GK Quiz for Students: आपको ये बात हैरान करेगी, लेकिन क्या आपने कभी ऐसे गांव के बारे में सुना है, जहां के किसी भी घर में खाना नहीं बनता है. फिर यहां लोग कैसे जीते हैं? भारत में एक गांव ऐसा भी है जहां के किसी घर में खाना नहीं पकता है. आइये जानते हैं उसके बारे में.
भारत के ये गांव अनोखा है और अब ये अपने आसपास के और गांवों के लिए भी एक उदाहरण बना हुआ है. इस गांव में कोई भी व्यक्ति अपने घर में खाना नहीं बनाता है. सभी के पास एक दूसरे के साथ बात करने और वक्त बिताने का पर्याप्त समय होता है. लेकिन सवाल ये है कि अगर वो खाना बनाते नहीं हैं, तो खाते क्या हैं और कैसे रहते हैं? इसका जवाब यहां है-
जिस गांव की हम बात कर रहे हैं, उसका नाम चंदनकी है. ये गुजरात का एक छोटा सा गांव है, जहां कोई भी घर पर खाना नहीं पकाता. दरअसल इस गांव में ज्यादातर लोग बुजुर्ग हैं. गांव के ज्यादातर युवा शहरों या विदेश में सेटल हो गए हैं. कभी 1,100 आबादी से भरे हुए इस गांवा में अब मुश्किल से 500 लोग ही रहते हैं और इनमें ज्यादातर बुजुर्ग हैं. ऐसे में गांव में रह बुजुर्गों में से कोई भी घर में खाना नहीं बनाता है.
इस गांव में कोई भी घर में खाना नहीं बनाता, बल्कि गांव के सभी लोगों ने मिलकर कम्युनिटी किचन का कॉन्सेप्ट शुरू किया है. इस किचन में पूरे गांव के लिए खाना बनता है और हर व्यक्ति को महीने में 2000 रुपये की राशि देनी होती है. इस 2000 रुपये में उन्हें महीने भर दो वक्त का खाना मिलता है. गांव वालों के खाना तैयार करने वाले रसोइयों को हर महीने 11000 रुपये का वेतन दिया जाता है. इस रसोई में विभिन्न प्रकार के पारंपरिक गुजराती खाना परोसा जाता है, िजसे पोषण का ध्यान रखकर बनाया जाता है.
इस आइडिया के पीछे गांव के सरपंच पूनमभाई पटेल का हाथ है, जो न्यूयॉर्क में 20 साल बिताने के बाद वे अहमदाबाद में अपना घर छोड़कर चांदनकी लौट आए. उन्होंने, गांव के बुजुर्गों को खाना बनाने के लिए स्ट्रगल करते देखा, तभी उनके दिमाग में ये आइडिया आया और उन्होंने कम्युनिटी किचन का कॉन्सेप्ट दूसरों को भी समझाया. सरपंच पूनमभाई कहते हैं कि हमारे गांव चंदनकी में लोग एक दूसरे के लिए जीते हैं.
अगर आप ये सोच रहे हैं कि गांव की कम्युनिटी रसोई ऐसी-वैसी होगी तो आप गलत हैं. रसोई के जिस हॉल में लोग बैठकर खाना खाते हैं वह एयर कंडिशन हॉल है. इसके लिए सोलर पावर के जरिये बिजली का इस्तेमाल किया जाता है. गांव वालों के लिए ये सिर्फ खाना खाने की जगह नहीं है, बल्कि एक दूसरे के साथ बैठकर सुख-दुख भी बांटते हैं. ये एक ऐसी जगह है, जहां वो कभी अकेला महसूस नहीं करते.
हालांकि इस कम्युनिटी रसोई को सफल बनाना इतना आसान भी नहीं था. शुरुआत में लोगों ने इसे काफी संदेह भरी नजरों से देखा. लेकिन जब उन्हें खुद फायदा महसूस होने लगा तो वे सभी धीरे-धीरे कम्युनिटी रसोई का हिस्सा बन गए. इसकी वजह से बुजुर्गों को अपना खाना पकाने की चिंता नहीं करनी पड़ती थी. उन्हें आराम और वक्त दोनों मिलने लगा. चंदनकी गांव की कम्युनिटी रसोई ने गांव के बाहर से भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया. आस-पास के इलाकों से लोग इस अनूठी व्यवस्था को देखने के लिए चंदनकी आते हैं. कई गांव इसी तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं.
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