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बसंत पंचमी पर MP के इस मंदिर में पेन और इंक चढ़ाने से एग्जाम में मिलती है सफलता, जानिए क्या है मान्यता

mp news: आज बसंत पंचमी का दिन है और मध्य प्रदेश का धार्मिक नगर कहे जाने वाले उज्जैन में एक ऐसा मंदिर है, जहां पर बसंत पंचमी के दिन स्कूली बच्चे मां सरस्वती को इंक चढ़ाकर पूजा करते हैं. ऐसा करने के पीछे बच्चों ने इसकी वजह भी बताई है. 

 

सरस्वती माता का मंदिर

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सरस्वती माता का मंदिर

अगर स्कूल की भाषा में कहे तो फरवरी के महीने को परीक्षा का महीना भी कहा जा सकता है और इसी महीने में  बसंत पंचमी का दिन भी पड़ता है.  बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करनी की प्रथा है लेकिन उज्जैन में एक 400  साल पुराना मंदिर मौजूद है जहां बच्चे मां सरस्वती को इंक चढ़ाते हैं. 

 

काले पत्थर से बनी मां सरस्वती की मूर्ति

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काले पत्थर से बनी मां सरस्वती की मूर्ति

मंदिर की बात करें तो यह मंदिर 400 साल पुराना है जहां काले पत्थर से बनी मां सरस्वती की मूर्ति विराजमान है. कहते हैं कि मंदिर में विराजमान मां  अपने भक्तों की सारी इच्छाओं को  पूरा करती हैं. भक्त कभी भी इस मंदिर से निराश होकर नहीं जाता है. 

 

भक्तों की भीड़

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भक्तों की भीड़

बसंत पंचमी के दिन इस मंदिर में भक्तों की खूब भीड़ देखने को मिलती है. इस दिन यहां मौजूद हर भक्त के  हाथ में सरसों का फूल  दिख जाता है जो मां सरस्वती को अर्पित करने के लिए मंदिर लाए होते हैं. 

 

इंक और पेन चढ़ाने की मान्यता

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इंक और पेन चढ़ाने की मान्यता

भक्तों में बच्चों की संख्या खूब दिखती है. ये स्कूल जाते बच्चे अपने हाथों में  इंक और पेन लिए खड़े दिखते हैं. परीक्षा के वक्त  बच्चे मां सरस्वती को  इंक और पेन चढ़ाते है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से सरस्वती मां का आशीर्वाद मिलता है.

 

उज्जवल भविष्य और अच्छे करियर

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उज्जवल भविष्य और अच्छे करियर

बच्चे यहां मां से अपने उज्जवल भविष्य और अच्छे करियर के लिए प्रार्थना करते हैं. एग्जाम के समय यहां बच्चों की संख्या अधिक हो जाती है. 

 

50 सालों से चली आ रही परंपरा

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50 सालों से चली आ रही परंपरा

कालो पत्थर से बनी मां सरस्वती की बेशकीमती मूर्ती  शहर के सिंहपुरी क्षेत्र छोटे से मंदिर में  स्थित है.  भक्तों में इस मंदिर के लिए श्रद्धा अपार है. इंक और पेन चढ़ाने की परंपरा कब से शुरू हुई इसकी जानकारी तो नहीं है लेकिन बच्चों में बसंत पंचमी के दिन इस परंपरा को निभाने का उत्साह साफ दिखता है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि पिछले 50 सालों से इस परंपरा को निभाया जा रहा है.