Battle of Chillianwala: चिलियांवाला युद्ध के कुछ दिनों बाद ही 21 फरवरी 1849 को अंग्रेजों और सिखों के बीच एक और युद्ध हुआ. इस युद्ध को "गुजरात की लड़ाई" के नाम से जाना जाता है. इस युद्ध में सिख सेना को हार का सामना करना पड़ा.
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Second Anglo-Sikh War: जालियावाला युद्ध के बारे में तो आपने कई बार सुना होगा. लेकिन क्या आप चिलियांवाला युद्ध के बारे में जानते हैं? चिलियांवाला का युद्ध सिखों और अंग्रेजों के बीच आज ही के दिन साल 1849 में लड़ा गया था. यह युद्ध आज के पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित मंडी बहाउद्दीन जिले के चिलियांवाला गांव में हुआ था. यह वही जगह है, जहां सिख सेना ने अपने साहस और रणनीति से अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए थे.
क्यों लड़ा गया था यह युद्ध?
पहले आंग्ल-सिख युद्ध (1845-46) के बाद सिख साम्राज्य कमजोर हो गया था. अंग्रेजों ने महाराजा दलीप सिंह के शासन पर कब्जा कर उनके संरक्षक परिषद का गठन किया, जिसमें सिख रानी जिंद कौर भी शामिल थीं. रानी ने अंग्रेजों के हस्तक्षेप का विरोध किया, लेकिन उन्हें निर्वासित कर दिया गया. इससे सिख सैनिकों और जनता में आक्रोश फैल गया. परिणामस्वरूप, 1848-49 में दूसरा आंग्ल-सिख युद्ध छिड़ गया.
कैसे हुआ चिलियांवाला का युद्ध?
13 जनवरी 1849 को ब्रिटिश जनरल गॉफ ने अपनी सेना को चिलियांवाला में सिख सेना पर हमला करने का आदेश दिया. सिख सेना ने अपनी कुशल रणनीति से अंग्रेजों की योजना पर पानी फेर दिया. ग्रेपशॉट और तोपों से किए गए हमलों ने अंग्रेजी सेना में अफरा-तफरी मचा दी. सिख सैनिकों ने ब्रिटिश सेना के क्वीन कलर (ध्वज) तक छीन लिए. अंग्रेजी सेना को भारी नुकसान हुआ. इस युद्ध में अंग्रेज के 757 सैनिक मारे गए, 1651 घायल हुए, और 104 लापता हो गए.
हालांकि सिखों को भी इस युद्ध में 4000 सैनिकों की जान गंवानी पड़ी, लेकिन उन्होंने ब्रिटिश सेना को रोकने में सफलता पाई. लड़ाई के बाद, दोनों सेनाएं अपनी-अपनी जगह पर डटी रहीं. सिख सेना ने इस युद्ध को अपनी जीत घोषित किया, जबकि ब्रिटिश जनरल गॉफ ने इसे अपनी जीत बताई.
इस युद्ध को ब्रिटिश रणनीति और सैन्य प्रतिष्ठा के लिए एक बड़ा झटका माना जाता है. खुद लार्ड डलहौजी ने इसे स्वीकारते हुए कहा था, "ऐसी एक और विजय हमें पूरी तरह खत्म कर देगी." आज यह युद्ध भारतीय इतिहास में एक यादगार घटना के रूप में दर्ज है, जहां सिखों ने अपनी वीरता से अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी थी.
सिख साम्राज्य का अंत
हालांकि, चिलियांवाला युद्ध के कुछ दिनों बाद ही 21 फरवरी 1849 को अंग्रेजों और सिखों के बीच एक और युद्ध हुआ. इस युद्ध को "गुजरात की लड़ाई" के नाम से जाना जाता है. इस युद्ध में सिख सेना को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद महाराजा दलीप सिंह को ब्रिटिश राज के अधीन कर लंदन भेज दिया गया, और पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया. यहीं से कोहिनूर हीरा भी अंग्रेजों के पास गया और सिख साम्राज्य का अंत हो गया.