Operation Kaveri: 15 अप्रैल 2023 की आधी रात को जब सूडान की राजधानी खार्तूम के निवासी अपने घरों में शांति से सो रहे थे, शहर शक्तिशाली विस्फोटों, तोपखाने की बमबारी और भारी हथियारों की गोलाबारी से दहल उठा. डिप्लोमेटिक जोन में भी गोले बरस रहे थे और भारतीय दूतावास की इमारत हिल रही थी.
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Operation Kaveri: 15 अप्रैल 2023 की आधी रात को जब सूडान की राजधानी खार्तूम के निवासी अपने घरों में शांति से सो रहे थे, शहर शक्तिशाली विस्फोटों, तोपखाने की बमबारी और भारी हथियारों की गोलाबारी से दहल उठा. डिप्लोमेटिक जोन में भी गोले बरस रहे थे और भारतीय दूतावास की इमारत हिल रही थी. क्या हो रहा है और क्या करना है, इस बात का किसी को भी अंदाजा नहीं था. दो समूह, सरकार समर्थित सूडानी सशस्त्र बल (SAF) और विद्रोही अर्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्स (RSF) शहर के नियंत्रण के लिए लड़ रहे थे.
अगले 24 घंटों में जब यह पता चला कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई है और सूडान में एक भयंकर गृह-युद्ध शुरू हो चुका है तो भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने अपना काम और तैयारी शुरू कर दी. हालांकि 24 अप्रैल 2023 को 9 दिनों के बाद "ऑपरेशन कावेरी" शुरू हुआ, लेकिन गृह युद्ध शुरू होने के अगले ही दिन शुरू हुई भारतीय दूतावास के कर्मचारियों की तैयारी ने इस ऑपरेशन को सफल बना दिया. सूडान से भारतीय लोगों को निकलना कोई आसान काम नहीं था और इसमें बहुत सारी चुनौतियां थीं.
भारत ने पहले भी इराक, अफ़ग़ानिस्तान, यमन और यूक्रेन जैसे युद्ध क्षेत्रों से अपने लोगों को निकला था परन्तु यहाँ पहली और सबसे महत्वपूर्ण चुनौती यह थी कि खार्तूम में लड़ाई सड़कों पर, गलियों में और हर जगह हो रही थी, कोई भी इलाक़ा इससे बचा नहीं था. दोनों समूहों की गोलियां इमारतों से गुजर रही थीं, नागरिकों के शरीरों को चीर रही थीं और पूरे शहर में मौत का नंगा नाच हो रहा था. दूसरी चुनौती यह थी कि भारतीय नागरिक केवल खारर्तूम में ही नहीं बल्कि पूरे सूडान में फैले हुए थे और उनकी लोकेशन का पता नहीं था.
कर्नाटक के हक्की -पिक्की समुदाय के लोग पूरे सूडान में घूम घूम कर अपनी दवाइयां बेचते थे और श्रमिक लोग अलग अलग भाग में सोने की खदानों और अन्य उद्योगों में काम कर रहे थे. तीसरी समस्या थी कि उनमें से अधिकांश के पास भारतीय पासपोर्ट नहीं थे क्योंकि अरब में एक प्रथा है कि मालिक आम तौर पर अपने कर्मचारियों के पासपोर्ट जमा कर लेते हैं ताकि वो काम छोड़ कर भाग न जाएं. चौथी विडंबना ये थी कि युद्ध के चलते अधिकांश हवाई अड्डे, सड़क, पुल इत्यादि ढांचे को या तो नष्ट कर दिया गया था या वे विद्रोहियों के नियंत्रण में थे और अंततः, सरकारी अधिकारियों या विद्रोही कमांडरों के साथ संवाद करना मुश्किल था क्योंकि दोनों ही में अनुशासन की भारी कमी थी और वे पूरी तरह खून के प्यासे थे.
