शिवसेना में पहली बार नहीं हुई है टूट, इससे पहले इन तीन नेताओं ने तोड़ी थी पार्टी

एकनाथ शिंदे ने शिवसेना और उद्धव सरकार को 440 वोल्ट का झटका देकर ये इशारा कर दिया है कि महाराष्ट्र की उद्धव सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब शिवसेना में टूट हुई है, इससे पहले तीन नेताओं ने पार्टी को तोड़ने का काम किया है.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Jun 22, 2022, 01:10 PM IST
  • 1991 में भुजबल ने दिया था पार्टी को झटका
  • 2005 में नारायण राणे ने पार्टी को कहा अलविदा
शिवसेना में पहली बार नहीं हुई है टूट, इससे पहले इन तीन नेताओं ने तोड़ी थी पार्टी

नई दिल्ली: महाराष्ट्र एक बार फिर से मौकापरस्ती और महत्त्वाकांक्षाओं की सियासत में फंस गया है. शिवसेना की राजनीति में इतना बड़ा भूचाल पिछले एक दशक में कभी नहीं आया. एकनाथ शिंदे और उद्धव का साथ टूटने वाला है. शिवसेना एक बार फिर से टूटने वाली है. महाराष्ट्र में महाअघाड़ी सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसा पहली बार नहीं है, जब शिवसेना में टूट देखी जा रही है.

शिवसेना में 'बगावत' की पुरानी कहानी

आपको ऐसे तीन नेताओं से रूबरू करवाते हैं, जिन्होंने इससे पहले शिवसेना को न सिर्फ छोड़ा, बल्कि तोड़ा भी..

1). 1991 में छगन भुजबल 8 विधायकों के साथ पार्टी छोड़कर चले गए थे

सबसे पहले आपको छगन भुजबल को जानना चाहिए. वैसे तो भुजबल ने 1960 के दशक में शिवसेना से अपने सियासी पारी की शुरुआत की थी. दरअसल, उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया है. वो शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे से प्रभावित थे, यही कारण था जो उन्होंने शिवसेना का दामन थामा था.

हालांकि छगन भुजबल की कर्मठता को देखते हुए बाला साहब ने साल 1985 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उन्हें मुंबई महानगरपालिका के मेयर की जिम्मेदारी दे दी थी. हालांकि 1991 में भुजबल ने न सिर्फ शिवसेना छोड़ा बल्कि 8 विधायकों को तोड़ लिया और वो शरद पवार की पार्टी एनसीपी के साथ चले गए.

2). 2005 नारायण राणे 10 विधायकों  के साथ पार्टी छोड़कर चले गए थे

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री नारायण राणे भी एक वक्त शिवसेना के कद्दावर नेताओं में शामिल हुआ करते थे. सियासत में उतरने से पहले नारायण राणे ने एक चिकन शॉप खोली थी. लोग उनके उपर आपराधिक इतिहास का इल्जाम मढ़ा करते हैं. राणे उस वक्त महज 16 साल के थे, जब 1968 में वो शिवसेना से जुड़ गए थे.

नारायण राणे के शिवसेना से जुड़ने के बाद उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी. कहा जाता है कि राणे ने अपने विरोधी गैंग से बदला लेने के लिए शिवसेना का सहारा लेकर सियासत में उतरने का फैसला लिया था. शिवसेना के लिए उन्होंने काफी युवाओं को जोड़ा. उनकी प्रतिभा और मेहनत को देखकर बाल ठाकरे काफी प्रभावित हुए थे और उन्हें पार्टी में बड़ी बड़ी जिम्मेदारी मिलने लगी.

