Bihar Caste Census: ऊपर से यादवों को दिख रहा फायदा पर उन्हीं को होने वाला है सबसे बड़ा नुकसान, पढ़ें और समझें
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Bihar Caste Census: ऊपर से यादवों को दिख रहा फायदा पर उन्हीं को होने वाला है सबसे बड़ा नुकसान, पढ़ें और समझें

Bihar Caste Census: बिहार में जातीय जनगणना से यादवों को सबसे अधिक फायदा होने का दावा किया जा रहा है लेकिन यह उतना आसान नहीं है जैसा कि दिख रहा है.

बिहार जातीय जनगणना

Bihar Caste Census: बिहार सरकार ने जातीय जनगणना (Bihar Caste Census) के आंकड़ों को जारी कर जाति के आधार पर गोलबंदी करने की कोशिश की है. जाहिर तौर पर चुनाव में इसका असर होगा, लेकिन किसके पक्ष में कितनी गोलबंदी होती है, यह चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा. जातीय जनगणना को लेकर बिहार की नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की सरकार अपनी पीठ भले ही थपथपा रही है लेकिन जो आंकड़े जारी किए गए हैं, उसकी बारिकियों पर नजर डालें तो यह उतना सरल भी नहीं है, जितना इसे समझा जा रहा है. एक जाति के तौर पर यादवों की बहुलता तो आंकड़ों में स्पष्ट झलकती है, लेकिन मुसलमानों की जातियों का आंकड़ा जारी नहीं किया गया है. इस तरह मुसलमानों का आंकड़ा यादवों पर भारी पड़ता दिख रहा है. ऐसे में जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी में मुसलमान यादवों पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं. कुछ खास बारिकियों पर नजर डालने से पहले एक नजर जातीय जनगणना के आंकड़ों पर डालते हैं. 

जातीय जनगणना एक नजर में: 

मुसलमान: 17.7088 प्रतिशत 
यादव: 14.2666 प्रतिशत 
कुर्मी: 2.8785 प्रतिशत 
कुशवाहा: 4.2120 प्रतिशत 
ब्राह्मण 3.6575 प्रतिशत 
भूमिहार: 2.8683 प्रतिशत 
राजपूत: 3.4505 प्रतिशत 
मुसहर: 3.0872 प्रतिशत  
मल्लाह: 2.6086 प्रतिशत 
बनिया: 2.3155 प्रतिशत 
कायस्थ: 0.60 प्रतिशत 

वर्ग के हिसाब से 
अति पिछड़ा वर्ग: 36.01 प्रतिशत 
पिछड़ा वर्ग: 27.12 प्रतिशत 
अनुसूचित जाति: 19.6518 प्रतिशत 
अनुसूचित जनजाति: 1.6824 प्रतिशत 
सवर्ण: 15.5224 प्रतिशत 

बिहार की कुल जनसंख्या: 13 करोड़ 07 लाख, 25 हजार 310

आंकड़ों को आधार बना क्या मांग कर रहे विरोधी

सर्वदलीय बैठक में हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के संरक्षक जीतनराम मांझी ने पहले तो यादवों की संख्या को लेकर सवाल उठाए और सर्वे रिपोर्ट के आधार पर नीतीश कुमार की कैबिनेट के पुनर्गठन की मांग की. आज की तारीख में नीतीश सरकार में 31 मंत्री हैं, जिनमें 7 यादव हैं, जिनके पास 10 बड़े पोर्टफोलियो हैं. इन 7 मंत्रियों के पास बिहार सरकार के बजट का करीब 39 प्रतिशत खर्च करने की जिम्मेदारी है. यादवों के पास जो मंत्रालय हैं, उनमें स्वास्थ्य, शिक्षा, पथ निर्माण, पीएचईडी, ग्रामीण विकास, वन, पावर और सहकारिता हैं. 

अब सवाल उठ रहे हैं कि जनसंख्या के मुताबिक मुसलमानों से कम हिस्सेदारी के बाद भी यादवों की सरकार में भागीदारी इतनी ज्यादा कैसे है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से हिस्सेदारी देने की मांग तेज कर दी है. यादवों के लिए सबसे बड़ी टेंशन यही है. बिहार में लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में जब जब यादवों के नाम पर गोलबंदी करने की कोशिश हुई, अति पिछड़ी जातियों ने यादवों के खिलाफ गोलबंदी कर दी और यही कारण है कि 2005 के बाद से राष्ट्रीय जनता दल सत्ता से बाहर ही रही. एक दिक्कत यह भी है कि बीजेपी यादवों के खिलाफ कम आबादी वाले जातियों के नाम पर अन्य पिछड़ी जातियों की गोलबंदी कर सकती है. 

