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झुंझुनूं: हाल ही में राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने एक गलत और प्राकृतिक न्यायिक सिद्धांत से विपरित निर्णय लेने पर झुंझुनूं के खेतड़ी के तत्कालीन एसडीएम पर 75 हजार का जुर्माना लगाया है. मामला शांतिभंग, यानि कि धारा 151 में गिरफ्तार व्यक्ति से जुड़ा हुआ है.
दरअसल, धारा 151 में गिरफ्तार व्यक्ति को और अधिक प्रताड़ित करने के लिए अक्सर कार्यपालक मजिस्ट्रेट जमानत की सख्त शर्तें लगातार जेल भेज देते हैं, लेकिन इस मामले में बार-बार कोर्ट के कड़े रूख के बाद भी ढर्रे में सुधार नहीं हुआ तो अब राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने सख्ती दिखाई है.सबसे पहले बात झुंझुनूं के खेतड़ी के तत्कालीन एसडीएम राजपाल यादव की. जिन्होंने एक शांतिभंग के आरोपी को 25-25 हजार रुपए के तस्दीक शुदा जमानती मुचलके नहीं लाने पर जेल भेजने के आदेश दिए थे.
हाल ही में इस आदेश को राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने गलत और प्राकृतिक न्यायिक सिद्धांत से विपरित माना है. साथ ही तत्कालीन अनुशासनात्मक कार्रवाई का आदेश देते हुए प्रमुख शासन सचिव कार्मिक विभाग और कलेक्टर झुंझुनूं को आदेश दिया है कि वे आरएएस अधिकारी राजपाल सिंह के वेतन से 75 हजार रुपए की कटौती कर दो महीने के अंदर-अंदर यह राशि क्षतिपूर्ति के रूप में परिवादी को दें.
जज ने तीन बार किए कार्यपालक मजिस्ट्रेटों के आदेश खारिज
दरअसल, मामला 20 जनवरी 2021 का है. खेतड़ी थाने में एक व्यक्ति ने हरियाणा के सतनाली थाना इलाके के बलाणा गांव के रहने वाले विकास के खिलाफ शिकायत दी कि वह उसकी बहन के पीछे पड़ा हुआ है और फोन पर धमकियां दे रहा है. जिस पर खेतड़ी पुलिस ने कार्रवाई करते हुए विकास को धारा 151 में शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार किया. अगले दिन 21 जनवरी 2021 को विकास को जमानत के लिए तत्कालीन उपखंड अधिकारी खेतड़ी राजपाल यादव के समक्ष पेश किया गया, लेकिन एसडीएम ने 25-25 हजार रुपए के तस्दीकशुदा जमानत मुचलके लाने और तस्दीकशुदा जमानत मुचलके नहीं लाने पर न्यायिक अभिरक्षा में रखने के आदेश दे दिए. इसके बाद करीब पांच दिनों तक विकास खेतड़ी जेल में रहा. जब तस्दीकशुदा जमानती मुचलके लाए गए तब विकास की जमानत लेकर उसे छोड़ा गया.
इस आदेश के खिलाफ विकास के वकील सुभाष यादव तथा अशोक यादव ने एडीजे कोर्ट खेतड़ी में निगरानी याचिका लगा दी थी, लेकिन उसकी सुनवाई होती रही. 17 फरवरी 2021 को तत्कालीन एडीजे महावीर प्रसाद गुप्ता ने भी गंभीर टिप्पणियों के साथ उपखंड मंजिस्ट्रेट के निर्णय को अपास्त कर दिया. मानि खारिज कर दिया.
इस निर्णय में एडीजे महावीर प्रसाद गुप्ता ने साफ लिखा कि धारा 151 में हिरासत में रखने की अधिकतम अवधि 24 घंटे ही होती है. 24 घंटे के बाद यह कार्रवाई स्वतः ही समाप्त हो चुकी थी. एसडीएम की कार्रवाई विधि विरूद्ध है और प्राकृतिक न्याय सिद्धांत की अनदेखी है. इसी दरमियान पीड़ित ने मानवाधिकार आयोग में भी अपनी अपील लगाई. जिसके जवाब में 27 मई 2021 को आयोग ने कलेक्टर झुंझुनूं को नोटिस देकर तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी. जिसके जवाब में 29 जून 2021 को कलेक्टर झुंझुनूं ने रिपोर्ट भेजी.सभी पक्षों को सुनने के बाद मानवाधिकार आयोग ने भी आदेश दिया है कि माननीय सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के विरूद्ध आदेश पारित किया गया है.एसडीएम पर अनुशासित कार्रवाई की जाए और चूंकि गैर कानूनी आदेश के तहत हिरासत में रखा गया.इसलिए परिवादी को आरएएस राजपालसिंह के वेतन से कटौती कर 75 हजार रूपए की राशि दो महीने में दी जाए.
