झारखंड विधानसभा के पिछले 23 वर्षों के इतिहास में यह पहली बार होगा, जब दो नियमित सत्रों मॉनसून सत्र और शीतकालीन सत्र की अंतराल अवधि में दो बार विशेष सत्र आहूत किए गए हैं.
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रांची: झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन की सरकार ने एक साथ दो बड़े सियासी दांव खेलने की तैयारी कर ली है. आगामी 11 नवंबर को सरकार ने झारखंड विधानसभा का विशेष एकदिवसीय सत्र आहूत किया है. इस एक दिन के सत्र में सरकार राज्य की नई डोमिसाइल पॉलिसी और ओबीसी, एससी-एसटी रिजर्वेशन के प्रतिशत में वृद्धि से जुड़े दो अलग-अलग विधेयक पारित कराएगी. सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि ये दोनों विधेयक गेमचेंजर साबित होंगे. खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कहते हैं कि 11 नवंबर की तारीख झारखंड के लिए ऐतिहासिक साबित होने जा रही है.
इसके पहले बीते पांच सितंबर को भी हेमंत सोरेन सरकार ने विधानसभा का एकदिवसीय विशेष सत्र बुलाकर विश्वास मत का प्रस्ताव पारित किया था. अब 70 दिनों के अंतराल में एक और विशेष सत्र आहूत किए जाने के साथ राज्य में विधायी कार्यवाही के इतिहास में एक और नया रिकॉर्ड बन जाएगा. झारखंड विधानसभा के पिछले 23 वर्षों के इतिहास में यह पहली बार होगा, जब दो नियमित सत्रों मॉनसून सत्र और शीतकालीन सत्र की अंतराल अवधि में दो बार विशेष सत्र आहूत किए गए हैं.
हालांकि ये दोनों विशेष सत्र तकनीकी तौर पर मॉनसून सत्र की विस्तारित बैठक के रूप में आहूत किए गए हैं. यही वजह है कि इसके लिए राज्यपाल से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं पड़ी. संसदीय-विधायी नियमों के मुताबिक कोई भी सत्र राज्यपाल की अनुमति से ही आयोजित किया जा सकता है, लेकिन किसी नियमित सत्र का आधिकारिक तौर पर अवसान (समापन) नहीं किए जाने की स्थिति में स्पीकर के पास उसकी विस्तारित बैठकें बुलाने का अधिकार है.
11 नवंबर को आयोजित होने वाले सत्र में हेमंत सरकार ने जिन दो विधेयकों को पारित कराने की तैयारी की है, उसका दूरगामी असर चाहे जो भी हो, तात्कालिक तौर पर इन्हें ओबीसी और एससी-एसटी के अलावा झारखंड के मूल निवासियों के बड़े समूह के बीच एक मजबूत राजनीतिक संदेश देने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है.
सीएम हेमंत सोरेन को ईडी के समन, कांग्रेस के दो विधायकों पर आयकर की छापामारी, ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता पर चुनाव आयोग की अनुशंसा और इसपर राज्यपाल रमेश बैस के रुख से सरकार के सामने जो मुश्किलें खड़ी हुई हैं, उनके बीच सरकार का यह कदम एक बड़े और जवाबी पॉलिटिकल मूव के तौर पर देखा जा रहा है. राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा और उसकी सहयोगी आजसू पार्टी के सामने मुश्किल यह है कि वे इन विधेयकों का सीधे-सीधे विरोध नहीं कर सकतीं, क्योंकि इससे राज्य के बड़े जनसमूह की नाराजगी का खतरा है.
राज्य सरकार बीते 14 सितंबर को ही इन दोनों विधेयकों के लिए सैद्धांतिक तौर पर कैबिनेट में पॉलिसी पारित कर चुकी है. कैबिनेट से मंजूर पॉलिसी के अनुसार पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को मिलने वाले आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया जायेगा. इसी तरह अनुसूचित जाति (एससी) को मिलने वाला आरक्षण 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति (एसटी) का आरक्षण 26 से बढ़ाकर 28 प्रतिशत किया जायेगा. इसके अलावा अत्यंत पिछड़ा वर्ग (इडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है. इस तरह कुल मिलाकर राज्य में अब आरक्षण का प्रतिशत 50 से बढ़कर 77 हो जायेगा.
इसी तरह नई डोमिसाइल पॉलिसी के अनुसार जिन व्यक्तियों या जिनके पूर्वजों के नाम 1932 में राज्य में हुए भूमि सर्वे के कागजात (खतियान) में दर्ज होंगे, उन्हें ही झारखंड राज्य का डोमिसाइल यानी स्थानीय निवासी माना जायेगा. ऐसे लोग जिनके पूर्वज 1932 या उसके पहले से झारखंड में रह रहे हैं, लेकिन जमीन न होने के कारण जिनके नाम 1932 के सर्वे कागजात (खतियान) में दर्ज नहीं होंगे, उन्हें ग्राम सभाओं की पहचान के आधार पर डोमिसाइल माना जायेगा. आरक्षण का लाभ उन्हें ही मिलेगा, जो झारखंड के डोमिसाइल होंगे.
सरकार ने इन दोनों विधेयकों को पारित करने के बाद इन्हें संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को भी भेजने का फैसला लिया है. गौरतलब है कि 9वीं अनुसूची केंद्र और राज्य के कानूनों की ऐसी सूची होती है, जिन्हें न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती.
(आईएएनएस)