Chandrayaan-3: भूकंप, जानकारियों का पुलिंदा... भारत के वास्ते चांद से क्या-क्या लाएगा चंद्रयान-3
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Chandrayaan-3: भूकंप, जानकारियों का पुलिंदा... भारत के वास्ते चांद से क्या-क्या लाएगा चंद्रयान-3

इसरो ने कहा था कि ‘चंद्रयान-3’ कार्यक्रम के तहत इसरो अपने चंद्र मॉड्यूल की मदद से चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट-लैंडिंग’ और चांद के भूभाग पर रोवर के घूमने का प्रदर्शन करके नई सीमाएं पार करने जा रहा है.

Chandrayaan-3: भूकंप, जानकारियों का पुलिंदा... भारत के वास्ते चांद से क्या-क्या लाएगा चंद्रयान-3

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शुक्रवार को अपने तीसरे चंद्र मिशन-‘चंद्रयान-3’ को एलवीएम3-एम4 रॉकेट के जरिए लॉन्च कर दिया. इसी के साथ भारत में पूरी दुनिया का इंतजार खत्म हो गया. इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-3, रॉकेट एलवीएम3-एम4 से सफलतापूर्वक अलग हो गया है. एलवीएम-3एम4 रॉकेट ने ‘चंद्रयान-3’ को सटीक कक्षा में स्थापित कर दिया है और अब ‘चंद्रयान-3’ ने चंद्रमा की तरफ अपनी यात्रा शुरू कर दी है.

चंद्रयान कब पहुंचेगा चंद्रमा की सतह पर?
वैज्ञानिकों के मुताबिक, चंद्रयान-3 अगले 50 दिनों के अंदर यानी अगस्त के अंत में चंद्रमा की सतह तक पहुंच जाएगा. इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया कि 23-24 अगस्त को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग होगी. कल गुरुवार को शुरू हुई 25.30 घंटे की उलटी गिनती के अंत में अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र के दूसरे ‘लॉन्च पैड’ से दोपहर 2.35 बजे एलवीएम3एम4 रॉकेट ‘चंद्रयान-3’ को पृथ्वी के इकलौते उपग्रह चंद्रमा की यात्रा पर लेकर रवाना हो गया.

कैसा है चंद्रयान को चंद्रमा पर ले जाने वाला रॉकेट?
लॉन्चिंग के 16 मिनट बाद प्रक्षेपण माड्यूल रॉकेट से अलग हो गया. एलवीएम3-एम4 रॉकेट अपनी श्रेणी में सबसे बड़ा और भारी है जिसे वैज्ञानिक 'फैट बॉय' कहते हैं. एलवीएम3एम4 रॉकेट को पूर्व में जीएसएलवीएमके3 कहा जाता था. 

ये मिशन एलवीएम3 की चौथी अभियानगत उड़ान है जिसका उद्देश्य ‘चंद्रयान-3’ को भू-समकालिक कक्षा में पहुंचाना है. इसरो ने कहा कि एलवीएम3 रॉकेट ने कई उपग्रहों को प्रक्षेपित करने, अंतरग्रही अभियानों सहित अधिकतर जटिल अभियानों को पूरा करने करने की अपनी विशिष्टता साबित की है. यह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय ग्राहक उपग्रहों को ले जाने वाला सबसे बड़ा और भारी प्रक्षेपण यान भी है.

भारत को उम्मीद...
आज रवाना हुआ ‘चंद्र मिशन’ 2019 के ‘चंद्रयान-2’ का फॉलोअप मिशन है. भारत के इस तीसरे चंद्र मिशन में भी अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का है.

‘चंद्रयान-2’ मिशन के दौरान अंतिम क्षणों में लैंडर ‘विक्रम’ पथ विचलन के चलते ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में सफल नहीं हुआ था. यदि इस बार इस मिशन में सफलता मिलती है तो भारत ऐसी उपलब्धि हासिल कर चुके अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ जैसे देशों के क्लब में शामिल हो जाएगा. उम्मीद है कि यह मिशन भविष्य के अंतरग्रही अभियानों के लिए सहायक होगा.

इसरो ने कहा था कि ‘चंद्रयान-3’ कार्यक्रम के तहत इसरो अपने चंद्र मॉड्यूल की मदद से चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट-लैंडिंग’ और चांद के भूभाग पर रोवर के घूमने का प्रदर्शन करके नई सीमाएं पार करने जा रहा है.