शुरुआत कैसे हुई
चूँकि सूडान में अधिकांश भारतीय लोगों के बारे में सटीकता से पता नहीं था तो भारतीय दूतावास के कर्मचारी एक अनूठा समाधान लेकर आए. दूतावास के युवा रक्षा अताशे, जो एक अनुभवी इन्फैन्ट्री अधिकारी थे और जिन्होंने अपने डेढ़ दशक के सैन्य जीवन में विभिन्न संघर्ष क्षेत्रों में कार्रवाई देखी थी ने देश भर में भारतीयों के स्थान, स्थलों, संपर्क नंबर और अन्य विवरणों के लिए एक गूगल स्प्रेड शीट तैयार की. कुछ ही समय में, इस स्प्रेड शीट का लिंक सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया गया. भारतीयों ने भी तुरंत प्रतिक्रिया दी और अगले 72 घंटों के भीतर 3000 से अधिक लोगों के विवरण इस स्प्रेड शीट में दर्ज हो गए.
हालाँकि खार्तूम में ही लगभग 80% भारतीय थे, लेकिन चूँकि यह 1000 वर्ग किलोमीटर से अधिक में फैला शहर था जिसमें हर ओर गोलियां बरस रही थीं, भारतीयों को ढूँढना घास में सुई ढूंढने जैसा दुष्कर काम था. जब सारा डाटा आ गया तो इन सब विवरणों को एक नक़्शे पर अंकित किया गया और भारतीय दूतावास में एक वॉर रूम तैयार हो गया. लोगों से फोन पर संपर्क किया गया और उनके छोटे छोटे समूह बना दिए गए | हर एक समूह में से एक शिक्षित और तकनीकी तौर पर जानकार व्यक्ति को उनका नेता नियुक्त किया गया और उन्हें कहा गया कि खाद्य सामग्री, दवाइयां, पानी का स्टॉक कर लें, कम से कम सामान रखें और शॉर्ट नोटिस पर कहीं भी जाने के लिए तैयार रहें.
साथ ही, दूतावास के कर्मचारियों ने उन क्षेत्रों को भी अपने नक़्शे पर दर्ज़ किया जहाँ अलग अलग ग्रुप अपना नियंत्रण बनाये हुए थे , उन विवादित क्षेत्रों के स्थानीय कमांडरों के फ़ोन नंबर भी इकठ्ठा किये गए और उनके साथ संपर्क स्थापित किया गया ताकि किसी प्रकार की क्षति से बचा जा सके. भारतीय दूतावास में स्थापित किया गया वॉर रूम लगातार चौबीसों घंटे काम कर रहा था और इसमें दूतावास का हर छोटा बड़ा अधिकारी शामिल था.
कैसे पूरी कार्रवाई को अमल में लाया गया
चूंकि भारतीय वॉर रूम पहले से ही तैयार था, सो, जैसे ही भारत सरकार ने "ऑपरेशन कावेरी" की आधिकारिक घोषणा की, दूतावास की सारी टीम कार्रवाई में जुट गयी. शुरू में सभी ये समझ रहे थे कि बचाव कार्य वायुयानों में माध्यम से होगा जैसा कि यूक्रेन, इराक और अफ़ग़ानिस्तान में हुआ पर सूडान में स्थिति विपरीत थी, हवाई अड्डे विद्रोहियों के नियंत्रण में थे और एक तुर्की विमान के ऊपर गोलाबारी होने के बाद कुछ भी कहना प्रासंगिक नहीं था.
इसीलिए भारत सरकार ने पहले चरण में भारतीयों के बचाव के लिए समुद्री मार्ग का उपयोग करने का निर्णय लिया और इसके लिए पोर्ट ऑफ़ सूडान नमक बंदरगाह को चुना जहाँ पर स्थितियां अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण थीं. खार्तूम और पोर्ट ऑफ सूडान के बीच की दूरी लगभग 850 किमी है और सड़क बहुत ही टूटी फूटी है इसीलिए ये आसान नहीं था. भारतीय दूतावास ने 20 अप्रैल 2023 को स्थानीय ट्रांसपोर्टरों से बसों का मंगवाया परन्तु निश्चित समय पर कोई बस नहीं आयी क्योंकि उन्हें अन्य देश के लोगों द्वारा 2-3 गुना भाड़ा देकर बुक कर लिया गया था.
अब भारतीय दूतावास के कर्मचारियों के पास इन बस ऑपरेटर्स को मुंहमांगी रकम देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. एक बड़ी चुनौती और थी क्योंकि वो ये थी कि कोई नहीं जानता था कि यात्रा कैसी होगी और मार्ग सुरक्षित है या नहीं. इस समस्या का मुकाबला करने के लिए, हर बस में तकनीकी समझ रखने वाले समझदार लोगों को टीम लीडर बनाया गया और उनको विस्तृत रूप से समझाया गया कि कैसे काम करना है.
