Chhawla Case: छावला गैंगरेप-मर्डर केस में निचली अदालत ने तीन दोषियों को फांसी की सज़ा दी थी. दिल्ली हाई कोर्ट ने इस सज़ा को बरकरार रखा था. लेकिन पिछले साल नवंबर में दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी दोषियों को बरी कर दिया था.
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Supreme Court News: दिल्ली के छावला इलाके में एक लड़की के गैंगरेप और फिर बेहद क्रूरता से हत्या कर देने के मामले में दायर पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई करेगा. पिछले साल 9 नवंबर को दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में पुलिस की जांच और ट्रायल पर सवाल उठाए और संदेह का लाभ देते हुए दोषियों को बरी कर दिया गया. दिल्ली पुलिस और पीड़ित परिवार ने पुनर्विचार अर्जी दायर की है.
दिल्ली पुलिस ने जल्द सुनवाई की मांग की
आज दिल्ली पुलिस की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने ये मामला उठाया. उन्होंने कहा कि एक 18 साल की लड़की के साथ गैंगरेप कर बेहद निर्दयता से उसकी हत्या कर दी गई. उसके निजी अंगों में ऑब्जेक्ट डाले गए. निचली अदालत से लेकर हाई कोर्ट ने दोषियों की फांसी की सज़ा मुकर्रर रखी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया. जेल से बाहर आने के बाद इनमें से एक आरोपी ने ऑटो ड्राइवर की गला रेत कर हत्या कर दी. ये आदतन अपराधी है. हम ओपन कोर्ट में सुनवाई की मांग रहे हैं.
CJI ने जल्द सुनवाई का भरोसा दिया
चीफ जस्टिस ने कहा कि हम जल्द नई बेंच का गठन करेंगे. इस बेंच में मैं, जस्टिस रविन्द्र भट्ट, जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल होंगे. मैं साथी जजों से बात करूंगा. इस मामले को फिर से ओपन कोर्ट में सुनवाई करने पर भी विचार होगा.
पीड़ित को असहनीय यातनाएं दी गई थी
मूल रूप से उत्तराखंड की रहने वाली पीड़िता दिल्ली के छावला इलाके में रह रही थी. 9 फरवरी साल 2012 की रात जब वो नौकरी से लौट रही थी तो कुछ लोगों ने उसका अपहरण कर जबरन अपनी गाड़ी में बैठा लिया. कई दिन बाद उसकी लाश हरियाणा के रेवाड़ी के खेत में मिली.
इस मामले में दोषियों ने लड़की के साथ रेप कर उसे असहनीय यातनाएं भी दी थी. लड़की को कार में इस्तेमाल होने वाले औजारों से पीटा गया, उसके शरीर को जगह-जगह सिगरेट से दागा गया था और उसके चेहरे को तेजाब से जलाया गया था.
निचली अदालत ने तीन दोषियों को फांसी की सज़ा दी थी. दिल्ली हाई कोर्ट ने इस सज़ा को बरकरार रखा था. लेकिन पिछले साल नवंबर में दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी दोषियों को बरी कर दिया था.
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