Legal Expert Opinion : हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में भारत रिश्ते बनाए रखने में सबसे टॉप पर है. लेकिन फिर भी पिछले कई सालों में तलाक के आंकड़े तुलनामत्मक रूप से बढ़े है. ऐसे में समाज में तलाक को लेकर बढ़ती स्वीकार्यता और समाज की सोच पर क्या है लीगल एक्सपर्ट की राय. बता रही हैं सीनियर एडवोकेट प्रियंका बोराना.
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Opinion : तलाक और असंतोषपूर्ण वैवाहिक जीवन के बीच एक बड़ी उलझन समाज में है. कुछ लोग तलाक को एक उपयुक्त विकल्प मानते हैं, जबकि कुछ लोग संयुक्त वैवाहिक जीवन का पालन करना पसंद करते हैं. तलाक उन लोगों के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है जो एक असंतोषपूर्ण वैवाहिक जीवन जीते हुए हैं. एक असंतोषपूर्ण वैवाहिक जीवन न केवल आपकी मानसिक स्थिति को खराब करता है, बल्कि आपकी आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हो सकती है.
धीरे-धीरे तलाक को समाज में स्वीकृति मिल रही है, जो अधिकतर महिलाओं और पुरुषों के लिए सकारात्मक है.
आधुनिक समाज में तलाक की स्थिति में बदलाव के कारण, समाज अधिकतर महिलाओं और पुरुषों के साथ उनकी ज़िम्मेदारियों को बढ़ावा देता है. आजकल तलाक के मुद्दे से अधिकतर महिलाएं और पुरुष आगे आते हैं. आधुनिक समाज में तलाक की स्थिति का स्केच बदलता जा रहा. अक्सर लोग यह मानते थे कि एक सफल विवाह में विवाहित जोड़े का संबंध जीवन भर के लिए होता है. इसलिए, तलाक को एक सामाजिक बुराई माना जाता था जो समाज में एक लंबे समय तक चलता रहता था. आज के समय में तलाक की स्थिति का मूल्यांकन बहुत संज्ञात्मक बन गया है और समाज के लोग इसे एक सामाजिक समस्या नहीं मानते हैं. तलाक के बाद न जाने क्यों लोगों के मन में अपने आप में खेद, निराशा और असहानुभूति आ जाती है. जो आदमी या औरत तलाक के दर्द को झेल चुके हैं, वह समझते हैं कि उन्हें उन लोगों को कैसे फैसला लेने में सहायता की ज़रूरत होती है जो वे अपने जीवन में अहम रोल निभाते हैं. तलाक के बाद दोनों पति और पत्नी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. तलाकशुदा पुरुष और महिलाएं समाज में एक समान होते हैं. वे दोनों समाज के एक अहम हिस्से होते हैं जो तलाक के बाद एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत करते हैं.
हालांकि यह सत्य है कि तलाकशुदा महिलाएं अक्सर पुरुषों से अधिक आर्थिक, सामाजिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसका मुख्य कारण है समाज की पुरुषों की दृष्टि, जो तलाक के बाद महिलाओं को एक अलग लेबल देते हैं. वे उन्हें एक अलग श्रेणी में रखते हैं, जो उनकी सोच और व्यवहार में असंतुलितता उत्पन्न करती हैl आमतौर पर, स्त्रियों को एक नई ज़िंदगी शुरू करने में दिक्कत होती है. तलाक के बाद, उन्हें समाज में एक स्थान खोजना होता है जो उनकी मानसिक और आर्थिक स्थिति के अनुसार हो. इसके अलावा, अक्सर स्त्रियों के ऊपर समाज में एक ऐसा संघर्ष भी होता है, जहां वे तलाक के बाद एक विनम्रता से जीने का समय देखती हैं. तलाक के बाद महिलाएं कई सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ता है जो पुरुषों के बराबर नहीं होती हैं.
आधुनिक समाज में महिलाओं की शिकायतों को समझने के लिए अधिक महत्व दिया जाता है. अब समाज में लोगों को समझ में आ रहा है कि एक नारी जब एक तलाक का फैसला लेती है तो उसमें उसके पिछले जीवन में किस तरह की समस्याएं थीं. महिलाएं अब अपनी ज़िम्मेदारी उठाती हैं और अपनी ज़िन्दगी के लिए स्वतंत्र निर्णय लेती हैं. यह बदलाव महिलाओं को अपने जीवन के अनुभवों के लिए अधिक सक्षम बनाता है और वे तलाक के निर्णय के बारे में भी सक्षम होती हैं.
इस समय में, जहां समाज में विवाह के महत्व को अपने मूल्यों में रखा जाता है, तलाक के निर्णय लेना कठिन हो सकता है. लेकिन तलाक के निर्णय को स्वीकार्य बनाने के लिए समाज में बदलाव होना जरूरी है. समाज को इस बात को स्वीकार करना होगा कि तलाकशुदा होना बुरा नहीं है. आजकल समाज में तलाक के बाद अब ऐसी सोच नहीं है जो पहले थी. धीरे-धीरे समाज इस बात को स्वीकार कर रहा है कि तलाक के बाद पुरुष और महिला दोनों असमान संकटों का सामना कर सकते हैं और वे एक नयी ज़िन्दगी की शुरुआत कर सकते हैं. इस तरह की सोच अब न केवल नई पीढ़ियों में फैल रही है बल्कि पुरानी सोच वालों में भी बदलाव आ रहा है. आधुनिक समाज में तलाक की स्थिति में बदलाव देखा जा रहा जो एक सकारात्मक परिवर्तन है.
Note : लेख में कही हुई बात लेखक के निजी विचार है.