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Mahabharata Life Management Tips: जिंदगी की हर 'परीक्षा' में हो जाएंगे पास, सीख लें महाभारत से लाइफ मैनेजमेंट के ये 5 टिप्स

Mahabharata Life Management Tips in Hindi: सदियों गुजर जाने के बावजूद महाभारत युद्ध आज भी ऐसी जीवंत गाथा है, जो हर सनातनी को मुंह जुबानी याद है. संख्या बल में कम होने के बावजूद पांडवों ने युद्ध में अपने से कहीं बड़ी कौरव सेना को हरा दिया था. एक्सपर्टों के मुताबिक, महाभारत से आप लाइफ मैनेजमेंट टिप्स भी सीख सकते हैं. जिन पर अमल करने से आप कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी योद्धा बनकर उभरेंगे. 

 

समय का उपयोग शुरू करें

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समय का उपयोग शुरू करें

जीवन बड़ा अनिश्चित है. यहां भविष्य में कब, क्या होगा, यह किसी को नहीं पता. ऐसे में भविष्य के अनिश्चित खतरों से निपटने के लिए अभी से तैयारियां करना जरूरी है. महाभारत में वनवास के दौरान पांडवों को अहसास हो गया था कि अब कौरवों से उनका युद्ध होना तय हो गया है. वे चाहे कितना भी टाल लें लेकिन दुर्योध्यन और शकुनि युद्ध करवाकर ही रहेंगे. ऐसे में उन्होंने भी वक्त रहते युद्ध की तैयारियां शुरू कर दी. वनवास के दौरान अर्जुन ने तपस्या कर भगवान शिव से कई दिव्यास्त्र हासिल किए, जो कुरुक्षेत्र युद्ध में निर्णायक साबित हुए. इसी तरह हमें भी बीमारी, बुढ़ापे, एक्सिडेंट, कर्ज, बच्चों की शिक्षा, शादी समेत कई जिम्मेदारियों और खतरों को देखते हुए अभी से आमदनी बढ़ाने और बचत पर काम शुरू कर देना चाहिए, जिससे संकट आने पर किसी के आगे हाथ न पसारने पड़ें.

 

सतर्कता से करें विकल्पों का चयन

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सतर्कता से करें विकल्पों का चयन

महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले और पांडव देश के सभी राजाओं को अपने-अपने पक्ष में करने की मुहिम चला रहे थे. दोनों ही पक्ष इस युद्ध में भगवान कृष्ण को अपने पक्ष में करना चाहते थे. दुर्योधन और अर्जुन संयोग से एक दिन और एक ही समय पर भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंच गए. उनकी मंशा जानकर श्रीकृष्ण ने कहा कि एक ओर उनकी अजेय नारायणी सेना है. जबकि दूसरी ओर वे अकेले हैं और वे युद्ध में हथियार भी नहीं उठाएंगे. ऐसे में दुर्योधन ने खुश होते हुए भगवान श्रीकृष्ण से उनकी नारायणी सेना मांग ली. जब दुर्योधन यह समाचार लेकर हस्तिापुर लौटा तो गुरू द्रोण, भीष्म, कर्ण और शकुनि समेत सभी लोग बहुत दुखी हुए. उन्हें अहसास हो गया कि दुर्योधन कितना गलत फैसला कर आया है और अब युद्ध पांडव ही जीतेंगे. अंत में हुआ भी ऐसा. श्रीकृष्ण की सलाह और चतुर रणनीतियों ने कहीं ज्यादा शक्तिशाली कौरव सेना को तहस-नहस करके कुरू कुल का अंत कर दिया. इससे हमें यह सबक सीखना चाहिए कि अपने पास उपलब्ध संसाधनों का हमें बेहद सतर्कता और चतुराई से चयन करना चाहिए, जिससे बुरे समय में उनका बेहतर प्रयोग किया जा सके. 

 

साथियों पर करें भरोसा, बनाए रखें एकता

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साथियों पर करें भरोसा, बनाए रखें एकता

महाभारत युद्ध में कौरवों की सेना पांडवों से कहीं ज्यादा बड़ी थी. इसके बावजूद पांडवों ने उनका सर्वनाश कर दिया. कौरवों का नेतृत्व कर रहा दुर्योधन अपने खेमे के योद्धाओं पर भरोसा नहीं करता था. वह बात-बात पर ताने कसकर भीष्म, कर्ण, द्रोण की निष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगाता रहता था. यही वजह थी कि संख्या बल में ज्यादा होने के बावजूद कौरव एकजुट नहीं थे और जब 18 दिन का भीषण युद्ध शुरू हुआ तो वे धीरे-धीरे मौत का शिकार होने लगे. वहीं पांडव आपसी एकता के बल पर संख्या में कम होते हुए भी जीत गए. 

 

अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाएं

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अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाएं

कौरव सेना में भीष्म, द्रोण और कर्ण जैसे खतरनाक योद्धा थे. इसके बावजूद वे पूरे युद्ध के दौरान असमंजस से जूझते रहे और अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से नहीं निभा पाए. भीष्म जहां धर्म-अधर्म और कुटुंब के नाश होने के धर्मसंकट से जूझते रहे. वहीं कर्ण माता कुंती और भगवान श्रीकृष्ण को दिए वजन की वजह से सामने पड़ने पर भी युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव को खत्म नहीं कर पाए. वहीं द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा के मोह की वजह से अर्जुन वध का अवसर मिलने पर भी उसे गंवा बैठे. सामान्य जीवन में इससे हमें यह संदेश मिलता है कि हमें चाहे घर या बाहर, जो भी जिम्मेदारी मिले, उसे पूरी गंभीरता और ईमानदारी से निभाएंगे. क्योंकि जब हर कोई पूरी गंभीरता से प्रयास करता है तो उसमें सफलता अवश्य मिलती है. 

 

लक्ष्य बनाएं और पूरा फोकस उसी पर कर दें

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लक्ष्य बनाएं और पूरा फोकस उसी पर कर दें

महाभारत कथा में जब द्रोणाचार्य पांडवों और कौरव राजकुमारों को धनुर्विद्या सिखा रहे थे तो एक दिन उन्होंने उनकी परीक्षा लेने का फैसला किया. उन्होंने पेड़ पर एक पक्षा का खिलौना रखकर उसकी आंख पर निशाना लगाने को कहा. इसके बाद जब उन्होंने सभी को बारी-बारी से निशाना लगाने को कहा तो केवल अर्जुन को छोड़कर बाकी कोई भी निशाना नहीं लगा सका. द्रोणाचार्य ने जब सभी राजकुमारों से पूछा कि उन्हें पेड़ पर क्या दिखाई दे रहा था तो किसी ने बताया कि खिलौने के साथ पेड़ दिख रहा था, तो किसी ने टहनी या पत्ते बताए. केवल अर्जुन ने कहा कि उसे खिलौने की आंख के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था. यानी कि उसका पूरा फोकस वहां पर था. हमें अपने जीवन में भी सफल होने के लिए कोई न कोई लक्ष्य तय करना चाहिए और फिर उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरी तरह जुट जाना चाहिए. निरंतर प्रयासों से एक न एक दिन वह लक्ष्य हासिल हो ही जाता है. 

 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

 

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