एकमात्र ऐसी रहस्यमय जनजाति, जिनके जीवन में भारत सरकार भी नहीं देती दखल; जानिए क्यों यहां जाना है जानलेवा
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एकमात्र ऐसी रहस्यमय जनजाति, जिनके जीवन में भारत सरकार भी नहीं देती दखल; जानिए क्यों यहां जाना है जानलेवा

Sentinel Island Jarawa Tribe: आसमान से देखने पर आम द्वीप की तरह एकदम शांत , हरा भरा और खूबसूरत नजर आता है, लेकिन यहां कुछ ऐसा है जिसके कारण ना तो पर्यटक और ना ही मछुआरों में यहां जाने कि हिम्मत है.

एकमात्र ऐसी रहस्यमय जनजाति, जिनके जीवन में भारत सरकार भी नहीं देती दखल; जानिए क्यों यहां जाना है जानलेवा

Sentinel Island Jarawa Tribe: अंडमान द्वीप समूह में का सेंटिनल द्वीप (Sentinel Island) किसी रहस्य से कम नहीं है. यहां पर जारवा नामक जनजाति रहती है, जिन्हें दुनिया के सबसे पुराने जीवित आदिवासी बताया जाता है. यहां बाहरी लोगों को जाने की मनाही है, क्योंकि ऐसा करना उनके लिए जानलेवा है. भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर यहां किसी के भी जाने पर पाबंदी लगाई है. 

दो द्बीपों में रहते हैं ये आदिवासी  
ये आदिवासी सेंटिनल द्वीप के अलावा अंडमान के एक दूसरे द्वीप ओंगे में भी रहते हैं. एक अनुमान के मुताबिक जारवा जनजाति के अब मुश्किल से 400 के आसपास लोग ही जीवित होंगे. सेंटिनल द्वीप में रहने के कारण जारवा आदिवासी को सेंटिनेलिस भी कहते हैं. 

जीवन जीने का सहारा 
जारवा तीर-धनुष से सुअर, कछुआ और मछलियों का शिकार करते हैं. इसके अलावा वे फल, जड़वाली सब्जियां और शहद का इस्तेमाल करते हैं. ओंगे में तो टूरिस्ट जा सकते हैं, लेकिन सेंटिनल पर जाने पर बिल्कुल पाबंदी है. 

सेंटिनल आइलैंड जाने की क्यों है मनाही?
यह एकमात्र ऐसी जनजाति है, जिनके जीवन और अंदरूनी मामलों में भारत सरकार भी दखल नहीं देती. यहां सरकारी ऑफिसर्स, उद्योगपति, आर्मी और पुलिस किसी के भी जाने पर रोक है. इस आइलैंड से वापस आना नामुमकिन माना जाता है, क्योंकि इस जनजाति को बहुत खतरनाक माना जाता है. उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं कि कोई वहां आए.

इस रहस्यमय आदिम जनजाति का आज की दुनिया से कोई नाता ही नहीं है. ये लोग न तो बाहरी लोगों से संपर्क रखते हैं और ना ही किसी को संपर्क रखने देते हैं. बाहरी लोगों से सामना होते ही ये हिंसक हो जाते हैं और उन पर जानलेवा हमले करते हैं.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 2004 में आई सुनामी के बाद अंडमान द्वीप तबाह हो गए थे. इस जनजाति पर सुनामी का क्या प्रभाव पड़ा, ये जानने के लिए जब भारतीय तटरक्षक दल ने वहां जाने की कोशिश की तो इन लोगों ने हेलिकॉप्टरों पर आग के तीर से हमले किए, जिसके बाद वहां पहुंचने की कोशिश बंद कर दी.

वहीं, साल 2006 में कुछ मछुआरे गलती से यहां पहुंच गए थे. जब कर वे कुछ समझ पाते, वे अपनी जान से हाथ धो चुके थे. इन आदिवासियों को आग के तीर चलाने में महारत हासिल है, जिससे वे अपने क्षेत्र में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों पर भी हमला कर देते हैं. 

बाहरी हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं 
ये द्वीप भारत का ही हिस्सा है, लेकिन हमेशा से ही एक अनसुलझी पहेली बना रहा. कहते हैं कि इस जनजाति का अस्तित्व 60,000 वर्षों पुराना है, लेकिन अब इनकी आबादी कितनी है, यह स्पष्ट नहीं है.  इनके रिवाज, बोली, रहन-सहन आदि के बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी नहीं है. सरकार द्वारा इन लोगों के हित में काम करके इनका जीवन स्तर सुधारने की कई कोशिशें की गईं. 

विश्व की सबसे खतरनाक और अलग-थलग रहने वाली जनजाति
इस जनजाति के लोगों को पाषाण काल की जनजाति भी कहा जाता है, क्योंकि तब से लेकर अब तक इनके भीतर किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं आया है. शायद इसकी वजह इनके भीतर ग्रहणशीलता की कमी और बाहरी दुनिया से दूरी रखने का स्वभाव है. 

रोग प्रतिरोधक क्षमता है कमजोर
एक इंटरनेशनल संस्था के मुताबिक ये धरती की सबसे कमजोर जनजाति है. उनके अंदररोग प्रतिरोधक क्षमता ना के बराबर है. जरा सी बीमारी के कारण उनकी जान जा सकती है. ऐसे में कोई भी महामारी में इनका वजूद ही मिटा सकती है.

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