तलाकः सुलह की कोई गुंजाइश नहीं.. युवा कपल को सुनते ही कोर्ट ने कूलिंग-ऑफ पीरियड माफ किया
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तलाकः सुलह की कोई गुंजाइश नहीं.. युवा कपल को सुनते ही कोर्ट ने कूलिंग-ऑफ पीरियड माफ किया

Divorce Case: बंबई उच्च न्यायालय ने एक दंपति को तलाक देने और इसके लिए छह महीने इंतजार की बाध्यता से छूट देते हुए कहा है कि सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव और तेजी से बदल रहे समाज के मद्देनजर तलाक के मामलों में यथार्थवादी नजरिया अपनाए जाने की आवश्यकता है.

तलाकः सुलह की कोई गुंजाइश नहीं.. युवा कपल को सुनते ही कोर्ट ने कूलिंग-ऑफ पीरियड माफ किया

Divorce Case: बंबई उच्च न्यायालय ने एक दंपति को तलाक देने और इसके लिए छह महीने इंतजार की बाध्यता से छूट देते हुए कहा है कि सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव और तेजी से बदल रहे समाज के मद्देनजर तलाक के मामलों में यथार्थवादी नजरिया अपनाए जाने की आवश्यकता है. न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की एकल पीठ ने 25 जुलाई के अपने फैसले में कहा कि प्रतीक्षा अवधि ‘‘एक ऐहतियाती प्रावधान है ताकि किसी भी पक्ष के साथ कोई भी अन्याय न हो और यह पता लगाया जा सके कि क्या सुलह की संभावना है.’’

न्यायमूर्ति गोडसे ने कहा कि यदि अदालत इस बात से संतुष्ट हो जाए कि दोनों पक्षों ने अलग होने और आगे बढ़ने का निर्णय सोच-समझकर लिया है और सुलह की कोई संभावना नहीं है, तो अदालत को यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और अपने विवेक का इस्तेमाल कर प्रतीक्षा अवधि की बाध्यता से छूट देनी चाहिए. इस आदेश की प्रति मंगलवार को उपलब्ध कराई गई. पुणे के एक दंपति ने आपसी सहमति से तलाक और छह महीने की प्रतीक्षा अवधि से छूट का अनुरोध किया था. 

न्यायमूर्ति गोडसे ने कहा कि छह महीने की प्रतीक्षा की बाध्यता से छूट की याचिका पर निर्णय लेते समय इस अवधि के उद्देश्य को सही ढंग से समझना आवश्यक है. अदालत ने कहा, ‘‘विकसित होते समाज में तेजी से हो रहे बदलावों को देखते हुए न्यायपालिका आपसी सहमति से वैवाहिक संबंधों को समाप्त करने का अनुरोध करने वाले पक्षकारों की सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. इस प्रकार, बदलती सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है.’’ 

अदालत ने कहा कि आम तौर पर ऐसे मामले सामने आते हैं जिसमें पक्षकार झगड़ते रहते हैं और सुलह की कोई संभावना नहीं होती. उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में, पक्षों को सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान की संभावना तलाशने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और यहां तक ​​कि उन्हें मध्यस्थ के पास भी भेजा जाता है ताकि वे मुकदमेबाजी को समाप्त कर सकें.’’ अदालत ने कहा कि लेकिन जब पक्षकार आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन करते हैं, तो वे अलग होने का निर्णय सोच-समझकर लेते हैं. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता युवा हैं और उनकी तलाक याचिका को लंबित रखने से उन्हें मानसिक पीड़ा होगी.

अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में, पुरुष और महिला दोनों ने कहा है कि तमाम प्रयासों के बावजूद उनके बीच सुलह का विकल्प नहीं बचा है और इसलिए उन्होंने आपसी सहमति से अलग होने का निर्णय लिया है. याचिकाकर्ताओं का विवाह 2021 में हुआ था लेकिन शादी के एक साल बाद ही दोनों के बीच मतभेदों के कारण वे अलग-अलग रहने लगे. बाद में दंपति ने आपसी सहमति से तलाक और छह महीने की प्रतीक्षा अवधि से छूट का अनुरोध किया था जिसे पारिवारिक अदालत ने अस्वीकार कर दिया था. इसके बाद दंपति ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.

(एजेंसी इनपुट के साथ)

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