Ram Katha: कैकेयी ने राजा दशरथ को दो वरदान देने की याद दिलाई, उनकी स्वीकारोक्ति के बाद जानिए कैकेयी ने राजा से वरदान में क्या मांगा
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Ram Katha: कैकेयी ने राजा दशरथ को दो वरदान देने की याद दिलाई, उनकी स्वीकारोक्ति के बाद जानिए कैकेयी ने राजा से वरदान में क्या मांगा

Ramayan Story: रानी कैकेयी (Queen  Kaikeyi) के कोप भवन में जाने के बाद राजा दशरथ (King Dasharatha) उन्हें मनाने पहुंचे और प्रेम रस भरी बातें कर उन्हें प्रसन्न कर लिया. रानी ने अपने उतार कर फेंके हुए आभूषण फिर से पहन लिए और राजा को याद दिलाया कि उन्होंने दो वरदान मांगने को कहा था. राजा ने जब उनसे कहा कि दो नहीं चार मांग लो तो कैकेयी ने भरत का राजतिलक और राम को चौदह साल का वनवास देने के लिए कहा.

राम कथा

Ramayan Story in Hindi: रानी कैकेयी के कोपभवन में जाने की सूचना पर राजा दशरथ व्याकुल हो गए और डरते-डरते उन्हें मनाने पहुंचे. उन्हें मनाने की कोशिश में महाराज दशरथ ने कैकेयी से कहा कि यदि तुम्हारा शत्रु कोई देवता है तो मैं उसे भी मार दूंगा. उन्होंने कहा कि मेरी प्रजा, कुटुंबी, संपत्ति, पुत्र यहां तक कि मेरे प्राण भी तुम्हारे अधीन हैं. उन्होंने इस बात को राम की सौ बार सौगंध खाते हुए कहा. उन्होंने कैकेयी से कहा कि तुम प्रसन्नतापूर्वक अपनी मनचाही बात मांग लो और अपने मनोहर अंगों को आभूषणों से सजा लो. तुम इस अवसर को तो समझो और जल्दी से इस बुरे वेश को त्याग दो. यह सुनकर कैकेयी हंसती हुई उठी और गहने पहने लगी.

कैकेयी ने उचित अवसर जान दशरथ जी को वरदान की याद दिलाई

कैकेयी को खुश होते देखकर राजा दशरथ प्रसन्न होकर बोले, हे प्रिए मेरा मन अब शांत हुआ. पूरे नगर में घर-घर आनंद के बधावे बज रहे हैं. मैं कल ही राम को युवराज का पद दे रहा हूं, इसलिए तुम उठो और अपना श्रृंगार करो. गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस में लिखते हैं कि राजा नीति निपुण हैं, किंतु त्रिया चरित्र तो अथाह समुद्र है, जिसे वह नहीं जान सके, फिर कैकेयी ने ऊपरी तौर पर प्रेम दर्शाते हुए आंखें और चेहरे को मोड़कर हंसते हुए कहा कि आप मांग-मांग तो कई बार कहा करते हैं, किंतु उसे देते-लेते कभी नहीं हैं. आपने दो वरदान देने को कहा था, किंतु अब तो वह मिलने में संदेह दिख रहा है.

रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाए

कैकेयी बात सुनकर राजा दशरथ ने हंसते हुए कहा कि अब मैं तुम्हारा मतलब समझ गया. तुम्हें भी अपना मान कराने की आदत हो गई है. तुमने तो उन दो वरदानों को अपनी धरोहर समझकर कभी मांगा ही नहीं और हमारी तो भूलने की आदत है, सो हमें भी याद ही नहीं रहा. मुझे झूठ-मूठ का दोष मत दो. अब तुम चाहो तो दो के बदले चार मांग लो. रघुकुल की यही रीति रही है कि प्राण जाए पर वचन कभी नहीं जाता है.

कैकेयी ने भरत का राजतिलक और राम को वनवास मांगा

राजा को प्रसन्न जान और अपने वचन के पक्के होने की दुहाई देते हुए कैकेयी ने समझा कि यही उचित अवसर है, जब अपनी मांग रखी जा सकती है. कैकेयी ने कहा यदि आप मुझे प्रसन्न ही करना चाहते हैं तो मेरे मन को भाने वाले पहला वर है, भरत का राजतिलक और दूसरा वर भी मैं हाथ जोड़कर मांगती हूं, जिसे आप पूरा कीजिए. दूसरा वर है तपस्वियों के वेश में उदासीन भाव में राम चौदह वर्ष तक वनवास करें.   

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