Advertisement
trendingPhotos/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh2629823
photoDetails1mpcg

अजब-गजब है MP के माली समाज की परंपरा, जहां पुरुष पहनते हैं साड़ी

mp news:एमपी के बुरहानपुर में एक ऐसी परंपरा का पालन आज भी किया जाता है, जिसे सुनकर आप भी कहेंगे एमपी अजब है. ये परंपरा करीब 500 साल पुरानी है जिसे बुरहानपुर का माली समाज निभा रहा है.  

 

बुरहापुर जिलेकी पुरानी संस्कृति

1/7
बुरहापुर जिलेकी पुरानी संस्कृति

मध्य प्रदेश के बुरहापुर जिले में ऐसी परंपरा का पालन होता है जो सुनने में तो काफी अटपटी लगती है लेकिन यह परंपरा यहां के लोगों की पुरानी संस्कृति को दर्शाती है. सालों से उनके पूर्वज भी इस परंपरा का पालन करते आएं हैं.

 

माली समाज

2/7
माली समाज

बुरहानपुर जिले के रास्तीपुरा में माली समाज रहता है जो अपनी सालों पुरानी परंपराओं का आज भी पालन करने के लिए जाना जाता है. 

 

साल में एक बार पुरुषों को पहननी होती है साड़ी

3/7
साल में एक बार पुरुषों को पहननी होती है साड़ी

माली समाज में पुरुषों को साल में एक बार साड़ी पहनने की परंपरा 500 साल पुरानी हैं. परंपरा ये है कि सिर्फ साड़ी ही नहीं पहनना होता है बल्कि मुंझे महाराज की शोभा यात्रा में शामिल भी होना होता है. 

 

मुंझे महाराज के कपड़े

4/7
मुंझे महाराज के कपड़े

बसंत पंचमी के अवसर पर इस परंपरा को खास तरीके से पालन किया जाता है.  माली समाज के लोग बताते हैं कि जिस तरह से मुंझे महाराज के कपड़े बनाए जाते थे, उसी तरह से आज भी माली समाज के पुरुषों को साल में एक दिन साड़ी पहनना जरूरी होता है और साथ में रुमाल भी बांधा जाता है.

 

मुंझे महाराज की शोभायात्रा

5/7
मुंझे महाराज की शोभायात्रा

पुरूष के साड़ी पहनने के बाद मुंझे महाराज की शोभायात्रा निकाली जाती है. शोभायात्रा में परिवार का हर सदस्य शामिल होता है और नाचते-गाते हुए ताप्ती नदी के घाट पर पहुंचता है. 

 

स्नान और पूजा पाठ

6/7
स्नान और पूजा पाठ

ताप्ती नदी पर पहुंचने के बाद स्नान करने की परंपरा है. स्नान करने के बाद पूजा-अर्चना की जाती है फिर वहां मौजूद परिवार के लोगों को खाना खिलाया जाता है. 

 

चांदी के मुंझे महाराज

7/7
चांदी के मुंझे महाराज

माली समाज के बुजुर्ग नागरिक बताते हैं कि इस परंपरा को निभाने के लिए चांदी के मुंझे महाराज बनवाए जाते हैं फिर अपने कुल देवता के स्थान से सोनार के यहां जाकर वहां से मुंझे महाराज को लेकर ताप्ती नदी जाते हैं और वहां महाराज को स्नान करवाते हैं और फिर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है.