Today in History: 13 जनवरी के इतिहास की बात करें तो इस तारीख ने भारतीय सेना को ऐसा सूरमा योद्धा दिया है. जिसकी बहादुरी के किस्से आज भी रगों में बहते लहू की रफ्तार बढ़ाकर सीना गर्व से चौड़ा कर देंगे.
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Major Mohit Sharma: भारतीय सेना में ऐसे ऐसे सूरमा हैं, जिनका नाम सुनकर सरहद पार पाकिस्तानी फौज के मौजूदा जनरल और रिटायर्ड दोनों खौफ खाते हैं. आज की तारीख के इतिहास में बात मेजर मोहित शर्मा की जिनकी बहादुरी का किस्सा सुनकर आपके रोम रोम में रोमांच भर जाएगा. मेजर मोहित शर्मा की जाबांजी से भारत में आतंकवादियों की घुसपैठ का काम देखने वाली पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI भी सन्न रह गई थी.
देश का गौरव
मेजर मोहित में बहादुरी और देशभक्ति कूट कूट कर भरी थी. 6 फुट, 2 इंच लंबे मेजर मोहित का जन्म 13 जनवरी 1978 को हुआ था. मेजर साहब 21 मार्च 2009 को मेजर मोहित शर्मा कुपवाड़ा जिले में आतंकियों के साथ लोहा लेते वक्त शहीद हो गए थे. उस समय वो अपनी टीम का नेतृत्व कर रहे थे. उनके शरीर पर कई गोलियां लगी थी, इसके बावजूद 4 आतंकियों को मारकर उन्होंने अपने 2 साथियों की जान बचाई थी. उनका बलिदान देश कभी नहीं भुला सकता.
इफ्तिखार भट्ट की कहानी
अपनी शहादत से पहले उन्होंने पाकिस्तानी इंटेलिजेंस और भारत की धरती में छिपे आतंकवादियों के हमदर्दों का पता लगाकर ऐसी कहानी रची थी कि आतंकवादियों को पालने पोसने वालों को भनक तक नहीं लगी थी कि उनके रची पटकथा को अंजाम तक पहुंचाने वाले टॉप कमांडर्स/दहशतगर्द ढेर हो चुके थे. इफ्तिखार भट्ट कोई और नहीं सेना की 1-पैरा स्पेशल फोर्स के ऑफिसर मेजर मोहित शर्मा थे, जिन्हें कोवर्ट ऑपरेशन में महारत हासिल थी. उन्होंने फिल्मों में दिखाए जाने वाले भेष बदलकर ऑपरेशन करने की कहानी को सच में साबित कर दिया. मेजर मोहित शर्मा के बारे में यह कहानी एक इंटरव्यू में उनके भाई मधुर ने बताई थी.
साल 2001 में भारतीय सेना (Indian Army) के एक ऑपरेशन में एक कश्मीरी युवक मारा गया था. इसके बाद उसके भाई ने सेना से बदला लेने की ठानी. उसने सेना से बदला लेने के लिए आतंकी कमांडरों से मुलाकात की. उनके दिल में जगह बनाने के बाद इफ्तिखार हिजबुल के एरिया कमांडरों तेरारा और सबजार के साथ उठने बैठने लगा था. दोनों ने इफ्तिखार को आतंकी ट्रेनिंग दिलाई और वापस घाटी ले आए. आखिरकार वो दिन आया जब गश्त करते हुए उन्हें फौजियों की टुकड़ी पर हमला करना था. इससे पहले तीनों को हमले को अंजाम देने वाले बाकी साथियों से मिलना था.
भाईजान गोली मार दो!
मेजर मोहित की उस अकल्पनीय कहानी के लिए समय के पहिए को करीब 21 साल पीछे घुमाना होगा. महीना था मार्च 2004 का, जब तोरारा और सबजार कश्मीर घाटी में कहीं छिपे थे. इफ्तिखार कहवा बना रहा था. अचानक सबजार के दिमाग में खयाल आया- आखिर यह इफ्तिखार है कौन? क्योंकि इतने समय में भी इफ्तिखार के बारे में उसके नाम के अलावा किसी को कुछ नहीं पता था. हां कुछ लोगों को उसकी सुनी सुनाई कहानी जिसमें बदले वाला एंगल था, उसकी जानकारी थी. तभी दाढ़ी बढाये हुआ इफ्तिखार कहवा लेकर आया और तोरारा और सबजार को कहवा देने के बाद खुद कहवा पीने लगा. तभी दिमागी उथलपुथल से परेशान सबजार ने पूछा - इफ्तिखार तुम हो कौन?
ये सुनते ही इफ्तिखार ने कंधे पर लटकी राइफल जमीन पर फेंकते हुए कहा- भाईजान भरोसा नहीं तो गोली मार दें, लेकिन ये सवाल ना पूछे.' ये बात सुनते ही दोनों सकते में आ गए. सबजार कुछ कहने के लिए तोरार की तरफ मुड़ा तब तक पीछे से एक पिस्टल से गोली चली और प्वाइंट ब्लैंक रेंज से पहले सबजार फिर तोरा ढेर हो गया. इसके बाद इफ्तिखार ने अपना कहवा पिया और सही समय आने का इंतजार करने लगा. तब तक भारतीय सेना की पैरा स्पेशल फोर्स की एक टुकड़ी वहां पहुंच गई और इफ्तिखार अब मेजर मोहित शर्मा हो गए थे.