शौर्य: 'शेरशाह' कैप्टन विक्रम बत्रा, वो जांबाज जिसने दुश्मन को धूल चटाने के बाद कहा- ये दिल मांगे मोर
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शौर्य: 'शेरशाह' कैप्टन विक्रम बत्रा, वो जांबाज जिसने दुश्मन को धूल चटाने के बाद कहा- ये दिल मांगे मोर

साल 1999 में कारगिल जंग में भारत ने पाकिस्तान को धूल चटाई थी. भारत के वीर जवानों ने पाकिस्तान के नापाक इरादों को नेस्तनाबूद कर दिया था. करीब 3 महीने चली इस जंग में हमने 527 वीर सपूतों को खोया था और इन्हीं में से एक थे कैप्टन विक्रम बत्रा.

शौर्य: 'शेरशाह' कैप्टन विक्रम बत्रा, वो जांबाज जिसने दुश्मन को धूल चटाने के बाद कहा- ये दिल मांगे मोर

आजादी के 75 साल पूरे होने पर देश के सबसे लोकप्रिय चैनल Zee News ने एक खास सीरीज की शुरुआत की है, जिसका नाम है 'शौर्य'. सीरीज का एक भाग हमने कारगिल युद्ध के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा को समर्पित किया है. साल 1999 में हुई इस जंग में भारत ने पाकिस्तान को धूल चटाई थी. भारत के वीर जवानों ने पाकिस्तान के नापाक इरादों को नेस्तनाबूद कर दिया था. करीब 3 महीने चली इस जंग में हमने 527 वीर सपूतों को खोया था और इन्हीं में से एक थे कैप्टन विक्रम बत्रा.

कैप्टन विक्रम बत्रा ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल युद्ध के दौरान भारत को 17 हजार फीट ऊंचे प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने में मदद की. हिमाचल प्रदेश में जन्मे कैप्टन विक्रम बत्रा कारगिल वॉर के हीरो रहे हैं. उन्होंने देश के लिए जो सेवा की उससे उन्होंने कइयों को प्रेरित किया.

शुरू से थी सेना का हिस्सा बनने की ख्वाहिश

विक्रम बत्रा कम उम्र से ही भारतीय सेना का हिस्सा बनने की ख्वाहिश रखते थे. वह हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के पास घुग्गर गांव के एक मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े. बत्रा अपने स्कूल के समय में विशेष रूप से टेबल टेनिस और कराटे में सक्रिय थे, जिसमें वे ग्रीन बेल्ट धारक थे.

कैप्टन विक्रम बत्रा के माता-पिता शिक्षक थे. उनके पिता एक सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल थे और उनकी मां एक शिक्षिका थीं.  चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज में बीएससी मेडिकल साइंसेज में दाखिला लेने के बाद विक्रम बत्रा नेशनल कैडेट कोर (एनसीसी) के साथ कैडेट बन गए. विक्रम बत्रा ने अपनी एनसीसी इकाई में सीनियर अंडर ऑफिसर बनने के लिए मेहनत किया और अंततः 1994 में उन्होंने गणतंत्र दिवस परेड में मार्च किया. 

इसके बाद उन्होंने  अपने माता-पिता से कहा कि वह सेना में शामिल होना चाहते हैं. उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय में एमए (इंग्लिश) में एडमिशन लिया, ताकि वह संयुक्त रक्षा सेवा (सीडीएस) परीक्षा की तैयारी कर सकें. 

विक्रम बत्रा उन 35 उम्मीदवारों में से थे जिन्होंने 1996 में सीडीएस परीक्षा पास की थी. इसके बाद वह देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) में शामिल हुए और मानेकशॉ बटालियन का हिस्सा बने.  उन्होंने 19 महीने की कड़ी ट्रेनिंग पूरी की और 13वीं बटालियन, जम्मू और कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के रूप में भारतीय सेना में शामिल हुए. 

