लाउडस्पीकर किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं... हाईकोर्ट ने दिया कार्रवाई का निर्देश
Advertisement
trendingNow12614221

लाउडस्पीकर किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं... हाईकोर्ट ने दिया कार्रवाई का निर्देश

Bombay High Court: अक्सर देखा जाता है कि धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर का प्रयोग होता है. जिसको लेकर कई बार विवाद की स्थिति हो जाता है. इसे लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. 

लाउडस्पीकर किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं... हाईकोर्ट ने दिया कार्रवाई का निर्देश

Bombay High Court: धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के प्रयोग को लेकर कई बार विवाद हुआ है. राजनीतिक गलियारों में भी इस पर जमकर बहसबाजी हुई है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. कोर्ट ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ध्वनि प्रदूषण के मानदंडों और नियमों का उल्लंघन करने वाले लाउडस्पीकरों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. जानिए पूरा मामला.

स्वास्थ्य के लिए खतरा
जस्टिस एएस गडकरी और एससी चांडक की खंडपीठ ने कहा कि ध्वनि एक बड़ा स्वास्थ्य खतरा है. कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि अगर उसे लाउडस्पीकर का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाती है तो उसके अधिकार किसी भी तरह से प्रभावित होते हैं.  हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को धार्मिक संस्थानों को ध्वनि के स्तर को नियंत्रित करने के लिए तंत्र अपनाने का निर्देश देने को कहा, जिसमें ऑटो-डेसिबल सीमाओं के साथ कैलिब्रेटेड साउंड सिस्टम शामिल हैं. 

इसके अलावा न्यायालय ने उपनगर कुर्ला के दो आवास संघों - जागो नेहरू नगर रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन और शिवसृष्टि सहकारी आवास सोसायटी एसोसिएशन लिमिटेड - द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें क्षेत्र में मस्जिदों पर लगाए गए लाउडस्पीकरों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ पुलिस की निष्क्रियता का आरोप लगाया गया था. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि धार्मिक उद्देश्यों के लिए लाउडस्पीकरों का उपयोग, जिसमें 'अज़ान' (इस्लामिक प्रार्थना के लिए आह्वान) का पाठ शामिल है, शांति को भंग करता है और ध्वनि प्रदूषण नियम, 2000 के साथ-साथ पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है.

बेंच ने अपने आदेश में कहा कि मुंबई एक महानगरीय शहर है और जाहिर है कि शहर के हर हिस्से में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं. "यह सार्वजनिक हित में है कि ऐसी अनुमतियां नहीं दी जानी चाहिए. ऐसी अनुमतियों को अस्वीकार करके, भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 या 25 के तहत अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जाता है. लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.

न्यायालय ने ये भी कहा कि पुलिस को शिकायतकर्ता की पहचान की आवश्यकता के बिना ध्वनि प्रदूषण नियमों का उल्लंघन करने वाले लाउडस्पीकरों के खिलाफ शिकायतों पर कार्रवाई करनी चाहिए ताकि ऐसे शिकायतकर्ता लक्ष्य या दुर्भावना और घृणा विकसित होने से बचें। पीठ ने आदेश दिया, "हम राज्य को निर्देश देते हैं कि वह सभी संबंधितों को अपने लाउडस्पीकरों/वॉयस एम्पलीफायरों/सार्वजनिक संबोधन प्रणाली या किसी भी धार्मिक स्थान/संरचना/संस्था द्वारा उपयोग किए जाने वाले अन्य ध्वनि उत्सर्जक गैजेट में डेसिबल स्तर को नियंत्रित करने के लिए अंतर्निहित तंत्र बनाने का निर्देश देने पर विचार करे, चाहे वह किसी भी धर्म का हो. 

अधिकारियों को याद दिलाते हुए कि आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि का स्तर दिन के दौरान 55 डेसिबल और रात में 45 डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए, न्यायालय ने कहा कि सभी को इन सीमाओं का पालन करना चाहिए. अदालत ने कहा, "कानून इसकी अनुमति नहीं देता कि प्रत्येक व्यक्तिगत लाउडस्पीकर 55 या 45 डेसिबल शोर करेगा, जो इन नियमों के तहत निर्धारित शोर से अधिक होगा. बता दें कि ध्वनि प्रदूषण नियमों के प्रावधानों का बार-बार उल्लंघन उनके संज्ञान में लाया जाता है. (पीटीआई)

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news