Nishant Kumar News: बेमन से आने वालों ने कैसे अपनी पार्टी को नई दिशा दी, अब निशांत कुमार भी जबरन पॉलिटिक्स में आ रहे
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Nishant Kumar News: बेमन से आने वालों ने कैसे अपनी पार्टी को नई दिशा दी, अब निशांत कुमार भी जबरन पॉलिटिक्स में आ रहे

Bihar Politics: क्या निशांत कुमार बेमन से राजनीति में आ रहे हैं या अभी तक सीएम नीतीश कुमार ही उनकी राह में बाधा बने हुए थे? ये वो सवाल हैं जो बिहार की सियासी गलियारों में उठ रहे हैं. लोग अपने-अपने हिसाब से इन सवालों का जवाब भी खोज रहे हैं.

निशांत कुमार

Bihar Politics: बिहार की राजनीति में इन दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की काफी चर्चा है. कहा जा रहा है कि निशांत कुमार अब राजनीति में एंट्री कर सकते हैं. दावे तो ये भी हैं कि निशांत कुमार ने अपनी ओर से इसके लिए हामी भर दी है और होली के बाद कभी भी जेडीयू ज्वाइन कर सकते हैं. जेडीयू की ओर से ऐसी कोई चर्चा नहीं की गई है और खंडन भी नहीं किया गया. इसी वजह से सियासी पारा चढ़ा हुआ है. अब सवाल ये है कि जब निशांत कुमार राजनीति से दूर भागते थे, तो अब क्यों आ रहे हैं? सियासी गलियारों में चर्चा है कि पार्टी को बचाने के लिए निशांत कुमार को राजनीति में लाने की तैयारी हो रही है. तो क्या निशांत कुमार बेमन से राजनीति में आ रहे हैं. बता दें कि निशांत कुमार से पहले भी कई नेता मजबूरी या जबरदस्ती में राजनीति में आए थे और अपनी पार्टी को चलाए या चला रहे हैं. देखिए कौन हैं वो...

  1. राजीव गांधी- देश के दिवंगत पीएम राजीव गांधी की राजनीति में कोई रूचि नहीं थी और वो एक एयरलाइन पाइलट की नौकरी करते थे. लेकिन 1980 में अपने छोटे भाई संजय गांधी की एक हवाई जहाज दुर्घटना में असामयिक मृत्यु के बाद अपनी मां यानी इन्दिरा गांधी जी को सहयोग देने के लिए उन्हें बेमन से राजनीति में आना पड़ा था. कहा जाता है कि संजय गांधी की मौत के बाद बद्रीनाथ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने उस समय राजीव गांधी को सलाह दी थी की वे पायलट की नौकरी छोड़ कर देश सेवा में लग जाएं. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन्होंने पार्टी संभाली और काफी अच्छी तरह से उसे चलाया. वे देश के प्रधानमंत्री भी रहे.
  2. राहुल गांधी- पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी भी राजनीति में नहीं आना चाहते थे. मां सोनिया गांधी के कहने पर ही वो राजनीति में आए. दरअसल, राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान संभाली. पार्टी किसी और हाथों में ना चली जाए, इसके लिए उन्होंने राहुल की साल 2004 में राजनीति में एंट्री कराई. उन्होंने अपने पिता राजीव गांधी की सीट अमेठी से पहली बार लोकसभा सांसद चुने गए. 2009 लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी लगातार दूसरी बार अमेठी से सांसद चुने गए. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में भी सीट बरकरार रखी. हालांकि 2019 के चुनाव में केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी से चुनाव हार गए. इस दौरान राहुल गांधी को कांग्रेस का महासचिव नियुक्ति किया गया. राहुल भारतीय युवा कांग्रेस की भी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. दिसबंर 2017 में राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया. लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल ने 3 जुलाई 2019 को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.
  3. चौधरी अजीत सिंह- देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजीत सिंह को मजबूरी में राजनीति में आना पड़ा था. जानकारी के मुताबिक, चौधरी चरण सिंह अपनी सियासी चौधराहट को बरकरार रखने अमेरिका में IBM जैसी कंपनी में काम कर रहे अपने बेटे को वापस भारत बुलाया था. अजित सिंह IIT खड़गपुर से पढ़कर निकले थे. फिर अमेरिका के इलिनोइस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से भी पढ़ाई की और अमेरिका में ही नौकरी करने लगे. चौधरी चरण सिंह ने उन्हें भारत वापस बुलाकर सियासत में उतार दिया. वे आगे चलकर वेस्ट यूपी में जाटों के बड़े नेता माने गए. जो, चार बार केंद्रीय मंत्री रहे. और जिन्हें भारतीय राजनीति का दूसरा सबसे बड़ा 'मौसम वैज्ञानिक' माना गया. क्योंकि पहले तो रामविलास पासवान ही रहे.
  4. नवीन पटनायक- ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने साल 1997 में पिता के निधन के बाद राजनीति में कदम रखा था और एक वर्ष बाद ही अपने पिता बीजू पटनायक के नाम पर बीजू जनता दल की स्थापना की. बीजू जनता दल ने उसके बाद विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की और भाजपा के साथ सरकार बनाई जिसमें वे स्वयं मुख्यमंत्री बने.

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