सोपोर में हुई पहली पोस्टिंग

ट्रेनिंग पूरी होने के बाद विक्रम बत्रा की पहली पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर के सोपोर में थी. सोपोर जम्मू-कश्मीर के उन इलाकों में से एक है जिसे काफी संवेदनशील माना जाता है. यहां पर विक्रम बत्रा की आतंकवादियों के साथ कई मुठभेड़ हुई. 

3 मई को जब कारगिल जंग की शुरुआत हुई तब विक्रम बत्रा की बटालियन को द्रास पहुंचने का ऑर्डर मिला. उनकी बटालियन, 13 जेएके राइफल्स को युद्ध में रिजर्व के रूप में कार्य करना था. विक्रम बत्रा के बटालियन में शामिल होने के एक महीने से अधिक समय से कारिगल में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग चल रही थी. 

दुश्मन पर लगातार सफल हमलों के बाद विक्रम बत्रा और उनकी कंपनी को टोलोलिंग पर प्वाइंट 5140 पर कब्जा करने का काम सौंपा गया. ये द्रास क्षेत्र में सबसे कठिन और महत्वपूर्ण चोटियों में से एक थी. 

19 जून 1999 को विक्रम बत्रा ने महसूस किया कि खड़ी चट्टानें दुश्मन के हमलों से बचने में मदद नहीं करेंगी. उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों को आश्चर्यचकित करने के लिए विपरीत दिशा से अपनी कंपनी का नेतृत्व करने का फैसला किया.

एक बार दुश्मन का पता चलने के बाद विक्रम बत्रा ने पाकिस्तानी  चौकियों पर दो हथगोले फेंके, जिससे दुश्मन पीछे हट गया. उन्होंने आमने-सामने की लड़ाई का नेतृत्व किया और तीन सैनिकों को मार डाला. तब तक विक्रम बत्रा गंभीर रूप से घायल हो चुके थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. वह किसी भी तरह पहाड़ी की चोटी तक पहुंचे, जहां वे बाकी कंपनी के साथ फिर से जुड़ गए और प्वाइंट 5140 पर कब्जा कर लिया.

20 जून को सुबह 4.35 बजे, पाकिस्तान के 8 सैनिकों को मारने के बाद विक्रम बत्रा का जोश हाई हो गया. उन्होंने कहा- 'ये दिल मांगे मोर'.  इस कब्जे के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी टीम को 80 डिग्री खड़ी और 17,000 फीट ऊंचे प्वाइंट 4875 पर नियंत्रण करने के लिए भेजा गया.

कैप्टन विक्रम बत्रा के नेतृत्व में प्वाइंट 4875 पर कब्जा

कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई को मिशन के लिए आगे बढ़े.चूंकि मौसम अनुकूल नहीं था, इसलिए कैप्टन विक्रम बत्रा और उनके साथियों को शीर्ष पर पहुंचने में कठिनाई हुई. फिर भी मौसम से लड़ते हुए वे अपने लक्ष्य तक पहुंच गए. यह भी तब हुआ जब विक्रम बत्रा एक अन्य अधिकारी को बचाते हुए गंभीर रूप से घायल हो गए थे.अधिकारी को बचाने के दौरान विक्रम बत्रा को भी सीने में गोली लगी. 

सुबह तक, भारत ने प्वाइंट 4875 पर कब्जा कर लिया, लेकिन उसने अपने हीरो विक्रम बत्रा को खो दिया. उनकी बहादुरी, युद्ध कौशल और नेतृत्व ने उन्हें 15 अगस्त 1999 को देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र से नवाजा. उनके पिता जीएल बत्रा ने अपने बेटे के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन से ये सम्मान प्राप्त किया. कैप्टन विक्रम बत्रा को विदा हुए 23 साल हो गए, लेकिन वो आज भी हम सबकी यादों में हैं. वो अमर हैं. वो हर किसी के लिए प्रेरणा हैं. उनकी वीरता अमर रहे! 

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