उन्हें कहा गया कि मोबाइल से पूरे रास्ते की तस्वीरें लें और उन्हें गूगल लोकेशन के साथ टैग करके दूतावास के वॉर रूम में तुरंत भेज दें. साथ ही ऐसे स्थानों को चिह्नित करें जहाँ पर ईंधन, भोजन, दवाइयां और पानी उपलब्ध हो सकते हैं और ऐसे स्थान जहां भारतीय लोग किसी दुर्घटना की स्थिति में आश्रय ले सकें. इन सभी स्थानों को वॉर रूम में नक़्शे पर मार्क कर लिया गया.
इतना ही नहीं, बसों में सवार हर यात्री को, हर भारतीय को उसकी पहचान और प्राथमिकता के लिए एक नंबर कार्ड दिया गया. हर व्यक्ति को पता था कि उसे लाइन में कहां खड़ा होना है और उसके आगे-पीछे कौन होगा. उन्हें यह भी बताया गया कि उन्हें कौन-कौन से दस्तावेज अपने पास रखने चाहिए. इससे विस्थापित भारतीयों के बीच उच्च स्तर का अनुशासन बनाने में मदद मिली और जब हमारे जहाज़ आये तो भारतीय लोगों को उन पर चढ़ने में समय नहीं लगा.
पहले समूह ने अपना काम बहुत अच्छा किया और जब तक वो पोर्ट ऑफ़ सूडान पहुंचे, भारतीय वॉर रूम में हर आने वाली गतिविधि की पूरी तरह से प्लानिंग हो चुकी थी. भारतीय सैन्य अताशे सारी कार्रवाई को नियंत्रित कर रहे थे. जिन भारतीयों के पास अपने पासपोर्ट नहीं थे, उन्हें भी उचित पहचान करने के बाद भारतीय के रूप में चिह्नित कर लिया गया और पोर्ट ऑफ़ सूडान स्थित भारतीय दूतावास की एक छोटी टीम उन्हें प्रतिबद्धता के साथ सूडान से निकाल रही थी. चूँकि पहले दल के पोर्ट ऑफ़ सूडान पहुँचने के बाद हमारे वॉर रूम में सारी सूचनाएं थी, तो बाकि के दलों को भेजने में अधिक समय नहीं लगा. त्वरित कार्रवाई बहुत ज़रूरी थी क्योंकि सूडान में स्थितियां बहुत ही तेज़ी से ख़राब हो रही थीं. .
खारर्तूम में रहने वाले भारतीयों के बचाव के साथ साथ ही सूडान के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों के लिए स्थानीय संपर्क के माध्यम से बसों की व्यवस्था की गई और उनके लिए भी इसी तरह की प्लानिंग करी गयी. हर समूह से भारतीय दूतावास लगातार संपर्क बनाये हुए था और कई बार नौबत ऐसी आयी कि काफिले का नेतृत्व स्वयं भारतीय दूतावास के कर्मचारियों को ही करना पड़ा.
इस पूरे ऑपरेशन की प्रमुख चुनौती यह थी कि भारतीय दलों को कई बार RSF और SAF नियंत्रित स्थानों को पार करना था और हर बार जब ऐसी नौबत आती थी, भारतीय दूतावास के कर्मचारियों को दोनों पक्षों से संपर्क करना पड़ता था ताकि वे आपसी गोलाबारी रोक दें. कई बार बसें ऐसे इलाक़ों से भी गुज़री जहाँ आस पास गोलियां चल रही थीं.
वादी सैय्यदना की कहानी
परिस्थितियां तेज़ी से बदल रही थीं और खार्तूम से लगभग 40 किलोमीटर उत्तर में वाडी सैय्यदना हवाई अड्डे को चालू कर दिया गया था. इसे एक अच्छा अवसर मानते हुए भारतीय दूतावास ने सूडानी अधिकारियों से अनुरोध किया कि भारतीय हवाई जहाज़ों को वादी सैय्यदना में उतरने की अनुमति दी जाये ताकि बचाव कार्य और तेज़ी से किया जा सके. मंज़ूरी मिल गयी और भारतीय नागरिकों का एक समूह उस ओर जाने के लिए तैयार कर लिया गया.
