Narasimha Avatar ki Katha: भगवान विष्णु इस सृष्टि के संचालक हैं. इस सृष्टि पर जब भी कोई संकट आया है, तब-तब श्री हरि अवतार लेकर धर्म और सत्य की रक्षा के लिए प्रकट हुए हैं. अपनी विष्णु के 10 सीरीज में आज हम भगवान विष्णु के चौथे अवतार यानी नरसिंह अवतार के बारे में आपको बताने जा रहे हैं.
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Why did Lord Vishnu take Narasimha Incarnation: पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन काल में धरती पर हिरण्यकश्यप नाम का शक्तिशाली राजा राज किया करता था. वह बेहद अहंकारी था और उसकी प्रवृति राक्षसों वाली थी. उसने कठोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और अपनी इच्छानुसार वरदान मांगने को कहा. अवसर देखकर हिरण्यकश्यप ने अमरता का वरदान मांग लिया.
ब्रह्माजी ने यह वरदान देने में असमर्थता प्रकट की तो हिरण्यकश्यप ने कुछ विचार करके कहा कि उसे ऐसा वरदान दीजिए कि कोई भी मनुष्य या पशु उसे मार न सके. उसकी मृत्यु न दिन में हो और न ही रात में. उसके न तो कोई घर के अंदर मार सके और न ही घर के बाहर. उसे न धरती पर मारा जा सके और न ही आकाश में. उसे न किसी अस्त्र से मारा जा सके और न ही किसी शस्त्र से.
भगवान ब्रह्मा से लिया अभयता का वरदान
दूसरे शब्दों में कहें तो वह यह सुनिश्चित कर लेना चाहता था कि सृष्टि में कोई भी, किसी भी विधि से उसे मार न सके. उसकी मांग पर भगवान ब्रह्मा जी ने उसे तथास्तु कहा और वहां से अंतर्ध्यान हो गए. इसके बाद हिरण्यकश्यप शक्ति के मद में और अहंकारी हो गया. वह स्वयं को भगवान समझने लगा और अपनी प्रजा पर ही अत्याचार शुरू कर दिए. उसने लोगों को अपने घरों से देवी-देवताओं की प्रतिमा हटाने और उसकी पूजा करने का आदेश दिए. उसकी राक्षसी प्रवृति से हर कोई त्रस्त हो उठा.
हिरण्यकश्यप के उलट उसका पुत्र भगवान विष्णु का परम भक्त था और हर वक्त उनकी आराधना में लीन रहता था. इस बात से हिरण्यकश्यप से बेहद क्रोधित रहता था. वह चाहता था कि पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति छोड़कर उसकी पूजा शुरू करे. इसके लिए उसने पहले पुत्र को कई बार प्यार से समझाया. जब वह नहीं माना तो उसे सजा की चेतावनी देकर डराने की कोशिश की. जब उसके हर प्रयास बेकार गए तो उसने अपने पुत्र के प्राण लेने की भी कोशिश की, लेकिन वह चाहकर भी प्रह्लाद को मार न सका.
जब भगवान विष्णु को लेना पड़ा नरसिंह अवतार
एक दिन पुत्र प्रह्लाद ने हिरण्यकश्यप से कहा कि भगवान विष्णु हर जगह मौजूद हैं. वही उन्हें हर संकट से बचा लेते हैं. इस पर हिरण्यकश्यप ने उसे जोरदार तरीके से डांटते हुए कहा कि अगर तुम्हारे भगवान सब जगह हैं तो सामने लगे स्तंभ में नजर क्यों नहीं आते. यह कहते हुए उसने महल के उस स्तंभ पर अपनी मुट्ठी से जोरदार प्रहार कर दिया. उसी दौरान उस स्तंभ में से भगवान विष्णु नृसिंह अवतार के रूप में प्रकट हुए.
उनका सिर और दोनों हाथ सिंह के थे, जबकि बाकी धड़ और पैर मानव के थे. गुस्से से भयानक गर्जना कर रहे भगवान नरसिंह ने अपनी बाजुओं से हिरण्यकश्यप को उठा लिया और फिर उसे महल की दहलीज पर ले आए. वहां पर भगवान नरसिंह दहलीज पर बैठ गए और हिरण्यकश्यप को अपनी जंघा पर पटककर उसकी छाती को अपने नुकीले नाखूनों से चीरकर प्राणों का अंत कर दिया. इस प्रकार अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा कर उन्होंने दुनिया में एक बार फिर सत्य और धर्म की स्थापना की.
ब्रह्मा जी के वरदान का रखा पूरा मान
भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध करते समय भगवान ब्रह्मा के वरदान का पूरा मान रखा. वे नरसिंह अवतार में थे यानी वे न तो पूरी तरह मनष्य थे और न ही पशु. उन्होंने न घर के अंदर और न ही घर के बाहर मारा बल्कि महल की दहलीज पर हिरण्यकश्यप का अंत किया. जिस समय उस राक्षस को मारा, उस समय न दिन था और न ही रात बल्कि गोधूलि बेला यानी सूर्यास्त का समय था. वध के समय उसे अपनी जंघा पर पटका, इस प्रकार उसका वध धरती और आकाश के बीच में हुआ. उसे मारने के लिए भगवान विष्णु ने अस्त्र-शस्त्र के बजाय अपने नाखूनों का प्रयोग किया.
सनातन धर्म के विद्वानों के मुताबिक, जब-जब भी सृष्टि और मानवता पर किसी तरह का संकट आया है, तब-तब भगवान विष्णु कोई न कोई रूप धरकर इस धरती पर आए हैं. वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान नरसिंह चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है. कहते हैं कि इसी दिन नरसिंह भगवान ने अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप का अंत किया था. मान्यता है कि यदि आप किसी भी तरह के संकट से घिरे हुए हों तो भगवान विष्णु या नरसिंह भगवान की पूजा करके संकटमोचन नरसिंह मंत्र का स्मरण करें. इससे आपको सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)