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नई दिल्ली: यूक्रेन में फंसे भारतीयों को ऑपरेशन गंगा (Operation Ganga) के तहत लगातार वापस लाया जा रहा है. भारत वापस आने वाले लोगों में अधिकतर लोग यूक्रेन में मेडिकल (Medical) की पढ़ाई के लिए गए थे. भारत (India) में 4.5 साल के एमबीबीएस (MBBS) कोर्स को छोड़ ये स्टूडेंट्स विदेश में 6 साल के एमबीबीएस कोर्स के लिए जाने को मजबूर हो गए थे.
दिल्ली के नांगलोई में रहने वाले दीपक सैनी यूक्रेन (Ukraine) एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए गए थे. दीपक अभी यूक्रेन के खारकीव शहर के मेडिकल कॉलेज (Medical College) के फोर्थ ईयर के स्टूडेंट हैं और आज ही यूक्रेन से वापस लौटे हैं. छात्र अभी यूक्रेन में हालात जल्द ठीक होने की उम्मीद कर रहे हैं ताकि इनकी पढ़ाई को ज्यादा नुकसान न हो. दीपक का कहना है कि भारत में मेडिकल सीट्स (Medical Seats) बहुत कम हैं और प्राइवेट कॉलेजों की फीस बहुत ज्यादा है. बता दें कि यूक्रेन में पूरे मेडिकल कोर्स की कुल फीस 25 लाख के आस पास है.
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दीपक की तरह ही सुयश भी यूक्रेन एमबीबीएस (MBBS) की पढ़ाई के लिए गए थे. यूक्रेन लविव यूनिवर्सिटी में थर्ड ईयर मेडिकल स्टूडेंट (Medical Student) हैं. सुयश का कहना है कि भारत में सीट्स बहुत कम हैं इसलिए उन्हें बाहर जाना पड़ा. वो अभी यूनिवर्सिटी के संपर्क में हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि यूक्रेन में हालात जल्द बेहतर हो जाएं ताकि वो अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू कर सकें. वहीं सुयश के गार्डियन प्रभात कुमार का भी कहना है कि भारत में मेडिकल कॉलेज (Medical College) की फीस बहुत ज्यादा है और उनकी भारत सरकार (Indian Government) से अपील है कि यूक्रेन से लौटे छात्रों की पढ़ाई को लेकर भारत सरकार को कुछ स्टेप्स लेने की जरूरत है.
इसी तरह का हाल तमन्ना का भी है जो यूक्रेन (Ukraine) के विनित्सा यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस (MBBS) की पढ़ाई कर रही हैं. तमन्ना अपनी यूनिवर्सिटी के साथ लगातार संपर्क में हैं. तमन्ना के पिता नरेंद्र सिंह भी भारत सरकार से अपील कर रहे हैं कि वो इन बच्चों की मदद करें और भारत (India) के ही मेडिकल कॉलेजों में इनके लिए कुछ इंतजाम किया जाए. भारत छोड़ विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने का सबसे मुख्य कारण है सीट्स. जहां एक तरफ मेडिकल की सीट्स (Medical Seats) कम हैं वहीं दूसरी तरफ प्राइवेट कॉलेजों की फीस भी बहुत ज्यादा है.
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भारत (India) में एमबीबीएस में एडमिशन (Admission in MBBS) के लिए नीट (NEET) एग्जाम क्वालीफाई करना पड़ता है जिसमें हर साल लगभग 7 से 8 लाख कैंडिडेट्स भाग लेते हैं, जबकि सीट्स 90,000 के आस पास हैं. ऐसे में स्टूडेंट्स दूसरे देशों में इस कोर्स को करने के लिए मजबूर होते हैं.
यूक्रेन (Ukraine) से वापस लौट रहे स्टूडेंट्स का कहना है कि यूक्रेन के आस पास के देश पोलैंड, जॉर्जिया और हंगरी के मेडिकल कॉलेजेस से उन्हें ऑफर मिल रहा है कि वो इन देशों में अपना कोर्स कम्प्लीट कर सकते हैं जिसका कॉस्ट भी उतना ही होगा जितना वो यूक्रेन में जमा कर रहे थे और उनका कोर्स वहीं से शुरू होगा जहां यूक्रेन में खत्म हुआ था. लेकिन यूक्रेन के हालात को देखते हुए पेरेंट्स (Parents) अब बच्चों को पढ़ाई के लिए बाहर भेजने के पक्ष में नजर नहीं आ रहे.
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