चूँकि रास्ता बहुत मुश्किल था और हर जगह गोलीबारी हो रही थी, भारतीय रक्षा अताशे ने स्वयं काफिले का नेतृत्व करने का निश्चय किया. रास्ते में उसे ओम-दुर्मान शहर था जहाँ के चप्पे चप्पे पर लड़ाई हो रही थी, इस ग्रुप को कई बार नील नदी को पार करना था और वो भी ऐसी स्थितियों में जहां लपुल का एक सिरा SAF के नियंत्रण में था जबकि दूसरा RSF के पास था और दोनों ही खून के प्यासे हो रहे थे. इन सब चुनौतियों के बावजूद भारतीय दल वादी सैय्यदना हवाई अड्डे पर पहुंचा और वहां पहुंचे पर एक और खौफनाक मंज़र सामने आया.
जिन सूडानी अधिकारीयों ने भारतीय हवाई जहाज़ों को उतारने की अनुमति दी थी वो गायब थे और पूरा एयर बेस ब्रिटिश रॉयल एयर फोर्स और स्पेशल एयर सर्विस के नियंत्रण में था. एक और समस्या थी और वो ये थी कि सूडानी अधिकारियों के अनुमति पत्र अरबी भाषा में थे जो ब्रिटिश अधिकारियों के लिए काला अक्षर भैंस बराबर था इसलिए घंटों तक स्थिति गंभीर बनी रही. चूँकि उन्हें पहले से इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी और सूडानी अधिकारियों ने बेस छोड़ने से पहले उन्हें कुछ नहीं बताया था, उन्होंने भारतीयों को कई घंटों तक बेस के बाहर खड़ा रखा जब तक कि उच्च स्तरीय के राजनयिक प्रयास नहीं किए गए. बाद में अनुमति मिल गयी परन्तु चूँकि ये एक युद्ध क्षेत्र था, भारतीय विमान अपने नाइट विजन गूगल का उपयोग करके उतरे और बेदाग योजना और भारतीयों के बीच सख्त अनुशासन एवं दूतावास के अधिकारीयों की प्लानिंग के कारण, एक घंटे से भी कम समय में भारतीय दल को लेकर वापस उड़ान भर सके.
ऑपरेशन कावेरी केवल भारतीय नौसेना, वायुसेना और भारत सरकार का ही काम नहीं था बल्कि इसमें सबसे बड़ा योगदान रहा सूडान स्थित भारतीय दूतावास का. खारर्तूम का भारतीय दूतावास बहुत बड़ा नहीं है और वहां गिनती के ही कर्मचारी हैं पर ऐसे समय में न सिर्फ स्वयं राजदूत बल्कि भारतीय दूतावास के सारे कर्मचारियों ने दिन-रात काम किया और वे तब तक जुटे रहे जब तक कि प्रत्येक भारतीय को युद्धग्रस्त देश से बाहर नहीं निकाल लिया गया.
दूतावास की इमारत आस पास हो रहे धमाकों से हिल रही थी पर दूतावास के कर्मचारियों के दृढ निश्चय को वे तनिक भी हिला नहीं पाए. ऐसे कई मौके आये जब पूरी तरह से ब्लैकआउट हो गया और काम मुश्किल था पर हमारे दूतावास के कर्मचारी लेकिन वे खार्तूम से पोर्ट ऑफ़ सूडान जाने के लिए तभी निकले जब उन्हें यकीन हो गया कि सूडान में अब कोई भारतीय नहीं बचा है. ये एक ऐसा समय था जब राजनयिक सचिवों, रक्षा अताशे, लेखाकार लोग, कर्मचारी सदस्य और यहाँ तक कि स्वयं भारतीय राजदूत ने भी अथक परिश्रम किया और "ऑपरेशन कावेरी" को सफल बनाया. वे बीस दिन उनमें से हर एक को और हर उस भारतीय को याद रहेंगे जिन्हें सूडान से सुरक्षित निकाल लिया गया था. आशा है कि हमारे बाकी देशवासी भी उनके कार्यों को याद रखेंगे.