह साढ़े 6 बजे से जबकि दूसरी शिफ्ट साढ़े 11 बजे से 4 बजे तक चलती है. हम जब स्कूल पहुंचे तो पहली शिफ्ट खत्म होने वाली थी. बच्चे पीएम पोषण योजना (पहले मिड डे मिल के नाम से ये योजना जानी जाती थी) का भोजन खाकर घर जाने की तैयारी कर रहे थे. इस स्कूल में बिल्डिंग की कमी है और इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां एक ही कमरे में दो क्लास का संचालन होता है.
स्कूल में है सुविधा का अभाव
बिहार के सरकारी स्कूलों के साथ ये बदकिस्मती रही है कि, शिक्षकों को कभी चुनाव ड्यूटी,कभी जनगणना तो कभी प्राकृतिक आपदा में लगा दिया जाता है. जाहिर है इन कामों के लिए अलग से तो शिक्षक बहाल नहीं किए जाएंगे लेकिन भुगतना तो आखिर बच्चों को पड़ता है. अच्छी बात तो ये है कि, बच्चों को किताबें,पोशाक और पीएम पोषण जैसी योजनाओं का लाभ मिल रहा है. बच्चों से बात की तो कुछ बच्चे पढ़ाई व्यवस्था से खुश थे तो किसी के पास सरकारी स कूलों के पास कोई विकल्प नहीं था. स्कूल के शिक्षा से संबंधित साधन सुविधा का अभाव है. बच्चों को पढ़ाई के दौरान काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
स्कूल में नहीं है खेल का मैदान
बता दें कि स्कूल में 700 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए खेल का मैदान तक नहीं है. क्योंकि विद्यालय में संकरी गलियों में मौजूद है. अब तक हजारों की संख्या में इस स्कूल से बिना प्लेग्राउंड के ही पास करके दूसरे स्कूलों में चले गए. स्कूल के शिक्षक गोपाल कुमार के मुताबिक, बच्चों के लिए खेल का मैदान तो चाहिए लेकिन वो उपलब्ध नहीं है. छात्रों ने भी स्कूल प्रबंधन से खेल के मैदान की मांग की लेकिन मांगों का क्या. काश के इन स्कूलों में अधिकारियों और मंत्रियों और साधन संपन्न वर्ग के बच्चे पढ़ते. हालांकि विपरित परिस्थितियों में इंसान का प्रदर्शन बेहतर होता है. यहां पढ़ने वाले बच्चे अपने बेहतर मुस्तकबिल के आते हैं. अब बिहार के शिक्षा मंत्री या विभाग इस पर क्या चाहते हैं ये देखना होगा.
इनपुट- प्रीतम कुमार
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