चंद्रयान-3 मिशन में क्या है?
चंद्रयान-3 मिशन में एक स्वदेशी प्रोपल्शन मॉड्यूल, लैंडर मॉड्यूल और एक रोवर शामिल है. इसका मकसद अंतर-ग्रहीय अभियानों के लिए आवश्यक नई तकनीकों को विकसित करना और उसे प्रदर्शित करना है. इसका वजन करीब 3,900 किलोग्राम है.

इस मिशन का मकसद, चंद्रमा की कक्षा पर पहुंचना, लैंडर का उपयोग कर चंद्रमा की सतह पर यान को सुरक्षित उतारना और लैंडर में से रोवर का बाहर निकलकर चंद्रमा की सतह के बारे में अध्ययन करना है.

इस बार लैंडर के डिजाइन में बदलाव
राजशेखर ने कहा कि 2019 में चंद्रयान-2 के दौरान चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में आंशिक विफलता के बाद इसरो ने वाहन लैंडर के डिजाइन में कुछ बदलाव किए हैं. उन्होंने बताया कि इस अंतरिक्ष मिशन के लिए नये घटकों का इस्तेमाल करने से पहले उनका कई बार परीक्षण किया गया. राजशेखर ने कहा कि चंद्र मिशन में इस्तेमाल होने वाले 50,000 से ज्यादा  अहम घटकों के निर्माण के लिए 150 से अधिक तकनीशियनों ने पिछले दो वर्षों में दिन-रात काम किया.

क्या-क्या पता लगाएगा ये मिशन?
- चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग सतह पर रोवर उतरेगा.
- इस मिशन के तहत एक खास यंत्र की मदद से चांद से पृथ्वी को देखा जाएगा.
- साथ ही चांद पर जीवन की विशेषताओं का अध्ययन किया जाएगा.
- इससे सौर मंडल के बाहर मौजूद ग्रहों की खोज में मदद मिलेगी.
- क्या चांद पर भी आते हैं भूकंप? ऐसे सवालों का भी जवाब इस मिशन से मिल सकता है. 
- साथ ही पृथ्वी और चांद के बीच की सटीक दूरी कितनी है? इसकी जानकारी भी मिलेगी.
- एक यंत्र चांद के प्लाज्मा वातावरण के बारे में अध्ययन करेगा. 
- वहीं, चांद की सतह पर हीट कैसे काम करता है, सतह की कंपोजिशन कैसी है, इन सवालों के जवाब भी मिल सकेंगे.
- कुल मिलाकर चांद के वातावरण के बारे में विस्तृत जानकारी मिलने की उम्मीद है.

इसरो के चंद्रमा तक पहुंचने के मिशन का घटनाक्रम इस प्रकार है... 
- 15 अगस्त 2003 : तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चंद्रयान कार्यक्रम की घोषणा की.
- 22 अक्टूबर 2008 : चंद्रयान-1 ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी.
- 08 नवंबर 2008 : चंद्रयान-1 ने प्रक्षेपवक्र पर स्थापित होने के लिए चंद्र स्थानांतरण परिपथ (लुनर ट्रांसफर ट्रेजेक्ट्री) में प्रवेश किया.
- 14 नवंबर 2008 :  चंद्रयान-1 चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव के समीप दुर्घटनाग्रस्त हो गया लेकिन उसने चांद की सतह पर पानी के अणुओं की मौजूदगी की पुष्टि की.
- 28 अगस्त 2009 : इसरो के अनुसार चंद्रयान-1 कार्यक्रम की समाप्ति हुई.
- 22 जुलाई 2019 : श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया गया.
- 20 अगस्त 2019 : चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया.
- 02 सितंबर 2019 : चंद्रमा की ध्रुवीय कक्षा में चांद का चक्कर लगाते वक्त लैंडर ‘विक्रम’ अलग हो गया था लेकिन चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर लैंडर का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया.
- 14 जुलाई 2023 : चंद्रयान-3 श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में दूसरे लॉन्चपैड से उड़ान भरा.
- 23/24 अगस्त 2023 : इसरो के वैज्ञानिकों ने 23-24 अगस्त को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की योजना बनाई है जिससे भारत इस उपलब्धि को हासिल करने वाले देशों की फेहरिस्त में शामिल हो जाएगा.

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