बिहार में विरोधी दलों का कहना है कि सर्वे में यादवों के नाम पर खेल किया गया है. यादवों की उपजातियों जैसे अहीर, गोप और यादव को एक साथ काउंट किया गया है तो दूसरी जातियों के उपजातियों को अलग अलग दर्शाया गया है. इसलिए यादवों की आबादी जो 2011 में करीब 11 प्रतिशत थी, वो 2023 में 14.26 प्रतिशत दर्शायी गई है. इसमें यादवों की 7 उपजातियों की आबादी भी जोड़ी गई है. आज की तारीख में बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 52 विधायक यादव हैं. लोकसभा की 40 में से 5 सांसद भी यादव हैं. केंद्र में नित्यानंद राय यादव समुदाय से बिहार के ताकतवर मंत्री माने जाते हैं. 

राज्य में 28 राजपूत विधायक हैं और 7 लोकसभा सांसद हैं. केंद्र में आरके सिंह अभी पावर मिनिस्ट्री संभाल रहे हैं, जबकि राजपूत समुदाय की आबादी 3.45 प्रतिशत ही है. इसी तरह बिहार विधानसभा में 21 विधायक भूमिहार हैं और 3 लोकसभा सांसद. मोदी सरकार में गिरिराज सिंह बिहार से ताकतवर मंत्री माने जाते हैं. दूसरी ओर, बिहार विधानसभा में मुसलमान विधायकों की बात करें तो केवल 19 की संख्या होती है. लोकसभा में बिहार से एकमात्र मुस्लिम सांसद मोहम्मद जावेद हैं और केंद्र एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है. अब आते हैं ब्राह्मणों पर. आबादी इनकी 3.85 प्रतिशत है पर बिहार में 12 विधायक इसी समुदाय से आते हैं. केंद्र में आश्विनी चौबे मंत्री हैं. 

जानकारों का कहना है कि बिहार में पिछड़ा और अतिपिछड़ा की आबादी को जोड़ दिया जाए तो यह कुल जनसंख्या का 48 प्रतिशत होता है. आने वाले समय में जब हिस्सेदारी की बात आएगी तो इसका नुकसान यादवों को हो सकता है. अगर भागीदारी के हिसाब से हिस्सेदारी नहीं मिली तो इस सर्वे का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. इसको ऐसे समझें, बिहार विधानसभा में 2015 में 61 विधायक चुने गए थे और 2020 में यह आंकड़ा 52 है. अब अगर आबादी के हिसाब से यादवों को प्रतिनिधित्व दिया गया तो 35 विधायक ही यादव हो पाएंगे. इसका मतलब यह हुआ कि अगर सर्वे के हिसाब से प्रतिनिधित्व दिया गया तो यादव समुदाय के करीब 15 से 20 विधायकों की संख्या कम हो जाएगी. 

एक सच यह भी है कि अगर यादवों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया तो मुसलमान वोटर नाराज हो सकते हैं. मुसलमानों की आबादी यादवों से अधिक है तो मुसलमानों को यादवों से अधिक प्रतिनिधित्व देना होगा. मुसलमान अगर नाराज हुआ तो इसका नुकसान लालू प्रसाद के एमवाई समीकरण पर पड़ सकता है. राज्य में यादव और मुसलमानों की आबादी करीब 33 प्रतिशत हो रही है. मुसलमान नेताओं का अकसर आरोप रहा है कि यादव वोट उन्हें नहीं मिलते हैं, जबकि यादव नेताओं को मुसलमानों के वोट खूब पड़ते हैं. 

एक बात और कही जा रही है कि जातीय जनगणना के जवाब में मोदी सरकार रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट सार्वजनिक कर सकती है और अगर वह लागू हो गया तो भी सबसे अधिक नुकसान यादवों को ही होने वाला है. जानकार बताते हैं कि रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर अगर ओबीसी आरक्षण को 4 कैटेगरी में बांटा गया तो 97 मजबूत ओबीसी जातियों को केवल 10 प्रतिशत ही आरक्षण मिल पाएगा. इससे भी यादवों को बड़ा झटका लग सकता है.

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