संपत्ति का अधिकार संवैधानिक अधिकार है...सुप्रीम कोर्ट ने किस मामले में सुना दिया बड़ा फैसला
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संपत्ति का अधिकार संवैधानिक अधिकार है...सुप्रीम कोर्ट ने किस मामले में सुना दिया बड़ा फैसला

Right to property a constitutional right: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के नवंबर 2022 के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर फैसला सुनाया. बेंच ने कहा, संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-ए के प्रावधानों के मद्देनजर यह एक संवैधानिक अधिकार है.

 

संपत्ति का अधिकार संवैधानिक अधिकार है...सुप्रीम कोर्ट ने किस मामले में सुना दिया बड़ा फैसला

Supreme Court Ruling on Property Rights: सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि संपत्ति का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है और कानून के अनुसार पर्याप्त मुआवजे का भुगतान किए बिना किसी व्यक्ति से उसकी संपत्ति नहीं ली जा सकती, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन ने कहा कि संविधान (44वां संशोधन) अधिनियम, 1978 के कारण संपत्ति का मौलिक अधिकार समाप्त कर दिया गया, हालांकि यह एक कल्याणकारी राज्य में एक मानवाधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार बना हुआ है.

संविधान के अनुच्छेद 300-ए में प्रावधान
संविधान के अनुच्छेद 300-ए में प्रावधान है कि कानूनी प्रक्रिया का उपयोग किए बिना किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा, शीर्ष अदालत ने बेंगलुरु-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट (बीएमआईसीपी) के लिए भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के नवंबर 2022 के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर बृहस्पतिवार को अपना फैसला सुनाया. पीठ ने कहा, “संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं है, हालांकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-ए के प्रावधानों के मद्देनजर यह एक संवैधानिक अधिकार है,” इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर परियोजना से संबंधित मुआवजे पर अपने फैसले में अदालत ने कहा, "किसी व्यक्ति को कानून के अनुसार पर्याप्त मुआवजा दिए बिना संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता,"

जानें क्या है मामला
जनवरी 2003 में, प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (केआईएडीबी) ने एक अधिसूचना जारी की थी और नवंबर 2005 में अपीलकर्ताओं की जमीन पर कब्जा कर लिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में पाया कि प्रोजेक्ट के लिए लोगों की जमीन पर कब्जा किया गया और उन्हें इस के लिए मुआवजा भी नहीं दिया गया. बिना मुआवजे के लोगों को उनकी जमीन से वंचित कर दिया गया. कोर्ट ने कहा पिछले 22 साल से इन जमीन मलिकों ने कई बार अदालत के दरवाजे खटखटाए.

बेंच ने कहा कि अवमानना ​​कार्यवाही में नोटिस जारी होने के बाद ही, विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी (एसएलएओ) ने 22 अप्रैल, 2019 को अधिग्रहित भूमि के बाजार मूल्य का निर्धारण करने के लिए 2011 में प्रचलित दिशानिर्देश मूल्यों को ध्यान में रखते हुए मुआवजा निर्धारित किया गया था. साथ ही कोर्ट ने कहा, अगर साल 2003 के बाजार मूल्य के तहत लोगों को मुआवजा देने की इजाजत दी गई तो यह न्याय का मजाक उड़ाने और अनुच्छेद 300-ए के तहत संवैधानिक प्रावधानों का मजाक बनाने जैसा होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अदालत की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए, SLAO को निर्देश दिया कि वो 22 अप्रैल 2019 के बाजार मूल्य के हिसाब से लोगों को उनकी जमीन का मुआवजा दें. इनपुट भाषा से भी

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