नई दिल्लीः Shyam Benegal and Bharat Ek Khoj: भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे सफल निर्देशकों में से एक श्याम बेनेगल ने सोमवार को मुंबई में अंतिम सांस ली. उन्होंने भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी. उन्होंने अपने सिनेमा में यथार्थ का पुट जोड़ा. समाज के हाशिये पर पड़े लोगों की जिंदगी को रूपहले पर्दे पर उतारा. उनके नाम सबसे ज्यादा नेशनल अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड है, लेकिन शायद उनके लिए इन पुरस्कारों से भी बड़ी उपलब्धि थी, दूरदर्शन के लिए बनाया गया उनका धारावाहिक- 'भारत एक खोज.'
अगर इस धारावाहिक को अब तक किसी भी किताब का भारतीय टीवी पर सबसे बेहतरीन रूपांतरण में से एक का दर्जा दिया जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगा. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की किताब 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' पर आधारित 'भारत एक खोज' के जरिए श्याम बेनेगल ने भारतीय समाज को इतिहास की अमिट यात्रा कराई, जिसकी छाप आज भी लोगों के जेहन में है.
कहा जाता है कि श्याम बेनेगल ने इस धारावाहिक को बनाते समय कई ऐसी रूढ़ियों को तोड़ा, जिनके साथ छेड़छाड़ करने से अमूमन डायरेक्टर बचते. उन्होंने बजट और स्क्रिप्ट को देखते हुए कलाकारों से अलग-अलग रोल करवाए. जैसे- एक दिन ओम पुरी दुर्योधन की भूमिका निभाते हुए दिखे तो अगले दिन सम्राट अशोक और फिर औरंगजेब. इसी तरह सलीम घोष ने राम, कृष्ण से लेकर टीपू सुल्तान तक के किरदार पर्दे पर उतारे.
भारत एक खोज की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे कई बार दूरदर्शन पर रिपीट मोड पर चलाया गया. बाजार में इसकी डीवीडी भी बिकती थी. ये बात खुद एक इंटरव्यू में श्याम बेनेगल ने कही थी. उन्होंने कहा था कि हमने इस धारावाहिक को बनाने के लिए इतिहास के हर तथ्य की काफी जांच-परख की थी, क्योंकि इसके जरिए हम दोबारा से भारत के इतिहास को जी रहे थे.
बताया जाता है कि 'भारत एक खोज' की टीम में करीब 15 इतिहासकार थे. इनका काम प्रत्येक एपिसोड के लिए श्याम बेनेगल की मदद करना था, ताकि ऐतिहासिक तथ्यों में कोई गलती न हो. चूंकि डिस्कवरी ऑफ इंडिया में नेहरू ने करीब 5000 साल के इतिहास को शब्दों में पिरोया था इसलिए इसे पर्दे पर उतारने के लिए हर बारीकी पर ध्यान रखना जरूरी था. इतिहास के हर दौर को दिखाने के लिए बेनेगल के पास 40 एक्सपर्ट्स की प्री-प्रोडक्शन टीम थी. यही नहीं उनके आसपास इतिहास से जुड़ी करीब 10 हजार किताबें रहती थीं, ताकि कोई भी संशय होने की स्थिति में उसका निवारण किया जा सके.
भारत एक खोज का पहला एपिसोड साल 1988 में नेहरू के जन्मदिन (14 नवंबर ) पर दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था. ये करीब एक से डेढ़ घंटे का एपिसोड होता था, जो हर सप्ताह रविवार को आता था. श्याम बेनेगल इस शो को बनाने में इतने रम गए थे कि उनको रात को इसके ही सपने आते थे. उन्होंने एक इंटरव्यू में इसका जिक्र भी किया था.
बेनेगल ने कहा था, 'मैं इसे (भारत एक खोज धारावाहिक) पूरा करना चाहता था. मुझे सपने आने लगे थे कि मैं मर गया हूं. मुझे इस बात की चिंता थी कि अगर मैं मर गया तो इस शो का क्या होगा. अगर ये अधूरा रह गया तो?'
लेकिन, बेनेगल ने इस शो को पूरा किया, भारतीय इतिहास को इतनी सटीकता के साथ टीवी पर उतारा कि इस धारावाहिक ने खुद को भारतीय सिनेमा के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित करा लिया. आज हम कह सकते हैं कि बेनेगल का सपना गलत था, क्योंकि आज जब वो दुनिया छोड़कर गए तो उनका शो पूर्णता और सफलता के उस बिंदु तक पहुंच गया है, जहां तक अपनी कृति को पहुंचाने का सपना हर कलाकार का होता है!
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