आज नवरात्रि के पर्व पर जगह-जगह मां दुर्गा की पूजा की जा रही है. लेकिन आज हम आपको छत्तीसगढ़ के ऐसे जगह के बारे में बता रहे हैं, जहां पर नवरात्रि में दानव देवता की पूजा की जाती है.
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ओपी तिवारी/सूरजपुर: हिंदू धर्म के पावन पर्व नवरात्रि की आज से शुरुआत हो गई है. देश प्रदेश के सभी प्रसिद्ध देवी मंदिरों में सुबह से ही भक्तों की लंबी-लंबी कतारें लगी हुई है. नवरात्र के समय हर जगह मां शक्ति की उपासना की जाती है. लेकिन आज हम आपको छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के ऐसे धाम के बारे में बता रहें हैं, जहां पर देवी देवताओं क नहीं बल्कि दानव की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दरबार में जो भी आता है वह खाली हाथ वापस नहीं जाता है. मन्नत पूरा होने पर इस मंदिर में बकरे और मुर्गे की बलि दी जाती है. साथ ही शराब भी चढ़ाया जाता है. आइए जानते हैं कैसा है यह धाम और क्या है इसकी मान्यता...
खोपा धाम में होती है दावन की पूजा
छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के खोपा धाम में नवरात्र पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी हुई है. यहां मन्नत के लिए बांधे गए नारियल और धागे से पूजा हो रही है. लेकिन इस पूजा किसी देवी देवता की नहीं बल्कि दानव की हो रही है और इस दानव का नाम है बकासुर जिसे स्थानीय लोग दानव देवता के नाम से भी जानते हैं. इनकी स्थापना खोपा गांव में की गई है इसलिए इस धाम को खोपा धाम कहा जाता है.
बैगा समाज के लोग कराते हैं पूजा
इस धाम में आसपास के इलाके ही नहीं बल्कि और कई प्रदेशों के लोगों के लिए भी आस्था का केन्द्र है. यहां तमाम लोग अपनी मान्यता लेकर आते हैं और मनचाहा मुराद पाकर जाते हैं. इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है बताया जाता है कि बकासुर नाम का दानव खोपा गांव के बगल से गुजरती रेड नदी में रहते थे. गांव के एक बैगा जाति के युवक से प्रसन्न होकर वहां गांव के बाहर एक स्थान पर रहने लगे और अपनी पूजा के लिए उन्होंने बैगा जाति के लोगों को ही स्वीकृति प्रदान की. यही वजह है कि यहां पूजा कोई पंडित नहीं बल्कि आदिवासी जनजाति बैगा ही कराते है तब से लेकर आज तक यह स्थल आस्था का केन्द्र बना हुआ है.
मन्नत पूरा होने पर चढ़ाया जाता है बकरा और मुर्गा
यहां की पूजा का तरीका भी अलग है पहले यहां नारियल तेल और सुपाड़ी के साथ पूजा कर अपनी मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर यहां बकरा, मुर्गा और शराब का प्रसाद चढ़ाया जाता है. इस स्थान में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी. लेकिन अब आधुनिकता में महिलाएं भी भारी संख्या में इस पवित्र स्थल पर जाकर पूजापाठ करती हैं. इस स्थान में पिछले कई सौ सालों से पूजा हो रही है.
यहां के प्रसाद को नहीं ले जा सकते घर
इस धाम पर आज तक मंदिर का निर्माण नहीं कराया गया है, जिसकी अपनी अलग कहानी है. जानकारों के अनुसार खोपा देवता ने स्थापित होने से पहले ही यह बात कह दी थी, मेरा मंदिर ना बनाया जाए ताकि मैं चार दीवारी में कैद होने के बजाए स्वतंत्र रह सकूं. साथ ही इस स्थान की मान्यता है कि यहां का प्रसाद महिलाए नहीं खा सकती है. साथ ही यहां के प्रसाद को घर नहीं ले जाया जा सकता है.
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