उनकी क्षमता को देखते हुए उन्हें चेंबूर में शिवसेना का शाखा प्रमुख बनाया गया
वर्ष 1985 से 1990 तक नारायण राणे शिवसेना के कॉर्पोरेटर रहे
नारायण राणे पहली बार वर्ष 1990 में शिवसेना से विधायक बने
छगन भुजबल ने शिवसेना छोड़ी, तो नारायण राणे का कद बढ़ने लगा
1996 में शिवसेना-बीजेपी सरकार में नारायण राणे राजस्व मंत्री बने
इसके बाद 1 फरवरी 1999 को नारायण राणे मुख्यमंत्री बन गए

धीरे-धीरे नारायण राणे का शिवसेना से मोहभंग होने लगा. जैसे ही उद्धव ठाकरे को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया, पार्टी में बगावत की आग भड़कने लगी. नारायण राणे ने उद्धव ठाकरे के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी, जिसके बाद उन्हें पार्टी छोड़ने के लिए कह दिया गया. 3 जुलाई 2005 वो तारीख थी जब कांग्रेस में शामिल हो गए. उन्होंने 10 शिवसेना विधायकों को तोड़ लिया.

इसके बाद नारायण राणे ने अपनी पार्टी बना ली, जिसका नाम महाराष्ट्र स्वाभिमान पार्टी था. हालांकि कुछ ही वक्त बाद उन्होंने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया और खुद भाजपा में शामिल हो गए.

3). 2006 में राज ठाकरे हजारों कार्यकर्ताओं के साथ पार्टी छोड़कर चले गए थे

महाराष्ट्र की सियासत में राज ठाकरे किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. अपनी तीखी बोली से वो अक्सर सुर्खियों में बने रहते हैं. राज ठाकरे जनवरी 2006 तक अपने चाचा (बाल ठाकरे) की पार्टी शिवसेना में थे. हालांकि उद्धव को अहमियत मिलता देख वो नाराज हो गए. राज ठाकरे को शिवसेना कार्यकर्ता काफी मानते थे.

यही वजह थी कि उनके पार्टी छोड़ने ते बाद हजारों शिवसेना कार्यकर्ताओं ने उनका साथ चुना. 9 मार्च 2006 को मुंबई में, राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नामक एक नई पार्टी की स्थापना की. शिवसेना से इस्तीफा देने के बाद राज ठाकरे ने कहा था कि 'मैं अपने चाचा (बाल ठाकरे) के साथ शत्रुता नहीं लेना चाहता हूं और वह हमेशा मेरे मार्गदर्शक रहेंगे.'

क्या बदल जाएगा सियासत का इतिहास?

लगभग 59 साल के शिंदे महाराष्‍ट्र सरकार में नगर विकास मंत्री हैं. उनकी इमेज एक कट्टर और वफादार शिव सैनिक की रही है, कुछ साल पहले तक अगर किसी शिवसैनिकों को पार्टी में अपनी बात रखनी होती थी, तो सबसे पहले शिवसैनिक एकनाथ शिंदे की ओर देखते थे. शिंदे अगर अपने इस मिशन में कामयाब होते हैं तो शिवसेना के इतिहास में ये सबसे बड़ी टूट साबित होगी.

एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने कहा है कि उद्धव संभाल लेंगे. मतलब कि शरद पवार का भरोसा, उद्धव ठाकरे पर बना हुआ है. लेकिन एकनाथ शिंदे का भरोसा उद्धव ठाकरे पर कमजोर हो गया था. एकनाथ शिंदे नाम का तीर से कमान निकाल कर मुंबई से गुवाहाटी वाया सूरत चले गए.

महाराष्ट्र की राजनीति से बाहर एकनाथ शिंदे का नाम नया हो सकता है, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति के शब्दकोश में ये नाम... पहले पन्ने पर आता है. राज्य की इच्छाएं, राज्य का आदेश, राज्य की जरूरतें और राज्य के जज़्बात.. महाराष्ट्र की राजनीति के पाताल में जा चुकी हैं. सियासत में कब क्या होगा कोई नहीं जानता, सबकी निगाहें इस बात का इंतजार कर रही हैं कि आगे क्या होगा.

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