राजस्थान में आरक्षण आंदोलन का इतिहास, सबसे ज्यादा किस जाति ने किए आंदोलन, देखें पूरी डिटेल
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राजस्थान में आरक्षण आंदोलन का इतिहास, सबसे ज्यादा किस जाति ने किए आंदोलन, देखें पूरी डिटेल

Cast reservation movement in Rajasthan : राजस्थान में जातिगत आरक्षण की मांग को लेकर कई आंदोलन हुए है. जाट आरक्षण से लेकर गुर्जर आरक्षण और अब सैनी, माली, मौर्य और कुशवाहा समाज का आंदोलन. कभी भरतपुर तो कभी दौसा और सवाई माधोपुर आंदोलन के केंद्र बनते है. और सबके केंद्र में होती है जयपुर की सियासत. जानिए राजस्थान में कब कब आंदोलन हुए. किस जाति ने किए सबसे ज्यादा आंदोलन.

राजस्थान में आरक्षण आंदोलन का इतिहास, सबसे ज्यादा किस जाति ने किए आंदोलन, देखें पूरी डिटेल

राजस्थान का भरतपुर अक्सर आरक्षण आंदोलन की वजह से सुर्खियों में रहता है. कभी गुर्जर आरक्षण आंदोलन की वजह से चर्चा में रहा भरतपुर इन दिनों सैनी, माली, मौर्य और कुशवाहा समाज की ओर से चल रहे आरक्षण आंदोलन की वजह से चर्चा में है. Bharatpur में चल रहे इस आंदोलन में 12 प्रतिशत अलग से आरक्षण की मांग चल रही है. जिसकी वजह से बीकानेर-आगरा नेशनल हाईवे पर कब्जा कर लिया गया है. यहां जयपुर से लेकर करौली, दौसा, सवाई माधोपुर, धौलपुर, सीकर और अलवर से इस समाज के लोग जुटे है. ऐसे में आज जानते है कि आखिर राजस्थान में आरक्षण को लेकर आंदोनल कब-कब हुए और किस किस जाति ने किए.

राजस्थान विधानसभा चुनाव 1998

राजस्थान में जब 1998 के विधानसभा चुनाव हुए. तो उस समय अशोक गहलोत पीसीसी चीफ थे. प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में जाट आरक्षण की मांग उठने लगी. कांग्रेस पार्टी ने आरक्षण का भरोसा दिया. प्रदेश भर से जाट समाज ने एक तरफा कांग्रेस का समर्थन किया और कांग्रेस ऐतिहासिक 153 विधानसभा सीटें जीतकर सत्ता में आई. हालांकि चुनावों के बाद अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने. आरक्षण का मसला कुछ वजहों से अटक गया.

2003 विधानसभा चुनाव से पहले जाट आरक्षण

साल 2002 की बात है. जाट समाज के कुछ लोगों की प्रदेश बीजेपी के नेताओं ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात कराई. वाजपेयी ने राजस्थान में जाटों को आरक्षण का वादा किया. साल 2003 के विधानसभा चुनाव हुए तो जाटों ने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया. राजस्थान के इतिहास में पहली बार बीजेपी अपने दम पर 120 सीटें जीतकर सरकार में आई. वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनी. परंपरागत रूप से कांग्रेस का वोटर पहली बार बीजेपी की तरफ गया. असर 2004 के लोकसभा चुनावों पर भी पड़ा. राजस्थान में बीजेपी ने 25 में से 21 सीटें जीती.

गुर्जर आरक्षण आंदोलन 2006

ये वो समय था जब प्रदेश में वसुंधरा राजे सरकार थी. साल 2006 में गुर्जर आरक्षण की मांग उठी. कर्नल किरोड़ीसिंह बैंसला के नेतृत्व में एकजुट हुए. ओबीसी से बाहर अलग से आरक्षण मांगा गया. एसटी में शामिल करने की मांग हुई. गुर्जरों ने हिंडौन में रेलवे पटरियों और सड़कों पर कब्जा किया. वसुंधरा राजे सरकार ने कमेटी भी बनाई लेकिन कोई परिणाम तक नहीं पहुंचे.

