Anti Conversion Law: हलफनामें में कहा गया कि सरकार फिलहाल सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से समय समय पर जारी गाईडलाइन का पालन कर रही है.
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Anti Conversion Law: राजस्थान में धार्मिक रूपांतरण के कथित मामलों को रोकने के लिए राजस्थान सरकार शीघ्र धर्मान्तरण विरोधी एक नया कानून लाने जा रही है. सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका के जवाब में पेश किए गए हलफनामें में राजस्थान सरकार ने अधिकारिक रूप से स्वीकार किया है.
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने तमिलनाडु की घटना के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर धर्मान्तरण विरोधी मामलों की जांच करने और सख्त कानून की वकालत की थी. इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार के साथ ही देश के सभी राज्यों से जवाब मांगा था.
हलफनामें में सरकार ने कहा
राजस्थान सरकार की ओर से इसी जनहित याचिका के जवाब में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा यानी शपथपत्र पेश किया है. पेश किए हलफनामें में सरकार द्वारा नियुक्त ओआईसी और पुलिस मुख्यालय पर कार्यरत अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक भरत लाल मीणा ने हलफनामें में कहा कि राजस्थान में फिलहाल एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मान्तरण को रोकने वाला कोई कानून नही हैं.
हलफनामें में कहा गया कि सरकार फिलहाल सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से समय समय पर जारी गाईडलाइन का पालन कर रही है.
इसके साथ ही सरकार ने हलफनामें में कहा कि राजस्थान सरकार खुद का धर्मान्तरण विरोधी कानून ला रही है और तब तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशो का सख्ती से पालन करेगी.
नहीं मिली थी राष्ट्रपति की मंजूरी
गौरतलब है कि राजस्थान में फिलहाल ऐसा कोई काननू नहीं है, जिससे धर्म परिवर्तन में रोक लगाई जा सके. दूसरी तरफ पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की सरकार द्वारा वर्ष 2008 में पारित किए गए धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक को राजस्थान सरकार ने वापस लेने का निर्णय लिया है. राज्य विधानसभा में पारित होने के बाद इस विधेयक कसे राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली थी जिसके चलते ये कानून नहीं बन सका था.
भजनलाल सरकार ने प्रदेश में बढ़ते धर्म परिवर्तन के मामलों के आधार पर इसे वापस लेने की बात कहीण् जिसके बाद हाल ही में गृह विभाग ने विधेयक को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
2008 में पारित हुआ था बिल
2008 में वसुंधरा राजे के समय पारित विधेयक में व्यक्तियों को दूसरे धर्म में परिवर्तित होने से पहले जिला कलेक्टर की मंजूरी प्राप्त करने की आवश्यकता थी. गैरकानूनी धर्मांतरण के दोषी पाए जाने वालों के लिए पांच साल की जेल की सजा निर्धारित की गई थी. जबदस्त विरोध के बावजूद राज्य विधानसभा में इसे पारित किया गया था.
धर्मान्तरण विरोधी कानून को लेकर जनहित याचिका
बीजेपी नेता और अधिवक्त अश्विनी उपाध्याय ने वर्ष 2022 में सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 32 के तहत जनहित याचिका दायर देश में धर्म परिवतन को लेकर सख्त कानून बनाने की मांग की थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नवबंर 2022 में जस्टिस एम आर शाह की बेंच ने जबरन धर्म परिवर्तन को एक गंभीर मामला मानते हुए केन्द्र और राज्य सरकार को जवाब पेश करने का आदेश दिया था.
याचिकाकर्ता का नाम हटाया, कई याचिकाए की क्लब
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा कि गयी टिप्पणी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई थी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका से याचिकाकर्ता का नाम हटा दिया और याचिकाकर्ता की जगह धर्म परिवर्तन से जुड़े मामले लिखवाया.
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ धर्म परिवर्तन को लेकर अलग अलग सभी याचिकाओं को भी इसी याचिका के साथ क्लब करने के आदेश दिए. बाद में जमियत उलेमा ए हिंद की ओर से दायर याचिका को भी इसके साथ ही सूचीबद्ध किया गया जिसके जरिए बीजेपी शाषित राज्यों में पारित धर्मान्तरण विरोधी कानूनों को चुनौती दी गयी.
अब कब होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाईट के अनुसार धर्म परिवर्तन से जुड़ी 8 याचिकाओं पर अगले माह यानी जुलाई में सुनवाई होगी. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में ग्रीष्मकालीन अवकाश है. अवकाश के बाद रेगुलर अदालते शुरू होने के बाद ही इस मामले पर सुनवाई होगी. वेबसाईट केस स्टेटस के अनुसार 16 जुलाई 2024 को इस मामले पर सुनवाई होगी. इन याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई अप्रैल 2023 में हुई थी