मिलेगी बड़ी राहत, कई बार भेज देते हैं जेल
कानून विशेषज्ञों की मानें तो मानवाधिकार आयोग का यह फैसला और एडीजे खेतड़ी का इस मामले में दिया गया फैसला बड़ी राहत देगा.कई बार देखने में आता है कि शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार लोगों की कार्यपालक मजिस्ट्रेट तस्दीकशुदा जमानत प्रस्तुत करने के आदेश देते है.जिसके ना होने पर शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार लोगों को भी कई दिनों तक जेल में बिताने होते है.जबकि इस मामले में परिवादी के अधिवक्ता सुभाष यादव तथा अशोक यादव द्वारा पेश किए गए तर्कों से तथा तत्कालीन एडीजे खेतड़ी महावीर प्रसाद गुप्ता के निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि धारा 151 में गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में नहीं रखा जा सकता.वहीं 24 घंटे बाद इस धारा में की गई कार्रवाई स्वतः ही समाप्त हो जाती है.
जयपुर कमिश्नरेट में भी कोर्ट के आदेशों से हलचल
वर्तमान में न्यायालय अपर सेशन न्यायधीश क्रम चार, जयपुर महानगर प्रथम के पद पर कार्यरत महावीर प्रसाद गुप्ता ने पिछले महीने ही एक और ऐसा आदेश दिया है.जिससे जयपुर कमिश्नरेट में हलचल मची हुई है.दाअसल सोडाला पुलिस ने शांतिभंग की पूर्व संभावना में 10 जुलाई 2022 को विनोद सोनी नाम के व्यक्ति को शांतिभंग के आरोप में धारा 151 में गिरफ्तार किया था.जिसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त जयपुर दक्षिण के सामने पेश किया गया. कार्यपालक मजिस्ट्रेट ने पांच हजार रूपए के बंधपत्र के साथ निकट के रिश्तेदार को जमानती मुचलके नहीं लाने तक न्यायिक अभिरक्षा में रखने के आदेश 11 जुलाई 2022 को दिए.इस आदेश की निगरानी के लिए अपील महावीर प्रसाद गुप्ता के कोर्ट में की गई.जिन्होंने इस आदेश को खारिज करते हुए 13 जुलाई 2022 को संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के लिए स्वतंत्र किया था.जिसके बाद जयपुर कमिश्नरेट में हलचल मची हुई है.
झुंझुनूं जिले में भी दो फैसले दिए एडीजे गुप्ता ने
खेतड़ी के विकास को लेकर पहले तत्कालीन एडीजे महावीर प्रसाद गुप्ता तथा इसके बाद मानवाधिकार आयोग ने कड़ा फैसला लिया है.लेकिन खेतड़ी में एडीजे रहते हुए महावीर प्रसाद गुप्ता ने बुहाना एसडीएम के फैसले को भी खारिज करते हुए एक व्यक्ति को न्यायिक अभिरक्षा से मुक्त करवाया था.दरअसल सोहली गांव निवासी 35 वर्षीय वीरेंद्र उर्फ कालू को फरवरी 2020 में शांतिभंग में पुलिस ने गिरफ्तार किया तो कार्यपालक मजिस्ट्रेट बुहाना एसडीएम ने बंधपत्र के साथ छह माह के लिए पाबंद किया और जमानत दी.इसके बाद 13 अप्रेल 2020 में फिर से पुलिस ने झगड़ा करते हुए वीरेंद्र को गिरफ्तार किया तो कार्यपालक मजिस्ट्रेट ने यह कहते हुए उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया कि उसने बंधपत्र तोड़ा है.इसलिए बंध पत्र के शेष दिनों तक उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेजा जाए.जिसके विरूद्ध उसने निगरानी याचिका एडीजे खेतड़ी महावीरप्रसाद गुप्ता के समक्ष लगाई.एडीजे ने इस आदेश को खारिज किया और 21 अप्रेल 2020 को न्यायिक अभिरक्षा से मुक्त करवाया।
151 का सच आदेशों में किया उल्लेखित, हो रहा है मिस यूज
दरअसल, एडीजे महावीर प्रसाद गुप्ता और मानवाधिकार आयोग के एक सभी आदेशों पर गौर करें तो कुछ बातें स्पष्ट तौर पर सामने आती है.जिससे लगता है कि फिलहाल धारा 151 में गिरफ्तार व्यक्तियों को प्रताड़ित किया जाता है.कानून में साफ लिखा है कि 151 धारा दंडात्मक नहीं है, सिर्फ निरोधात्मक है.जो सिर्फ 24 घंटे के लिए है.इसके बाद स्वतः खत्म हो जाती है.वहीं किसी भी कड़ी शर्त को जोड़कर जमानत देने की बात कहना, जमानत से इंकार करने जैसा है.जैसे एक भारी राशि के साथ जमानत मुचलके पेश करना, स्थानीय निवासी, निकट रिश्तेदार, किसी राज्य विशेष का मुचलका आदि कड़ी शर्तों की तरह है.
Reporter- Sandip Kedia
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