Earth Day 2024: प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग पृथ्वी के पर्यावरण के लिए संकट- प्रोफेसर अरुण व्यास
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Earth Day 2024: प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग पृथ्वी के पर्यावरण के लिए संकट- प्रोफेसर अरुण व्यास

Earth Day 2024: समूचे ब्रह्मांड में पृथ्वी ही इकलौता ग्रह है, जहां मानव जीवन संभव है और जीव-जंतु के साथ ही पादप जगत के लिए भी अनुकूल उपलब्धता है. लेकिन भौतिकता व विलासिता की अंधी दौड़ में मशगूल मनुष्य के कारण पृथ्वी खतरे की कगार पर है. पृथ्वी का स्वाभाविक स्वरूप विकृत हो गया है. खनन, जल दोहन, जंगलों की कटाई और भूमिगत परीक्षणों से पृथ्वी खोखली हो गई है.

Earth Day 2024

Earth Day 2024: पृथ्वी पर मानव के साथ जीव जंतु और पादप जगत के जीवन के लिए उपलब्ध उपयुक्त एकमात्र ग्रह पृथ्वी पर आज जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापवृद्धि के मुद्दों पर विश्व स्तर पर वैज्ञानिकों द्वारा जाहिर चिंता की जा रही है. इसलिए इस साल पृथ्वी दिवस की थीम "ग्रह बनाम प्लास्टिक" रखी गई है. इस थीम का उद्देश्य पृथ्वी पर बढ़ते प्लास्टिक प्रदुषण के बारे में आमजन को जागरूक करना है. साथ ही इसके खिलाफ कड़े कदम उठाना भी है. 

प्लास्टिक प्रदूषण के तहत माइक्रो-प्लास्टिक की उपस्थिति नदियों, महासागरों, मिट्टी, भोजन, भू-जल, चाय, अंटार्कटिक बर्फ और बादलों तक में दर्ज हो चुकी है. पर्यावरणविद डॉ अरुण व्यास के अनुसार पृथ्वी पर प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करना और प्लास्टिक के कचरे की सफाई करने को लेकर जागरूकता बढ़ाना होगा. सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करना होगा और प्लास्टिक को रीसाइकल कर प्लास्टिक मुक्त अभियान में सहभागी बनना होगा.

 सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध 

 सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध और प्लास्टिक पैकेजिंग को डिस्करेज कर प्लास्टिक प्रदुषण को कम करने में हमें अपनी अहम भूमिका निभानी होगी. इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) द्वारा सुझाएं गये रोड मैप पर ठोस कार्रवाई वैश्विक स्तर पर तुरंत करने से ही पृथ्वी पर जीवन संकट के लिए जिम्मेदार कारकों से निजात पाया जा सकेगा.

प्रोफेसर अरुण व्यास के अनुसार, मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन व्यापक और तीव्र है. यह सभी प्रजातियों के लिए खतरा है. यह हमारे पूरे ग्रह के स्वास्थ्य के लिए खतरा है. कठोर वैश्विक जलवायु कार्रवाई में और देरी से बिगड़े हालात में सुधार की गुंजाइश हाथ से फिसल जाएंगी. हमें इनसे निपटने के लिए रणनीतिक रोडमेप तैयार करना होगा और हमें ठोस वैश्विक कार्ययोजना तैयार कर उसकी क्रियान्विति से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने को प्रतिबद्ध होना चाहिए. वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण हिमनदों और बर्फिली चादरों के तीव्र गति से पिघलने से वैश्विक माध्य समुद्र जलस्तर में बढ़ोतरी दर्ज हुई है. 

समुद्र के जलस्तर में वृद्धि से तटीय क्षेत्रों में बसे देश, प्रदेश, शहरों और गांवों की आबादी खतरें के जद में हैं. औधोगिक विकास के साथ ग्रीन हाउस गैसों के बेतहाशा उत्सर्जन ने पृथ्वी के वायुमंडल को बुरी तरह से प्रभावित किया है और आज वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सान्द्रता का स्तर 422.10 पी पी एम हो गया है. ग्लोबल वार्मिंग को लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 2030 तक 43 फीसदी तक कमी लानी होगी. जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक स्तर पर अधिकतर प्रवासी प्रजातियों का अस्तित्व संकटग्रस्त हो गया है और जैव विविधता पर पर्यावरण प्रदुषण का असर स्पष्ट नजर आ रहा है और पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहा है. मानसून के मिजाज को बदल रहा है और कम दिनों में अधिक बरसात से बाढ़ की आपदा के खतरे बढ़ रहें है.

नियो टेक्टोनिक्स गतिविधियों और प्रायद्वीपेतर हिमालय क्षेत्र में मानवीय गतिविधियों में बढ़ोतरी भूकंपीय आपदाओं के लिहाज से खतरनाक साबित हो सकती है. पृथ्वी पर आज जनसंख्या बढ़कर आठ अरब से भी अधिक हो गई है.जनसंख्या वृद्धि के कारण भू संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बना है और मांग एवं आपूर्ति में असंतुलन हो गया है.

हमें सामुहिक जिम्मेदारी से पृथ्वी के पर्यावरण को स्वच्छ और संरक्षित करने के लिए भू संसाधनों का नीतिगत तरीकों से दोहन करना होगा. प्लास्टिक के उपयोग में कमी करते हुए रिसाइकिल और रीयूज कंसेप्ट पर ध्यान देते हुए हमें जल, थल और आकाश में प्रदूषण नियंत्रण में सहयोगी भूमिका निभानी होगी.

 पृथ्वी पर बढ़ रहे खतरों से दुनिया भर के वैज्ञानिक चिंतित है. वृक्षों की अवैध कटाई से वन खत्म हो गए हैं तो औद्योगिक विकास में मौसम तंत्र को प्रभावित किया है. ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी संकट में है. औषधीय व जीवों की अनेक प्रजातियां नष्ट होने के कगार पर है. आबादी बढ़ने के साथ ही खेतों पर कालोनियां बन रही है. ऐसे में वैज्ञानिकों के अनुसार अगर हालात नहीं सुधरेंगे तो पृथ्वी पर सातवां महाविनाश कोई नहीं रोक सकता.

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