Delhi Riots Case: दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने खंडित फैसला सुनाया है. दो जजोंं न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली हुसैन की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई की.
Trending Photos
Delhi Riots Case Update: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पूर्व पार्षद और दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन की याचिका पर खंडित फैसला सुनाया. हुसैन ने इस याचिका में विधानसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत की मांग की थी. न्यायमूर्ति पंकज मिथल ने हुसैन की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह कोई मामला नहीं बनता, जबकि न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा कि उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है.
इस मुद्दे पर फैसला करने के वास्ते नई पीठ के गठन के लिए मामला चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के समक्ष रखा जाएगा. उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 24 फरवरी 2020 को हिंसा भड़क उठी थी जिसमें 53 लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हुए थे. हुसैन फरवरी 2020 में हुए दंगों के एक मामले में आरोपी हैं जो खुफिया ब्यूरो के कर्मचारी अंकित शर्मा की मौत से जुड़ा है.
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, 26 फरवरी, 2020 को शिकायतकर्ता रविंदर कुमार ने दयालपुर पुलिस स्टेशन को सूचित किया कि उनका बेटा अंकित शर्मा 25 फरवरी, 2020 से लापता है. दंगा प्रभावित क्षेत्र के खजूरी खास नाले से शर्मा का शव बरामद किया गया और उनके शरीर पर चोटों के 51 निशान थे.
लाइव एंड लॉ के मुताबिक, न्यायमूर्ति पंकज मिथल ने याचिका खारिज कर दी. उन्होंने कहा कि ताहिर हुसैन अंतरिम जमानत के लिए मामला बनाने में विफल रहे, जबकि न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह इससे सहमत नहीं हैं. न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन ने कहा कि हुसैन को अंतरिम जमानत दी जानी चाहिए.
दरअसल, न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली हुसैन की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही है. जिसमें हाईकोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया था. हालांकि, कोर्ट ने मुस्तफाबाद निर्वाचन क्षेत्र से दिल्ली विधानसभा में चुनाव लड़ने के लिए नामांकन दाखिल करने के लिए ताहिर को हिरासत में पैरोल दी थी.
जस्टिस मिथल ने कहा
जस्टिस मिथल ने अपने आदेश में कहा कि 'चुनाव लड़ने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है. साथ ही नामांकन दाखिल करने के लिए हिरासत पैरोल देने के हाईकोर्ट के आदेश से चुनाव लड़ने का अधिकार सुरक्षित हो गया है. जस्टिस मिथल ने कहा कि इस आधार पर अंतरिम जमानत की इजाजत देने से 'पेंडोरा बॉक्स' खुल सकता है, क्योंकि इसके बाद फिर सभी विचाराधीन कैदी इस आधार को अपनाएगा.'
प्रचार के लिए अंतरिम जमानत पर रिहाई का साफ मतलब होगा कि आरोपी को घर-घर जाकर प्रचार करने और उस इलाके में बैठकें आयोजित करने की इजाजत देना, जहां अपराध हुआ था. ऐसे में आरोपी के गवाहों से मिलने की भी पूरी संभावना है. जबकि चार्जशीट में आरोपी के खिलाफ गंभीर आरोपों का खुलासा किया गया है.
हम अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते: जस्टिस अमानुल्लाह
वहीं, न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने सवाल करते हुए कहा कि आरोप पत्र कब दायर किया गया था. इस पर एएसजी ने जवाब दिया कि यह जून 2020 में दायर किया गया था, तो न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने पूछा कि मुकदमा पांच साल में आगे क्यों नहीं बढ़ा और बताया कि अब तक सिर्फ पांच गवाहों से पूछताछ की गई है. न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने आगाह किया कि उन्हें इन कठिन सवालों में जाना होगा और अभियोजन पक्ष के आचरण के बारे में लिखना होगा." हम अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते, अगर हम इन सवालों पर जाएंगे तो टिप्पणी की जरूरत पड़ेगी."
न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने आग कहा, 'इस सब पर गौर करना होगा कि आप किसी को इस तरह से अपमानित नहीं कर सकते! वह 5 साल में एक दिन के लिए भी जेल से बाहर नहीं आया है. मुझे इस पर भी अपने आदेश में लिखना होगा. हम अपनी आँखें बंद न करें. संविधान का अनुच्छेद 21 किस लिए है? पांच साल तक, आपने अपने गवाह से पूछताछ भी नहीं की है, और वह दिल्ली से बाहर है.' ( भाषा इनपुट के साथ )