साल 2007 में 21 मई को फिर से आंदोलन हुआ. पीपलखेड़ा पाटोली में गुर्जर इकट्ठा हुए. हाईवे जाम किया गया. इसमें 28 लोगों की मौत हुई. इसके बाद सरकार की ओर से चोपड़ा कमेटी बनाई गई. कमेटी ने 15 दिसंबर 2007 को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें गुर्जरों को 5 प्रतिशत आरक्षण देने की बात हुई. 

2008 में भरतपुर और दौसा में आंदोलन

चोपड़ा कमेटी की रिपोर्ट के बावजूद जब आरक्षण नहीं मिला तो गुर्जरों ने साल 2008 में फिर से आंदोलन शुरू किया. 23 मार्च 2008 को भरतपुर के बयाना में रेल रोकी गई. तनावपूर्ण हालातों के बीच पुलिस फायरिंग हुई. सात लोगों की मौत हुई. इसके बाद दौसा के सिकंदरा चौराहे पर भी वैसे ही हालात बने. यहां भी 23 लोग मारे गए. आपको बता दें कि गुर्जर आरक्षण आंदोलन में कुल 72 लोगों की मौत हुई थी. 

साल 2010 में गुर्जरों का आरक्षण का प्रस्ताव

गुर्जरों ने राजस्थान विधानसभा चुनाव 2008 में बीजेपी का विरोध किया. परिणाम ये रहा कि पार्टी 120 से सीधे 78 पर आ गई. 2009 के लोकसभा चुनाव हुए तो बीजेपी 25 में से सिर्फ 4 सीटें ही जीत पाई. अशोक गहलोत सरकार ने गुर्जरों को 5 प्रतिशत आरक्षण तो दिया लेकिन मिला सिर्फ 1 प्रतिशत ही. 50 प्रतिशत की सीमा आड़े आ गई. 24 दिसंबर 2010 को भरतपुर के बयाना में  पीलु का पुरा में गुर्जर फिर जुटे. रेलें रोकी गई.

2015 में गु्र्जरों का आंदोलन

साल 2015 में एक बार फिर गुर्जर सड़कों पर उतरे. सरकार के वादे के मुताबिक 5 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिल पाया था. 2013 के चुनाव में कांग्रेस की बजाय गुर्जर वोटर बीजेपी की तरफ गए. 21 मई 2015 को वसुंधरा सरकार के समय फिर आंदोलन हुआ. बीजेपी सरकार ने 5 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी भी दी लेकिन हाईकोर्ट ने रोक लगा दी.

साल 2019 में 8 दिन का आंदोलन

कर्नल किरोड़ीसिंह बैंसला के नेतृत्व में सवाई माधोपुर के मलारना डूंगर में फरवरी 2019 को फिर से आंदोलन शुरू हुआ. कई जगह ट्रेनें रोकी. उस समय मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने मध्यस्थता निभाई. 8 दिन बाद आंदोलन समाप्त हुआ. बैंसला ने कहा कि सरकार ने जो ड्राफ्ट दिया है उसमें हमारी सभी मांगें मान ली है. 

साल 2020 में आदिवासियों का आंदोलन

राजस्थान में विधानसभा चुनाव 2018 से पहले दक्षिण राजस्थान में भारतीय ट्राइबल पार्टी ने काम शुरू कर दिया. ये पार्टी 2017 में गुजरात में बनी थी. आदिवासी वोटर पर केंद्रित इस पार्टी को छोटू भाई वसावा ने बनाया था. 2018 में दक्षिण राजस्थान में इस पार्टी के 2 विधायक भी जीते. 2020 में वागड़ इलाके में विशेष आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन भी हुआ. यहां आगजनी हुई. उदयपुर - अहमदाबाद हाईवे जाम हुआ. 

राजस्थान के अलावा पूरे भारत में समय समय पर आरक्षण आंदोलन होते रहे है. हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन तो 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले हार्दिक पटेल के नेतृत्व में गुजरात में हुआ पाटीदार आरक्षण आंदोलन. राजस्थान में भी पहले जाट आरक्षण तो बाद में गुर्जर आरक्षण आंदोलन हुआ. अब सैनी, माली, मौर्य और कुशवाहा समाज भी आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहा है.

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